29 जून 2009

सियासी दलों की सेहत का पैमाना बनेगा पड़रौना

आनंद राय , गोरखपुर :
पड़रौना विधानसभा का उप चुनाव पूर्वाचल में सियासी दलों की सेहत का पैमाना होगा। इस चुनाव को लेकर राजनीति दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। यह चुनाव केन्द्र सरकार के राज्यमंत्री और पड़रौना के निवर्तमान विधायक आर.पी.एन. सिंह की प्रतिष्ठा से जुड़ा है वहीं प्रदेश में सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है। भाजपा और सपा भी इस चुनाव को लक्ष्य कर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। कुशीनगर संसदीय सीट पर कांग्रेस के आर.पी.एन. सिंह के निर्वाचित होने से पड़रौना विधानसभा सीट रिक्त घोषित हो गयी है। अब इस सीट के लिए सभी दलों ने उम्मीदवार चयन और कार्यकर्ताओं को सहेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। चूंकि यहां तीन बार विधायक रहे आर.पी.एन. सिंह अब केन्द्र सरकार में मंत्री हैं इसलिए इस सीट पर सबसे अधिक उन्हीं की प्रतिष्ठा जुड़ी है। वर्ष 2007 में हुये चुनाव में आर.पी.एन. सिंह को 29913 मत मिले थे और उन्हें बसपा के आद्या शुक्ला ने कड़ी टक्कर दी थी। आद्या शुक्ला को 24494 मत मिले थे। महज 5419 मतों के अंतर से बसपा यहां काबिज नहीं हो पायी। तब भाजपा से सुरेन्द्र कुमार शुक्ल उम्मीदवार थे और उन्हें भी 21515 मत मिले थे। समाजवादी पार्टी के प्रसिद्ध नारायण चौहान 18572 मत पाकर पांचवें स्थान पर आ गये थे। उनसे अधिक मत एनएलपी के जावेद इकबाल को मिला। जावेद इकबाल 20945 मत पाये। समाजवादी पार्टी के सिमटने की सबसे बड़ी वजह निर्दल उम्मीदवार विक्रमा यादव बने जिन्हें 14019 मत मिले। पड़रौना विधानसभा उप चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार राजन को 3166 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सगीर को 2412 मत मिले जबकि इनके सापेक्ष भारतीय समाज पार्टी के अभय प्रताप नारायण सिंह को 5326 मत मिले। चुनाव में कुल 14 उम्मीदवार मैदान में थे। लोकसभा चुनाव में पड़रौना विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन बदल गया। बदले हुये परिसीमन में लोकसभा चुनाव हुआ और तब बसपा उम्मीदवार स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रदर्शन बेहतर रहा। हालांकि विधानसभा का उप चुनाव पुराने परिसीमन पर होना है इसलिए रणनीतिकार पिछले विधानसभा चुनाव और क्षेत्र के हिसाब से ही अपना समीकरण खड़ा कर रहे हैं। अब बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट को हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है और अभी से सेक्टर स्तर पर कार्य हो रहा है। पार्टी ने स्वामीप्रसाद मौर्य का अपना उम्मीदवार बनाकर जनसम्पर्क में लगा दिया है तो इस सीट को कायम रखने के लिए आर.पी.एन. सिंह ने भी ताना बाना बुनना शुरू कर दिया है। उधर सपा ने भी इस बार अपनी रणनीति बदली है और पूर्व मंत्री शाकिर अली को अपना उम्मीदवार बनाकर नया संदेश देने की कोशिश की है। शाकिर इससे पूर्व देवरिया जिले के गौरीबाजार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं। भाजपा के अलावा छोटे दलों का भी उत्साह दिखने लगा है।

कौन झूठा! नरेगा की वेबसाइट या प्रधान जी


आनंद राय , गोरखपुर :

केन्द्र में कांग्रेस की दुबारा सरकार बनवाने में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम यानि नरेगा की भले ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो लेकिन इस योजना की जमीनी सच्चाई सरकार के महत्वाकांक्षी उद्देश्य को मुंह चिढ़ा रही है। या तो नरेगा की वेबसाइट झूठी है या फिर गांवों के प्रधान जी झूठ बोल रहे हैं। एक बात पूरी तरह सच है कि जितने लोगों के जाब कार्ड बने हैं उन्हें काम नहीं मिल रहा है। सौ दिन काम पाने की बात तो दूर कई ऐसे हैं जिन्हें एक दिन भी काम नसीब नहीं हुआ। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित नरेगा कार्यक्रम गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है। पर गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के गरीब परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने की गरज से 2005 में शुरू किये गये इस कार्यक्रम को फरवरी 2006 में देश के 200 जिलों में पहली बार क्रियान्वित किया गया। एक अप्रैल 2008 से यह देश के सभी ग्रामीण जिलों में संचालित है। गोरखपुर जनपद के कौड़ीराम विकास खण्ड में इस कार्यक्रम की पड़ताल की गयी तो कई तरह की बेमेल बातें सामने आयी। 26 जून को नरेगा की वेबसाइट पर देखा गया तो इस विकास खण्ड के कुल 1105 परिवारों का जाब कार्ड बना है। इन परिवारों के 1206 लोग काम के लिए पंजीकृत हैं। वेबसाइट के मुताबिक इस विकास खण्ड में सिर्फ 131 लोगों को ही रोजगार मिला है। इसकी सही तस्वीर जानने के लिए जब कौड़ीराम ब्लाक पर खण्ड विकास अधिकारी से सम्पर्क की कोशिश की गयी तो पता चला कि उनकी तबियत खराब है। सहायक विकास अधिकारी सुधीर गिरी से बातचीत हुई तो उन्होंने पहले तो आंकड़ों पर आश्चर्य प्रकट किया। बहस के दौरान उन्होंने माना कि गांवों में काम की डिमाण्ड नहीं है। यानी जिनके जाब कार्ड बने हैं वे भी काम नहीं मांग रहे हैं। एक बात और भी साफ हुई कि गांवों में ग्राम पंचायतों के जरिये कुछ गिनी चुनी परियोजनाएं ही संचालित हैं और दूसरे विभाग जाब कार्ड धारकों से काम नहीं ले रहे हैं। इस विकास खण्ड के जाब कार्ड धारक रुपेश, रजई, लक्ष्मन, हरिश्चन्द्र समेत कई ने बताया कि गांव में काम रहेगा तब तो काम मिलेगा। उन्हें अब तक एक दिन भी काम नहीं मिला है। पड़ताल के दौरान इस सच्चाई से इतर नरेगा की एक दूसरी तस्वीर भी देखने को मिली। ऊंचेर ग्राम सभा के पूर्व प्रधान और मौजूदा प्रधान के पति रियाजुल से जब पूछा गया कि आपके गांव में कितना कार्ड बना है तो उन्होंने बताया कि 70 से 75 परिवार का जाब कार्ड बना है। कितने लोगों को काम मिलता है? जो काम चाहता है उन्हें मिलता है। रियाजुल के दावे के विपरीत वेबसाइट पर इस गांव के कुल 18 परिवारों को ही जाब कार्ड निर्गत है। कौड़ीराम विकास खण्ड के ही सोनाई ग्राम सभा में वेबसाइट पर केवल 15 लोगों का जाब कार्ड निर्गत है। पर इस गांव के प्रधान राम नेवास से बातचीत होती है तो कहते हैं कि हमारी ग्राम सभा में 86 परिवारों को जाब कार्ड दिया गया है। प्रधान जी से पूछा गया कि इनमें से कितने लोग काम कर रहे हैं तो उनका जवाब था कि 26 लोगों को तालाब खुदाई का कार्य दिया गया है। प्रधान जी की बात पर यकीन करें तो भी सोनाई के 60 जाब कार्ड धारकों को काम नहीं मिला। कौड़ीराम विकास खण्ड की प्रमुख नीता सिंह ग्राम प्रधानों का पक्ष लेती हैं। उनका दो टूक कहना है कि वेबसाइट पर सही आंकड़े फीड नहीं किये गये हैं। गांवों में जाब कार्ड धारकों को भरपूर काम मिल रहा है।

21 जून 2009

अब अनपढ़ नहीं रहेंगी अनाथ बेटियां


आनंद राय , गोरखपुर :

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में इस बार नामांकन के लिए विशेष अभियान चलेगा। मोटिवेशन कैम्प आयोजित कर स्कूल जाने से वंचित बेटियों को प्रेरित किया जायेगा। खासतौर पर उन बालिकाओं पर विशेष जोर होगा जो किन्हीं खास परिस्थितियों से प्रभावित हैं। कोशिश यह रहेगी कि अब अनाथ बेटियां अनपढ़ न रहें। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में शैक्षिक सत्र 2009-10 के लिए तैयारी शुरू हो गयी है। सर्व शिक्षा अभियान की राज्य परियोजना निदेशक वीना ने इसके लिए गोरखपुर-बस्ती मण्डल के डायट प्राचार्यो और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को खास हिदायत दी है। दोनों मण्डलों में कुल 55 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय हैं। इस शैक्षिक सत्र में दस साल से ऊपर की आउट आफ स्कूल बालिकाओं को नि:शुल्क आवासीय शिक्षा उपलब्ध करायी जायेगी। पहले भी यही व्यवस्था लागू थी लेकिन इस बार चयन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में उसी विकास खण्ड की बालिकाओं को प्रवेश मिलेगा जहां महिला साक्षरता दर से कम तथा जेण्डर गैप राष्ट्रीय औसत से अधिक है। आउट स्कूल बालिका जो कभी स्कूल नहीं गयी, उसे विशेष प्राथमिकता दी जायेगी। इन बालिकाओं को विशेष अभियान के तहत चिन्हित किया जायेगा। इसके लिए ब्लाक स्तर पर बैठकें होगी और कहीं भी कागजी खानापूर्ति नहीं चलेगी। इस बैठक में चिन्हित की गयी बालिकाओं की सूची दी जायेगी और उनके घर जाकर माता पिता को कस्तूरबा विद्यालय की योजनाओं की जानकारी देकर नामांकन के लिए अनुरोध किया जायेगा। बीआरसी भवन में आउट आफ स्कूल बालिकाओं तथा उनके अभिभावकों के लिए मोटिवेशन कैम्प आयोजित किया जायेगा। मिली जानकारी के मुताबिक इस कैम्प में समूह बनाकर चर्चा की जायेगी और इसमें महिला अभिभावकों, अभिभावकों और बालिकाओं का पृथक समूह बनाया जायेगा। कैम्प में प्रेरक प्रसंगों, संदर्भो और मीना फिल्मों का प्रदर्शन होगा। बालिकाओं को पढ़ाने के महत्व पर भी चर्चा होगी। यह कैम्प 29 जून को आयोजित होगा। इसके पहले सभी आवश्यक तैयारी पूरी कर ली जायेगी। ध्यान रहे कि सर्व शिक्षा अभियान की यह प्राथमिकता है कि ड्राप आउट बालिकाओं की संख्या अधिक होने पर घुमंतू परिवार की लड़कियों, अनाथ लड़कियों, कामकाजी लड़कियों और एकल अभिभावक बालिकाओं को प्राथमिकता दी जायेगी। अल्पसंख्यक इलाकों में भी विशेष नजर रखने का निर्देश दिया गया है।

20 जून 2009

संजीव चतुर्वेदी के जज्बे को बार बार सलाम

भारतीय वन सेवा २००२ बैच के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के जज्बे को सलाम। पर्यावरण की रक्षा और जीवों की सुरक्षा के लिए इस अफसर ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। अपने तेवर , जूनून और जिद से उन्होंने हरियाणा सरकार को भी झुकने पर मजबूर कर दिया। संजीव ने हार नही मानी। उन्होंने वन माफियाओं की ऐसी की तैसी कर दी। उन्हें इस वर्ष का मंजूनाथ स्मृति पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार उनके लिए प्रेरणा का सबक है और मन में विश्वास जगाने वाला एक हथियार। निसंदेह अच्छे कामों के लिए और कोई साथ हो या न हो अच्छे लोग जरूर रहते हैं।
एक शेर है-
हर नमाजी शेख पैगम्बर नही होता,
जुगनूओं का काफिला दिनकर नही होता
यह सियासत एक तवायफ का दुपट्टा है
यह किसी के आंसुओं से तर नही होता।
यकीनन संजीव को यह फलसफा मालूम था। उन्हें यह भी मालूम था की सरकार के आगे आंसू बहाने और फरियादी बन जाने से कुछ नही होगा इसलिए उन्होंने एक लम्बी लड़ाई लड़ी।
बात उन दिनों की है जब संजीव कुरूक्षेत्र में वन मंडल अधिकारी थे, तब निजी ठेकेदारों ने सरस्वती वन जीव अभ्यारण्य में हिरन की दुर्लभ प्रजाति का शिकार और वन की अवैध कटाई शुरू की थी। यह सिलसिला काफी पुराना था और इसमें बड़े बड़े लोग शामिल थे। संजीव ने इस पर अंकुश लगाने का काम शुरू किया। कानून के दायरे में रहकर इस अफसर ने माफियाओं की ऐसी की तैसी कर दी। फ़िर क्या था सब एक जुट हो गए। संजीव का तबादला फतेहाबाद कर दिया गया। यह तैनाती सजा के तौर पर थी लेकिन इसे उन्होंने बड़ी सहजता से लिया और फतेहाबाद में भी अपना अभियान जारी रखा। बस सरकार में बैठे लोगों को लगा यह तो आग है। छुटकारा पाने के लिए उन्हें निलम्बित कर दिया गया। २००७ में संजीव को बिना कारण बताये निलम्बित किया गया। निलंबन आदेश में स्पष्ट कारण का उल्लेख न होने से संजीव की त्योरी चढ़ गयी। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत निलंबन की वजह जानने के लिए अर्जी डाली लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया। संजीव ने महामहिम राष्ट्रपति के यहाँ बात की । २००८ में उन्हें राहत मिली जब महामहिम के हस्तछेप पर उनका निलंबन रद्द कर दिया गया। इसके छह माह बाद तक उन्हें कोई तैनाती नही दी गयी और अब झझर में वे तैनात हैं।
मूलतः देवरिया जिले के गौरी बाजार इलाके के बलियांवा गाँव निवासी संजीव चतुर्वेदी की ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा की गूँज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है। इसीलिये जब उन्हें इस वर्ष का मंजूनाथ स्मृति पुरस्कार दिया गया तो सिर्फ़ उनका ही नही ईमानदारी से काम करने वाले हर अफसर का हौसला बढ़ गया। इंडियन आयल कारपोरेशन के अधिकारी मंजूनाथ को कौन नही जानता। २००५ में पेट्रोल में मिलावट करने वालों के ख़िलाफ़ जब उन्होंने अभियान चलाया तो अपराधी तत्वों से उनकी ह्त्या करा दी गयी। उनकी ह्त्या के बाद भारतीय प्रबंध संसथान के छात्रों ने मिलकर मंजूनाथ ट्रस्ट की स्थापना की और उनकी स्मृति में यह पुरस्कार शुरू किया। संजीव को ही नही पूर्वांचल को भी इस बात का फख्र है की इस माटी के लाल ने अपने फर्ज के लिए सब कुछ कुर्बान करने का जज्बा रखते हुए सच का साथ निभाया। इसलिए संजीव के जज्बे को बार बार सलाम।

2 जून 2009

औद्योगिक इकाइयों की गटर बनी सहायक नदियां



आनन्द राय गोरखपुर :

पूर्वाचल की सभी सहायक नदियां औद्योगिक इकाइयों और विभिन्न कस्बों के सीवर से निकले अपजल के चलते प्रदूषित हो गयी हैं। इनके प्रदूषण ने जन जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है। कई नदियों को औद्योगिक इकाइयों ने अपना गटर बना लिया है। आमी नदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सरयूपार मैदान में बड़ी नदियों की सहायक नदियां मंद गति से बहती हैं। पहले इन छोटी नदियों का जल निर्मल और शीतल था लेकिन अब वे दिन हवा हो गये हैं। इनमें बहने वाला मीठा जल जहरीला हो गया है। यहां आमी, मनोरमा, कठिनइया, बूढ़ी राप्ती, बानगंगा, घोघी, रोहिन, गोर्रा, मझना, तरैना, बांसी, वाणी जैसी नदियों के साथ हमारा गौरव जुड़ा है। बस्ती में हरैया के पास बहने वाली मनोरमा नदी जहां दशरथ के पुत्र कामेष्टि यज्ञ की साक्षी है तो कुशीनगर जिले की बांसी नदी जनकपुर से शादी करके लौट रहे भगवान श्रीराम के बारातियों को एक दिन अपने तट पर आश्रय देने वाली है। अतिक्रमणकारियों ने बांसी नदी की सूरत बिगाड़ दी है। आलम यह है कि नदी निरंतर पट रही है और एक इतिहास विलुप्त होने के कगार पर है। प्रशासन इस नदी की ओर से बेखबर है। देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील में गोर्रा नदी, बथुआ और मझना नाला भी सरकारी उदासीनता का शिकार हो गया है। इन छोटी नदियों के तट पर रहने वाले लोग इनकी दम तोड़ती स्थिति से हलकान हैं। सर्वाधिक त्रासद स्थिति तो राप्ती के छाड़न से निकली आमी नदी की है। सिद्धार्थनगर जिले के सोहनारा से निकलकर गोरखपुर जिले के सोहगौरा में 80 किलोमीटर के सफर के बाद मिलने वाली इस नदी का अस्तित्व मिटने के कगार पर है। इस नदी को गटर बना दिया गया है। इसके बदबू और प्रदूषण से तटवर्ती सैकड़ों गांवों के लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हो गये हैं। हालांकि पिछले पांच महीने से आमी नदी की मुक्ति को लेकर सिलसिलेवार आंदोलन चल रहा है। आमी बचाओ मंच ने अपने आंदोलन की गति तेज की है लेकिन दूसरी किसी भी नदी के लिए कोई कारगर पहल नहीं हुई है।

अपनी बेबसी पर सिसक रही नदियाँ


आनंद राय , गोरखपुर :


पूर्वी उत्तर प्रदेश नदियों की तलहटी में बसा है। यहां की सभ्यता का विकास नदियों की गति के साथ हुआ और बाद के दिनों में सबकी रोजी रोटी भी इससे जुड़ गयी। अब नदियां प्रदूषित हो गयी हैं। यहां की बड़ी नदियों में नेपाल से आने वाली घाघरा, राप्ती और गण्डक नदी हैं जिनके साथ आम अवाम की तकदीर का रिश्ता जुड़ा हुआ है। औद्योगिक इकाइयों, अनियोजित विकास और सीवर के गंदे पानी से ये नदियां प्रदूषित हो गयी हैं। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। सच तो यह है कि इन सबकी मुक्ति के लिए एक और भगीरथ की जरूरत है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में घाघरा, राप्ती और नारायणी का व्यापक प्रभाव है। घाघरा नदी का उद्गम नेपाल है जो हिमालय की श्रेणियों से पिघलती हुई आगे बढ़ती है। नेपाल में इसे करनाली नाम से जाना जाता है। मैदान क्षेत्र में यह बहराइच, गोण्डा होते हुये बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़ और मऊ से होकर बलिया में गंगा नदी में मिल जाती है। 525 किलोमीटर लम्बी इस नदी को औद्योगिक इकाइयों और विभिन्न कस्बों के सीवर से निकले अपजल ने प्रदूषित कर दिया है। राप्ती नदी घाघरा की सहायक नदी है और जो सरयूपार मैदान से उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा में कर्णवत प्रवाहित होती दो भागों में विभक्त हो जाती है। प्राचीन समय में अचिरावती के नाम से जानी जाने वाली यह नदी नेपाल हिमालय की श्रेणियों से निकलकर बहराइच जनपद में मैदान में प्रवेश करती हैं। मध्यवर्ती भाग में यह नदी पश्चिम से पूर्व दिशा में पुन: दक्षिण पूर्व की ओर सर्पाकार प्रवाहित होती देवरिया-गोरखपुर की सीमा पर गौरा बरहज के समीप घाघरा में मिलती है। इस नदी की कुल लम्बाई 516 किलोमीटर है। बताते हैं कि अभी तीन दशक पहले तक इस नदी की गहराई सात मीटर थी जो अब घटकर साढ़े चार मीटर रह गयी है। नदी पट जाने से बाढ़ के दिनों में बेकाबू हो जाती है और सूखे के समय इसके अस्तित्व पर संकट छा जाता है। सरयूपार मैदान के पूर्वी सीमा पर गण्डक नदी प्रवाहित होती है। इस नदी को प्राचीन समय में हिरण्यवती कहा जाता था। यह नेपाल के बागवन से होकर कुशीनगर जिले में उत्तरी पश्चिमी सीमा पर प्रवेश करती हैं। 170 किलोमीटर लम्बे मार्ग से प्रवाहित होती है। यह नदी उतनी प्रदूषित नहीं है जितनी घाघरा और राप्ती नदी हैं। इन नदियों में पहले दुर्लभ प्रजातियां मिलती लेकिन अब वे दिन हवा हो गये हैं। नेपाल के पहाड़ों से निकलने वाली इन नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण रासायनिक कचरों का गिराया जाना है। कहते हैं कि घाघरा, राप्ती और गण्डक अपनी बेबसी पर सिसक रही हैं। जब भी इनका रुदन बढ़ जाता है तो पूर्वाचल के गांव बाढ़ में डूब जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है लेकिन इनके लिए किसी की संवेदना नहीं जाग रही है।

वे गुस्से से लाल हैं मगर ये बच्चे खुशहाल हैं


गोरखपुर में एक मुसलमान युवक ने हिन्दू रीति से शादी कर ली तो हाय तोबा मच गयी। उलेमाओं ने इसे गैर मजहबी करार दिया और उनकी भवें तन गयी। शादी शुदा बच्चों की जिंदगी फिलहाल खुशहाल है लेकिन फटे में टांग अदाने वाले परेशान हैं। वे लोग गुस्से से लाल हैं लेकिन ये बच्चे खुशहाल हैं।

हिंदू रीति से विवाह कर खुश हैं अकबर व तराबुन निशां
गोरखपुर : जनपद के जंगल कौडि़या ग्राम में शनिवार को एक सामूहिक वैवाहिक सम्मेलन में हिंदू रीति से हुई मुस्लिम जोड़े की शादी की चर्चा रविवार को भी जोरों पर रही। लीक से हटकर किये इस विवाह को जाति-सम्प्रदायवाद की रूढि़वादी परंपराओं में फंसे लोग चाहे जो मानते हों लेकिन स्वयं नवदंपत्ति अकबर अली व तराबुन निशां बेहद खुश हैं। हमारे जंगल कौडि़या प्रतिनिधि के अनुसार विवाह के दूसरे दिन रविवार को अकबर के घर में शादी समारोह से थके हारे सभी परिजन आराम की मुद्रा में थे। अकबर सो रहा था सो उसके पिता यासीन से बात हुयी। यासीन ने बताया कि गांव में हिंदू और मुसलमान लंबे समय से मुहब्बत से रहते हैं। उन्होंने कहा कि मैने अपने बेटे की शादी बहुत सोच समझकर तथा अपने सभी निकटस्थ लोगों से राय मशविरा लेकर ही की है। उन्होंने कहा कि सभी लोग इस विवाह से खुश हैं। विवाह हो गया तो इसे कैसे झुठला दें। बता दें कि बहू तराबुन निशां को विदाई कराकर अपने घर लाने के बाद यासीन ने रविवार को बहुभोज किया, जिसमें मोहल्ले के सभी हिंदू-मुसलमान शामिल हुए। दरअसल यासीन के पांच बेटे हैं जिनमें से चार की पहले ही शादी हो चुकी है। तीसरे नम्बर के अकबर की शादी इसलिए नहीं हो पा रही थी कि वह विकलांग है। बहुत ढूंढने के बाद तराबुन निशां से रिश्ता तय हुआ। तराबुन सन्तकबीरनगर जिले के बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है। यासीन बताते हैं कि उन्हें पता चला कि मानीराम क्षेत्र के विधायक विजय बहादुर यादव अपने प्रयास से बिना दहेज की शादियां करा रहे हैं। इस बात का पता चलने पर हम लोग स्वेच्छा से विधायक के पास गए और सामूहिक विवाह में ही अपने बेटे की शादी कराने का निर्णय लिया। यासीन ने कहा कि इस गांव में हिंदू हो या मुसलमान सभी लोग बहुत प्यार से रहते हैं। फिर शादी तो शादी है चाहे हिंदू रिवाज से या मुस्लिम रिवाज से। पहले तो हम सभी इंसान हैं। हमने पहले भी कहा था कि अल्लाह सबका एक है। मालूम हो कि यासीन के पांच बेटे व उसके परिवार के सभी लोग इस विवाह से प्रसन्न हैं। गांव के प्रधान अरविंद यादव से बात हुयी तो उन्होंने कहा कि हर इंसान की अपनी मर्जी है कि वो किस तरह जीना चाहता है। इसी तरह अकबर व तराबुन निशां की शादी दोनों ही परिवार की मर्जी से हुयी है तो उसमें क्या हर्ज है।

इस्लाम में सात फेरे लेना गैर शरई

जागरण , देवबंद
: गोरखपुर में एक मुस्लिम जोड़े द्वारा हिंदू रीति रिवाज से शादी करने को उलेमा ने अमान्य करार दे दिया है। उलेमा ने कहा है कि इस्लाम में सात फेरे लेना गैर शरई है और ऐसा करने वाला मुस्लिम गुनाहगार है। शरीयत के मुताबिक शादी के वास्ते निकाह करना जरूरी है। शनिवार को गोरखपुर में 27 जोड़ों की सनातन परंपरा के अनुसार दहेज रहित सामूहिक शादियां हुई हैं। इनमें एक जोड़ा मुस्लिम था। जंगल कौडि़या इलाके में आयोजित इस समारोह में मोहम्मदपुर के अकबल अली पुत्र मोहम्मद यासीन और खलीलाबाद के मजबुल्लाह की बेटी तराबुन निसां ने हिंदू रीति रिवाज से विवाह रचाकर सात जन्म तक साथ रहने का संकल्प लिया। दोनों के परिवारों की प्रतिक्रिया है, इंसानियत मजहब से बड़ी चीज है और अल्लाह सभी का एक ही है। इस प्रकरण पर देवबंद के उलेमा ने साफ कर दिया कि इस्लाम धर्म गैर शरई काम की इजाजत नहीं देता। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य और वक्फ दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मौलाना मुहम्मद सूफियान कासमी ने कहा कि मुस्लिम लड़का-लड़की का हिंदू रीति रिवाज से शादी करना गैर शरई है। ऐसी शादी की शरीयत के मुताबिक कोई मान्यता नहीं है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार दूल्हा-दुल्हन के मध्य निकाह का करार जरूरी है। जब तक दोनों का निकाह नहीं होता, तब तक शादी नहीं मानी जायेगी। फतवा विभाग के नायब प्रभारी मुफ्ती अहसान कासमी, वरिष्ठ प्रवक्ता मौलाना अब्दुल लतीफ कासमी, मौलाना इब्राहिम कासमी आदि उलेमा ने कहा कि इस्लाम धर्म के मुताबिक शादी के लिए शरई मान्यताओं का पालन करना जरूरी होता है, जो लोग ऐसा नहीं करते है वे गुनाहगार हैं। दूसरे धर्म की मान्यताओं को स्वीकार करना तथा उन पर अमल करना गैर इस्लामिक कार्य है, जिनकी इस्लाम धर्म में कोई गुंजाइश नहीं है। गोरखपुर की उक्त शादी पूर्ण रुप से गैर शरई है तथा मजहब-ए-इस्लाम के मुताबिक उनकी शादी नहीं हुई है।
..............................
Bookmark and Share