
30 अग॰ 2009
भूल गए फिराक को

28 अग॰ 2009
सी.बी.आई. तो हमेशा सत्ता की कठ्पुतली ही रही मनमोहन जी

26 अग॰ 2009
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

24 अग॰ 2009
हमारी और आपकी साझा आवाज को जरूर समझेंगे
नजीर भाई ने मुझे मेल से एक पत्र भेजा है। दरअसल हमारी एक पोस्ट पर सिद्धार्थ भाई ने एक टिप्पणी दी और नजीर भाई और भावुक हो गए। उन्होंने वसीम वरेलावी की गजल भी भेजी है। मैं उसे पोस्ट कर रहा हूँ ।
भाई आनंद राय,
सिटी की आवाज के लोकार्पण अवसर पर आप आये। आपने बहुत कुछ कहा, बाद में लिखा भी। आपके ब्लाग पर सिटी की आवाज के हवाले से बहुत कुछ कहा गया है। जवाब देने का मन हुआ तो लगा शायद हम उन नाकारा पत्रकारांे की जमात में शामिल हैं, जो खुद को वक्त के साथ अपडेट नहीं कर पाये। वरना यह बातें कहने के लिए ई'मल क्यांे करता। सीधे आर्टिकिल पर टिप्पणी भेज देता। बहरहाल हमारे आप जैसे लोग समाज के उस प्रोगेसिव तबके का हिस्सा हैं, जो जहां भी जाते हैं, उनके साथ बदनामियों और रुसवाइयों के साये चला करते हैं। यही वजह है कि कभी मुझे मजहब के नाम पर दुखी होना पडता है तो आनंद राय जैसे लोगों को जाति के नाम पर बदनामियों के बोझ उठाने पडते हैं। अच्छी बात यही है कि हम मुद़दो और मूल्यांे को लेकर जमकर संघर्ष कर रहे हैं। एक दिन हमारा ही होगा। हम रहे न रहें हमारी पीढियां हमें जरूर समझेंगी। जितेन्द्र पाण्डेय व अजीत सिंह जैसे तमाम अनुज इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं, अधिकांश हमारी राह पर हैं, फिर भी तमाम भाई दिग्भ्रमित हैं, मगर यकींन है एक दिन वह हमारी और आपकी साझा आवाज को जरूर समझेंगे।
आते हैं असली बात पर आपकी भावनाओं को पढकर लगा कि आप मेरे बारे मंे लिखते हुए कुछ बेइमानी कर गये हैं। मुझे बहुत आदर दे दिया है। सच्चाई यह है कि मेरी उम्र बडी है, मगर कद तो आप ही का बडा है। एकाउंट अफसर व छोटे भाई सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी ने जो मेरे बारे मे लिखा है, उन्हंे वह सब कुछ आपके बारे में लिखना चाहिए था। आपने बडे भाई वसीम बरेलवी की जिस गजल की पेशकश की है, दरअसल वह हिन्दुस्तान की वाहिद ( अकेली) गजल है जो हमारे आप जैसे लोगों के जज्बातों की तरजुमानी ( प्रतिनिधित्व) करती है। यह गजल योगी ही नहीं रोगी और भोगी को भी आगाह करती है, यह अलग बात है कि इस गजल को हिन्दुस्तान के 118 करोड लोगांे को पढा दी जाये तो भी जो योगी है, रोगी है, भोगी है, वह नही सुधरेगा, मगर कोशिश तो जारी रहनी ही चाहिए। पेश है आपकी मांगी गजल
' अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाएं कैसे,
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे।
घर सजाने का सलीका तो बहुत बाद का है
पहले तो यह तय हो इस घर को बचाएं कैसे।
लाख तलवारे बढी आती हैं, गरदन की तरफ,
सर झुकाना नहीं आता, तो झुकाएं कैसे।
कहकहा आंख का बरताव बदल देता है,
हंसने वाले तुझे आंसू नजर आएं कैसे।
फूल से रंग जुदा होना हंसी खेल नहीं,
अपनी मिटटी को भला छोडकर जायें कैसे।
नजीर मलिक
22 अग॰ 2009
बुद्ध की धरती से एक नया अखबार

आनंद राय , गोरखपुर
17 अग॰ 2009
वर्तिका- नयी पारी और पुरानी कविता

खता क्या है खुदा जाने
अभी इसी शुक्रवार को मनोज राय ने मुझे फोन किया. भैया एस. पी. राय नहीं रहे. सुनकर स्तब्ध रह गया. पूर्व मंत्री कल्पनाथ राय के निजी सचिव रहे एस. पी. राय के निधन की खबर वाकई मेरे लिए दुखद थी. जब मैंने होश सम्भाला तबसे एस.पी राय को देख रहा हूँ. पहले बहुत ही सामान्य थे और बाद में बेहद ख़ास हो गए. कल्पनाथ राय की सत्ता में बढ़ती दखल के साथ ही एस.पी.राय का भी खूब प्रभाव बढ़ा. मुझे याद है कि जब वे अपने इलाके में आते थे तब उनके पीछे लम्बी कतार लग जाती थी. बेहद लोकप्रिय थे. उनकी एक चिट्ठी भी आजकल के मंत्रियों के रुतबे पर भारी थी. वे सबकी सुन लेते थे. कोई भी बात सुनने पर मंद मंद मुस्कराते थे. कभी इस बात का उन्हें गुमान भी नहीं था कि कल्पनाथ राय की सत्ता उनके ही इर्द गिर्द घूमती है. उनका गाँव ठाकुरगांव मेरे गाँव कोरौली से थोड़ी दूर है. वे मेरे चाचा के सबसे ख़ास दोस्त थे. उनका बडप्प्पन यही कि जब उनका जीवन सफलता के शीर्ष पर था तब जिन्दगी की जंग में बहुत पीछे रह गए मेरे चाचा से वे अपनी दोस्ती का निर्वाह करते थे. वे जब भी आते हमारे घर जरूर आते. मेरे चाचा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. खैर एस.पी. राय और हमारे बीच पारिवारिक रिश्ता रहते हुए भी एक लिहाज था. मैं उनका बहुत सम्मान करता था. उन दिनों जब कल्पनाथ राय से जुड़ा तो मैं एक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता बन गया. एस.पी. राय ने मुझे कभी कुछ कहा नहीं लेकिन वे जानते थे कि छोटी उम्र में मुझे राय साहब के यहाँ जो महत्व मिल रहा है उसकी उम्र लम्बी नहीं है. सच भी यही हुआ. कल्पनाथ राय से मेरा वैचारिक मतभेद हो गया. उनके कुछ करीबी लोगों को मैं पसंद नहीं था और वे लोग मेरी बेबाकी पर जल भुन जाते थे. बहरहाल कलप्नाथ राय की वजह से ही मैं अखबार में आया. कुछ खबरों के छपने से कल्पनाथ राय के लोग परेशान होने लगे. उन दिनों पहली बार एस.पी. राय ने मुझ पर अपना हक़ समझते हुए कल्पनाथ राय से मिलाने की कोशिश की. मैं उनका स्वभाव समझ चुका था लिहाजा मैं मिलने नहीं गया. एस.पी. राय को मैं चाचा कहता था. और उनकी बात अनसुनी कर दी तो वे मुझसे थोडा नाराज भी हुए. कहीं मिलने पर मैं उनका अभिवादन करता और वे मुझे जवाब देकर नजर घुमा लेते. इस दौरान भी मेरे प्रति कभी उनके मन में दुर्भावना नहीं आयी. नरसिंह राव से जब कल्पनाथ राय का पंगा हुआ तभी जनसत्ता में कुमार संजय सिंह की एक रपट- वाकपटु नेता की चुप्पी के दिन, छपी. इस रिपोर्ट से मुझे अहसास हुआ कि अब कल्पनाथ राय के बुरे दिन आ रहे हैं. संजय सिंह कल्पनाथ राय के करीबी लोगों में से एक थे. कल्पनाथ राय का कांग्रेस के निकलना, मंत्रीमंडल से हटाना और फिर उन पर टाडा के तहत मुकदमा दर्ज होना. सब कुछ जल्दी जल्दी हो गया. एस.पी.राय भी टाडा के तहत फंस गए. दरअसल मुमबई के जे जे हास्पीटल में दाऊद के इशारे पर शैलेश हल्दारकर की गोली मारकर ह्त्या कर दी गयी. इसी मामले में ब्रिजेश सिंह का नाम आया. आरोप लगा कि एस.पी.राय ने कल्पनाथ राय के कहने पर गेस्ट हाउस बुक करवाया. एस.पी. राय भी तिहाड़ जेल में बंद हो गए. कल्पनाथ राय भी उसी जेल में थे. मैं दोनों लोगों से मिलने कई बार गया. मुलाक़ात कक्ष में जाली के उस पार से मुझे देखते हुए उनकी आँखे भर आयी थी. टाडा कोर्ट में भी पेशी के दौरान उनसे मिला. जेल में रहते हुए कल्पनाथ राय ने चुनाव लड़ा. उस समय एस.पी.राय और कल्पनाथ राय के बीच मतभेद की बात चल रही थी. पर एस.पी. राय ने इस बात को खारिज किया. उन्होंने अपने कई ख़ास लोगों को पत्र लिखा. मेरे एक मित्र घुन्नू एस.पी. राय की परछाई थे. एस.पी. राय जेल से रिहा हुए तो उनके घर पर आये और बहुत सी बातें हुई. रात में जब उन्होंने दो पैग लिया तो उनकी भाउकता चरम पर थी. उनसे मैंने सच जाने की कोशिश की. यही पूछा कि क्या वाकई आपने गेस्ट हाउस बुक कराया था. एस.पी. राय ने कोई सफाई देने जैसी बात नहीं की. उन्होंने एक शेर पढा- गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाकिफ, सजा को जानते है हम खता क्या है खुदा जाने. बस उनके इस जज्बात को मैंने एक रपट के रूप में दिया. यह रपट १३ अक्टूबर १९९६ को मेरे अखबार के लगभग सभी संस्करणों में छपी. एस.पी. राय से लोग सवाल करने लगे कि क्या वे चुनाव लडेंगे. उन्होंने बड़ी साफगोई से इनकार कर दिया. सियासत को उन्होंने बहुत करीब से देखा था और उन्हें लगता था कि यह किसी की नहीं है. उस जमाने में जब कल्पनाथ राय से उनके मतभेद हुए तो कल्पनाथ राय अपनी पत्नी समेत जिले की सभी विधान सभा सीटों पर प्रत्याशी लड़ा रहे थे. उनके सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए. यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी हार गयी. तब एस.पी. राय पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने ही चुनाव प्रभावित किया. इस पर उन्होंने बेबाक बयान दिया. एस.पी. राय अपने प्रति बहुत ही सजग थे और खुली किताब की तरह थे. घुन्नू के घर पर ही उन्होंने खुद मुझे बताया कि आरोप तो उनकी जिन्दगी के साथी हैं. एक बार उन पर आरोप लगा के जनरल बैद्य के हत्यारों को अपने पासोर्ट पर उन्होंने लन्दन भगा दिया. एस.पी. राय ने बताया था कि मेरा पासपोर्ट कहीं खो गया था और जिंदा और सुख्खा के हाथ लग गया. इसका उन लोगों ने प्रयोग किया लेकिन लन्दन में पकडे गए. बाद में पूना में एक अदालत लगी और वहां एस.पी. राय को भी पेश किया गया. अदालत ने सुनवाई के दौरान दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. एस.पी राय निर्दोष साबित हुए. उनसे बातचीत में और भी कई बातें छन कर आयी थी. बाद के दिनों में मैं जब भी दिल्ली गया एस.पी. राय से जरूर मिला. उन्होंने बहुत सी बातें मुझे बतायी. कनाट प्लेस में अपने मित्र विनोद जैन के यहाँ वे बैठते थे. उनके बेटे की शादी हुई तो मुझे बहुत सी जिम्मेदारी सौप दिए. उनके दिल्ली से आये कई मेहमानों की मैंने मेजबानी की और सबने यही कहा एस.पी राय जैसा आदमी मिलना मुश्किल है. पूर्वांचल से बाहर वे नकारात्मक घटनाओं की वजह से ज्यादा सुर्खियों में आये लेकिन वे कल्पनाथ राय की असली राजनीतिक ताकत थे. पर उन्होंने कभी उसका इस्तेमाल अपने लिए नहीं किया. कल्पनाथ राय के मरने के बाद भी उनके एकमात्र पुत्र सिद्धार्थ के लिए ही उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा लगाई. शायद उन जैसों के लिए ही किसी ने लिखा- हम नींव के पत्थर हैं दिखाई न पड़ ये अपनी शराफत है कि मीनार खड़ी है.
महज ५४ साल की उम्र में तमाम सुख और दुःख सहते हुए एस.पी राय ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस अपार दुःख को सहने की शक्ति।
15 अग॰ 2009
अदम गोंडवी
आइए महसूस करिए जिन्दगी के ताप कोमैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपकोजिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब करमर गई फुलिया बिचारी की कुएं में डूब करहै सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरीआ रही है सामने से हरखुआ की छोकरीचल रही है छंद के आयाम को देती दिशामैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसाकैसी यह भयभीत है हिरनी सी घबराई हुईलग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुईकल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन हैजानते हो इसकी खामोशी का कारण कौन हैथे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट कोसो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट कोडूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत सेघास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत सेआ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात मेंक्या पता उसको कि कोई भेिड़या है घात में
होनी से बेखबर कृष्ना बेखबर राहों में थीमोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थीचीख निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गईछटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गईदिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गयावासना की आग में कौमार्य उसका जल गयाऔर उस दिन ये हवेली हंस रही थी मौज मेंहोश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद मेंजुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब थाजो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब थाबढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन हैपूछ तो बेटी से आखिर वो दरिंदा कौन हैकोई हो संघर्ष से हम पांव मोड़ेंगे नहींकच्चा खा जाएंगे जिन्दा उनको छोडेंगे नहींकैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करेंऔर ये दुश्मन बहू-बेटी से मुंह काला करेंबोला कृष्ना से बहन सो जा मेरे अनुरोध सेबच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध सेपड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान मेंवे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान मेंदृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक परदेखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गयाकल तलक जो पांव के नीचे था रुतबा पा गयाकहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहोसुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहोदेखिए ना यह जो कृष्ना है चमारो के यहांपड़ गया है सीप का मोती गंवारों के यहांजैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर हैहाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर हैभेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआफिर कोई बाहों में इसको भींच ले तो क्या हुआआज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गईजाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गईवो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गईवरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रहीजानते हैं आप मंगल एक ही मक्कार हैहरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार हैकल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप कीगांव की गलियों में क्या इज्जत रहे्रगी आपकी´बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूंछों पर गए माहौल भी सन्ना गया थाक्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर थाहां मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर थारात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर जोर थाभोर होते ही वहां का दृश्य बिलकुल और थासिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ मेंएक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ मेंघेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -`जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने´निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकरएक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ करगिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गयासुन पड़ा फिर `माल वो चोरी का तूने क्या किया´`कैसी चोरी माल कैसा´ उसने जैसे ही कहाएक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहाहोश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार परठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -`मेरा मुंह क्या देखते हो ! इसके मुंह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूंक दो´और फिर प्रतिशोध की आंधी वहां चलने लगीबेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगीदुधमुंहा बच्चा व बुड्ढा जो वहां खेड़े में थावह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में थाघर को जलते देखकर वे होश को खोने लगेकुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे´´ कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएं नहींहुक्म जब तक मैं न दूं कोई कहीं जाए नहीं ´´यह दरोगा जी थे मुंह से शब्द झरते फूल सेआ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल सेफिर दहाड़े ``इनको डंडों से सुधारा जाएगाठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगाइक सिपाही ने कहा ``साइकिल किधर को मोड़ देंहोश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें´´बोला थानेदार ``मुर्गे की तरह मत बांग दोहोश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लोये समझते हैं कि ठाकुर से उनझना खेल हैऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है´´पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल`कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल ´उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार कोसड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार कोधर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार कोप्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार कोमैं निमंत्रण दे रहा हूं आएं मेरे गांव मेंतट पे नदियों के घनी अमराइयों की छांव मेंगांव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रहीया अहिंसा की जहां पर नथ उतारी जा रहीहैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिएबेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
14 अग॰ 2009
अब जेलों में भी होगी पढ़ाई और परीक्षा
आनन्द राय, गोरखपुर
मण्डलीय और जिला कारागारों में भी अब पढ़ाई और परीक्षा होगी। कारागार और शिक्षा विभाग ने इसके लिए समन्वय स्थापित कर लिया है और इस योजना को इसी सत्र से अमली जामा पहनाया जायेगा। जेलों में अक्षरों और शब्दों की गूंज से एक नये तरह के माहौल का विकास होगा और निरक्षर कैदियों को साक्षर बनाने की दिशा में कारगर पहल होगी। कारागार महानिरीक्षक और सचिव बेसिक शिक्षा परिषद की कई चक्रों की वार्ता और बैठक के बाद यह तय हुआ है कि कारागार में निरूद्ध बंदियों को कक्षा 5 व 8 की परीक्षा में सम्मिलित किया जायेगा और उन्हें प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा। कैदियों को साक्षर बनाये जाने की कार्रवाई के संदर्भ में सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भेजे गये पत्र में परीक्षा की व्यवस्था कराये जाने का निर्देश दिया है। ध्यान रहे कि जेल में तो शिक्षक की तैनाती रहती है लेकिन अब तक परीक्षा प्रणाली की कोई व्यवस्था नहीं रही। नयी व्यवस्था के मुताबिक जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जेल के बंदियों को कक्षा 5 से 8 तक का पाठ्यक्रम उपलब्ध करायेंगे। यदि किताबें बची रहेंगी तो अनुरोध करने पर नि:शुल्क पुस्तक भी उपलब्ध करायेंगे। इस संदर्भ में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सर्वदानन्द ने बताया कि कारागार के निकटवर्ती विद्यालय के प्रधानाध्यापक अपने एक शिक्षक को भेजकर परीक्षा सम्पन्न करायेंगे जबकि नामांकन का दायित्व जेल के शिक्षक का होगा। कैदियों की अर्द्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षा होगी। बीएसए को उत्तर पुस्तिका और सत्र पुस्तिका उपलब्ध कराने की भी जिम्मेदारी दी गयी है। उन्हें ही कापियों के मूल्यांकन और परीक्षाफल घोषित करने का दायित्व दिया गया है। श्री सर्वदानन्द के मुताबिक यह व्यवस्था इसी सत्र से शुरू होगी। बीएसए ने बताया कि यह व्यवस्था दोनों विभागों के आपसी समन्वय के बाद शुरू की गयी है।
पचपन साल से फाइलों में दबी है जलकुण्डी परियोजना
