17 अग॰ 2009

वर्तिका- नयी पारी और पुरानी कविता


एक दिन भडास ४ पढा। वर्तिका नंदा एक कालेज में पत्रकारिता पढाने लगी। मुझे उनकी एक पुरानी कविता ध्यान में आयी। कविता कोष पर मैंने पढी थी। लगा जैसे इस नयी पारी के लिए बहुत पहले ही उनका एक संकेत था।

किसने कहा था तुमसे किपंजाब के गांव में पैदा होसाहित्य में एम ए करोसूट पहनोऔर नाक में गवेली सी नथ भी लगा लोबाल इतने लंबे रखो कि माथा छिप ही जाएऔर आंखें बस यूं ही बात-बिन बात भरी-भरी सी जाएं।किसने कहा था दिल्ली के छोटे से मोहल्ले में रहोऔर आडिशन देने बस में बैठी चली आओकिसने कहा थाबिना परफ्यूम लगाए बास के कमरे में धड़ाधड़ पहुंच जाओकिसने कहा थाहिंदी में पूछे जा रहे सवालों के जबाव हिंदी में ही दोकिसने कहा था कि ये बताओ कितुम्हारे पास कंप्यूटर नहीं हैकिसने कहा था बोल दो किपिताजी रिटायर हो चुके हैं और घर पर अभी मेहनती बहनें और एक निकम्मा भाई हैक्यों कहा तुमने कितुम दिन की शिफ्ट ही करना चाहती होक्यों कहा कितुम अच्छे संस्कारों में विश्वास करती होक्यों कहा कि तुम' सामाजिक सरोकारों ' पर कुछ काम करना chahtee हों अब कह ही दिया है तुमने यह सबतो सुन लोतुम नहीं बन सकती एंकर।तुम कहीं और ही तलाशो नौकरीकिसी कस्बे मेंया फिर पंजाब के उसी गांव मेंजहां तुम पैदा हुई थी।ये खबरों की दुनिया हैयहां जो बिकता है, वही दिखता हैऔर अब टीवी पर गांव नहीं बिकताइसलिए तुम ढूंढो अपना ठोरकहीं और।

4 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

यह कविता पहले भी कहीं पढी थी। कहां, याद नहीं। रचनाकार का नाम भी याद नहीं था। अभी फ़िर से पढ रहा हूं तो जान रहा हूं। अच्छी कविता है।

वेद रत्न शुक्ल ने कहा…

मीडिया की तल््ख हकीकत की गवाही है यह कविता।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है। सच्चाई के काफी करीब। एक ही अभ्यर्थी में इतनी कमियाँ हैं तो नौकरी कैसे मिले?

आनन्द जी, यह शब्द पु्ष्टिकरण यन्त्र राप्ती में प्रवाहित कर दीजिए। पाठकों से संवाद को रोकती है यह बोतल-गर्दनिया (bottle-neck):)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

ओहो! टिप्पणी जाँच यन्त्र भी लगा रखा है?

क्राइम की रिपोर्टिंग करने से असुरक्षा का भाव कुछ ज्यादा आ गया है, या तकनीक के मामले में अनाड़ी हैं इसलिए इन चोंचलों को पाले बैठे हैं?

कुछ राह आसान करिए जी।

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