20 फ़र॰ 2008

सूखी नही कलम की स्याही


अरे दीवानों मुझे पहचानों । मैं डान नही हूँ। पर उन सबकी ख़बर रखता हूँ। अभी कलम में स्याही सूखी नही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में आए दिन गोलियां चलती हैं। बमों के धमाके गूंजते हैं। जब भी बड़ी वारदात होती मन कुछ लिखने को मचल जाता है। गोरखपुर में २२ मई को विस्फोट हुआ और एक परदा पडा रहा। फ़िर प्रदेश की तीन कचहरियों में विस्फोट हुआ और हमने तीन किश्तों में ख़बर लिखी। संकेत इतना अच्छा था की आजमगढ़ में छापे पड़ने लगे। लोग गिरफ्त में आना शुरू किए तो फ़िर पोल खुलती गई। हमने कोई जासूसी नही की। बस इतना की जो पिछली घटनाएँ थी और जिसे खुफिया एजेंसियों को याद रखना चाहिए उसे वे हिन्दुस्तान की जनता की तरह भूल गई थी। कुछ घटनाओं को हमने सूत्र में पिरोया और नतीजे सामने आ गए। यह तो अपने मुंह अपनी ही तारीफ करनी हुई लेकिन आज के दौर में हम अपना झंडा नही उठाएं तो कौन उठाएगा। माफ़ करना भाई कुछ ऐसे भी हैं जो रोज हमारी ही कहानियों का वाचन और लेखन करते रहते हैं। उनको शुक्रिया।

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