17 अग॰ 2009

खता क्या है खुदा जाने

आनंद राय , गोरखपुर
अभी इसी शुक्रवार को मनोज राय ने मुझे फोन किया. भैया एस. पी. राय नहीं रहे. सुनकर स्तब्ध रह गया. पूर्व मंत्री कल्पनाथ राय के निजी सचिव रहे एस. पी. राय के निधन की खबर वाकई मेरे लिए दुखद थी. जब मैंने होश सम्भाला तबसे एस.पी राय को देख रहा हूँ. पहले बहुत ही सामान्य थे और बाद में बेहद ख़ास हो गए. कल्पनाथ राय की सत्ता में बढ़ती दखल के साथ ही एस.पी.राय का भी खूब प्रभाव बढ़ा. मुझे याद है कि जब वे अपने इलाके में आते थे तब उनके पीछे लम्बी कतार लग जाती थी. बेहद लोकप्रिय थे. उनकी एक चिट्ठी भी आजकल के मंत्रियों के रुतबे पर भारी थी. वे सबकी सुन लेते थे. कोई भी बात सुनने पर मंद मंद मुस्कराते थे. कभी इस बात का उन्हें गुमान भी नहीं था कि कल्पनाथ राय की सत्ता उनके ही इर्द गिर्द घूमती है. उनका गाँव ठाकुरगांव मेरे गाँव कोरौली से थोड़ी दूर है. वे मेरे चाचा के सबसे ख़ास दोस्त थे. उनका बडप्प्पन यही कि जब उनका जीवन सफलता के शीर्ष पर था तब जिन्दगी की जंग में बहुत पीछे रह गए मेरे चाचा से वे अपनी दोस्ती का निर्वाह करते थे. वे जब भी आते हमारे घर जरूर आते. मेरे चाचा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. खैर एस.पी. राय और हमारे बीच पारिवारिक रिश्ता रहते हुए भी एक लिहाज था. मैं उनका बहुत सम्मान करता था. उन दिनों जब कल्पनाथ राय से जुड़ा तो मैं एक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता बन गया. एस.पी. राय ने मुझे कभी कुछ कहा नहीं लेकिन वे जानते थे कि छोटी उम्र में मुझे राय साहब के यहाँ जो महत्व मिल रहा है उसकी उम्र लम्बी नहीं है. सच भी यही हुआ. कल्पनाथ राय से मेरा वैचारिक मतभेद हो गया. उनके कुछ करीबी लोगों को मैं पसंद नहीं था और वे लोग मेरी बेबाकी पर जल भुन जाते थे. बहरहाल कलप्नाथ राय की वजह से ही मैं अखबार में आया. कुछ खबरों के छपने से कल्पनाथ राय के लोग परेशान होने लगे. उन दिनों पहली बार एस.पी. राय ने मुझ पर अपना हक़ समझते हुए कल्पनाथ राय से मिलाने की कोशिश की. मैं उनका स्वभाव समझ चुका था लिहाजा मैं मिलने नहीं गया. एस.पी. राय को मैं चाचा कहता था. और उनकी बात अनसुनी कर दी तो वे मुझसे थोडा नाराज भी हुए. कहीं मिलने पर मैं उनका अभिवादन करता और वे मुझे जवाब देकर नजर घुमा लेते. इस दौरान भी मेरे प्रति कभी उनके मन में दुर्भावना नहीं आयी. नरसिंह राव से जब कल्पनाथ राय का पंगा हुआ तभी जनसत्ता में कुमार संजय सिंह की एक रपट- वाकपटु नेता की चुप्पी के दिन, छपी. इस रिपोर्ट से मुझे अहसास हुआ कि अब कल्पनाथ राय के बुरे दिन आ रहे हैं. संजय सिंह कल्पनाथ राय के करीबी लोगों में से एक थे. कल्पनाथ राय का कांग्रेस के निकलना, मंत्रीमंडल से हटाना और फिर उन पर टाडा के तहत मुकदमा दर्ज होना. सब कुछ जल्दी जल्दी हो गया. एस.पी.राय भी टाडा के तहत फंस गए. दरअसल मुमबई के जे जे हास्पीटल में दाऊद के इशारे पर शैलेश हल्दारकर की गोली मारकर ह्त्या कर दी गयी. इसी मामले में ब्रिजेश सिंह का नाम आया. आरोप लगा कि एस.पी.राय ने कल्पनाथ राय के कहने पर गेस्ट हाउस बुक करवाया. एस.पी. राय भी तिहाड़ जेल में बंद हो गए. कल्पनाथ राय भी उसी जेल में थे. मैं दोनों लोगों से मिलने कई बार गया. मुलाक़ात कक्ष में जाली के उस पार से मुझे देखते हुए उनकी आँखे भर आयी थी. टाडा कोर्ट में भी पेशी के दौरान उनसे मिला. जेल में रहते हुए कल्पनाथ राय ने चुनाव लड़ा. उस समय एस.पी.राय और कल्पनाथ राय के बीच मतभेद की बात चल रही थी. पर एस.पी. राय ने इस बात को खारिज किया. उन्होंने अपने कई ख़ास लोगों को पत्र लिखा. मेरे एक मित्र घुन्नू एस.पी. राय की परछाई थे. एस.पी. राय जेल से रिहा हुए तो उनके घर पर आये और बहुत सी बातें हुई. रात में जब उन्होंने दो पैग लिया तो उनकी भाउकता चरम पर थी. उनसे मैंने सच जाने की कोशिश की. यही पूछा कि क्या वाकई आपने गेस्ट हाउस बुक कराया था. एस.पी. राय ने कोई सफाई देने जैसी बात नहीं की. उन्होंने एक शेर पढा- गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाकिफ, सजा को जानते है हम खता क्या है खुदा जाने. बस उनके इस जज्बात को मैंने एक रपट के रूप में दिया. यह रपट १३ अक्टूबर १९९६ को मेरे अखबार के लगभग सभी संस्करणों में छपी. एस.पी. राय से लोग सवाल करने लगे कि क्या वे चुनाव लडेंगे. उन्होंने बड़ी साफगोई से इनकार कर दिया. सियासत को उन्होंने बहुत करीब से देखा था और उन्हें लगता था कि यह किसी की नहीं है. उस जमाने में जब कल्पनाथ राय से उनके मतभेद हुए तो कल्पनाथ राय अपनी पत्नी समेत जिले की सभी विधान सभा सीटों पर प्रत्याशी लड़ा रहे थे. उनके सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए. यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी हार गयी. तब एस.पी. राय पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने ही चुनाव प्रभावित किया. इस पर उन्होंने बेबाक बयान दिया. एस.पी. राय अपने प्रति बहुत ही सजग थे और खुली किताब की तरह थे. घुन्नू के घर पर ही उन्होंने खुद मुझे बताया कि आरोप तो उनकी जिन्दगी के साथी हैं. एक बार उन पर आरोप लगा के जनरल बैद्य के हत्यारों को अपने पासोर्ट पर उन्होंने लन्दन भगा दिया. एस.पी. राय ने बताया था कि मेरा पासपोर्ट कहीं खो गया था और जिंदा और सुख्खा के हाथ लग गया. इसका उन लोगों ने प्रयोग किया लेकिन लन्दन में पकडे गए. बाद में पूना में एक अदालत लगी और वहां एस.पी. राय को भी पेश किया गया. अदालत ने सुनवाई के दौरान दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. एस.पी राय निर्दोष साबित हुए. उनसे बातचीत में और भी कई बातें छन कर आयी थी. बाद के दिनों में मैं जब भी दिल्ली गया एस.पी. राय से जरूर मिला. उन्होंने बहुत सी बातें मुझे बतायी. कनाट प्लेस में अपने मित्र विनोद जैन के यहाँ वे बैठते थे. उनके बेटे की शादी हुई तो मुझे बहुत सी जिम्मेदारी सौप दिए. उनके दिल्ली से आये कई मेहमानों की मैंने मेजबानी की और सबने यही कहा एस.पी राय जैसा आदमी मिलना मुश्किल है. पूर्वांचल से बाहर वे नकारात्मक घटनाओं की वजह से ज्यादा सुर्खियों में आये लेकिन वे कल्पनाथ राय की असली राजनीतिक ताकत थे. पर उन्होंने कभी उसका इस्तेमाल अपने लिए नहीं किया. कल्पनाथ राय के मरने के बाद भी उनके एकमात्र पुत्र सिद्धार्थ के लिए ही उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा लगाई. शायद उन जैसों के लिए ही किसी ने लिखा- हम नींव के पत्थर हैं दिखाई न पड़ ये अपनी शराफत है कि मीनार खड़ी है.
महज ५४ साल की उम्र में तमाम सुख और दुःख सहते हुए एस.पी राय ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस अपार दुःख को सहने की शक्ति।

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