26 जन॰ 2010

पिण्डारी बोले हमें भी सम्मान चाहिए

आनन्द राय , गोरखपुर: इतिहास के पन्नों में लुटेरा साबित हुये पिण्डारियों ने वीर फिल्म के प्रदर्शन के बाद अपने स्वाभिमान की लड़ाई शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित चिट्ठी में पिण्डारियों ने कहा है कि सरकार हमे भी सम्मान दो ताकि हम चैन से जी सकें। यह चिट्ठी पिण्डारियों के बीच सोमवार से घूमेगी और सबके हस्ताक्षर के बाद ही इसे सौंपा जायेगा।अंग्रेजों के कहने पर बने इतिहास में कितना छुक है इसका उदाहरण इस चार्ट में है. इसमें लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज और लार्ड हेस्टिंग्ज को एक समझ लिया गया है.

 सलमान खान की फिल्म वीर के प्रदर्शन के बाद सिकरीगंज स्थित नवाब हाता में सक्रियता बढ़ गयी है। पिण्डारी सरदार करीम खां के वंशज परिवार के मुखिया अब्दुल रहमत करीम खां और उनके भाई अब्दुल माबूद करीम खां ने अपने सम्मान के लिए अभियान शुरू कर दिया। रविवार को मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के नाम सम्बोधित एक पत्रक तैयार हुआ जिसमें उन लोगों ने यह लिखा है कि पिण्डारी कौम बहुत बहादुर थी। आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ी। लेकिन मालवा प्रदेश में पिण्डारियों को घेरकर धोखे से मारा गया।
  धोखा देने के बाद भी जब बचे हुये पिण्डारी उन पर भारी पड़े तो उन लोगों ने समझौता किया। अमीर को टोंक और करीम खां को गोरखपुर के सिकरीगंज में जागीर दी गयी। वसील मुहम्मद को उन लोगों ने गाजीपुर कारागार में बंद कर दिया जहां उनकी मौत हो गयी। जबकि चीतू को जंगल में चीता खा गया। इस बहादुर कौम को अल्पसंख्यक होने के नाते इतिहास में लुटेरा लिख दिया गया। इस तथ्य को सही किया जाय और यह स्पष्ट किया जाय कि पिण्डारी कौम देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाली बहादुर कौम थी। इस अभियान के प्रवक्ता माबूद करीम खान ने कहा है कि हम अपने मुखिया के निर्देश पर इस पत्रक पर अपने समाज के लोगों का सोमवार से हस्ताक्षर करायेंगे और फिर इसे सरकार को सौंपा.
यह रपट दैनिक जागरण गोरखपुर संस्करण समेत और भी कई जगह २५ जनवरी के अंक में छपी है. 

1 टिप्पणी:

ab inconvinienti ने कहा…

अँगरेज़ इन्हें लूटने से रोकते थे इसीलिए लड़े, वर्ना ये सैकड़ों सालों से हिन्दुस्तानी गाँवों और यात्रियों को लुटते आ रहे थे. उन्हें उस समय मालवा, राजस्थान और बुन्देली राजाओं विशेषतः सिंधिया का संरक्षण प्राप्त था, सिंधिया जो की अंग्रेजों के खास वफादार थे. यही लोग इतिहास के सबसे क्रूर हत्यारों 'ठगों' को भी लूट के बड़े हिस्से के बदले पूरा प्रश्रय देते थे.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चर्चिल ने यूँ ही नहीं कहा था की 'हम भारत को डकैतों के हाथ सौंप रहे हैं'. इन्हें सम्मान दिया जाये और कुछ दिनों में पुराना व्यवसाय अपनाने की आज़ादी भी दी जाए. कल ठगी प्रथा के ठेकेदार अपना हक़ मांगने आ जायेंगे.

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