16 नव॰ 2009

मुलायम, कल्याण और संघ नया गुल खिलाने की तैयारी में

आनन्द राय , गोरखपुर


यह मेरा अपना विचार है. हो सकता है यह सिर्फ मेरी आशंका हो, यह भी हो सकता है कि यह बिल्कुल सच हो. मैं कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की नूरा कुश्ती की बात कर रहा हूँ. यद्यपि भारत की जनता जिस तरह ताजा चीजों को ही याद रखती है उस हिसाब से कब कल्याण सिंह को लाभ मिल जाय और कब मुलायम सिंह यादव बाजी मार लें, कहा नहीं जा सकता. मुझे अबकी बार पता नहीं क्यूँ लग रहा है कि मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और संघ के कुछ ख़ास लोगों की योजना कुछ नया गुल खिलाने की है. फिर से कुछ  खिचडी पक रही है.
     कल्याण सिंह ने दो बार भाजपा छोडी और दोनों बार उनके जो बयान सामने आये यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है. मुलायम सिंह यादव की सरकार भाजपा ने बनवाई. इधर जब मुसलमान सपा की सारी असलियत जान गए तबसे इन सभी नेताओं का पेट खराब है. कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद काण्ड में हिन्दुओं और मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों का दिल जीता था. इस बुनियाद पर दोनों नेतओं ने लम्बी पारी खेली. दोनों एक दूसरे का हित साधते रहे. दोनों ने जब यह जाना कि मुसलमानों का मिजाज बदल रहा है तो फिर से एक नया प्लान तैयार किया गया. लोक सभा चुनाव के दौरान जब  बिहार के शूरमा लालू यादव और राम बिलास पासवान के साथ कल्याण सिंह को लेकर मुलायम घूम रहे थे तब  आज़म खान का भूत उनका पीछा कर रहा था. सबने मुस्लिम मतदाताओं पर जोर न देकर पिछडा कार्ड खेला. एक तरफ कांग्रेस को टिकट बंटवारे में उसकी औकात बताने का दंभ और दूसरी तरफ डेढ़ दशक तक एक दूसरे को गरियाने वालों की गलबहियां, यह मंच जनता के दिलों में नहीं उतर सका. यह पिछडा
 कार्ड सिर्फ यू पी में ही नहीं, बिहार में भी नहीं चल पाया.
      लालू यादव की जमीन दरक गयी. पासवान साफ़ हो गए. मुलायम सिंह यादव की ताकत सिमट गयी और कल्याण सिंह बेचारे हो गए. लोहिया के वंशवाद विरोधी झंडे के ध्वजवाहक मुलायम सिंह यादव ने जब भाई, भतीजा और बेटे के बाद बहू के लिए भी सीट सुरक्षित करने की सोची तो उन्हें कल्याण सिंह से भी उम्मीदें थी. राजबब्बर की आंधी और समर्पित कार्यकर्ताओं की वेदना ने मुलायम के परिवारवाद की राह रोक ली. न तो उनकी खूबसूरत बहू का जादू चला और कल्याण सिंह ही कोई करिश्मा कर पाए.   मुलायम को लगा कि अब उनके तरकश में कोई तीर नहीं बचा है. उन्हें अपने उत्थान के दिन याद आये. उन्हें परिंदा पर नहीं मार सकता वाला अपना डायलाग याद आया, उन्हें तब अपने उत्थान के सबसे ख़ास सूत्रधार कल्याण का पुराना रूप  याद आया  और कल्याण का वह नारा- राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे, याद आया. मुलायम और उनके कुनबे को लगा कि हमारी राजनीति तो नफरत की आंधी में परवान चढ़ती है. ऐसी  आंधी बहाने वाला तो हमारे घर में घिरा हुआ है. बस
 यहीं से एक नए खेल की शुरूआत हो गयी.

  सियासत की धुरी बने रहने की आकांक्षा ने मुलायम सिंह यादव की सोच और राजनीति की दिशा बदल दी. उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक विचारधारा इतने टुकडों में बनती है कि यहाँ पिछडा कार्ड नहीं खेला जा सकता है. वह भी हाल के पांच सात वर्षों में तो सभी जातियों के शूरमाओं ने अपने अपने नाम की पार्टी बना ली है. सिर्फ हिन्दू मुसलमान की राजनीति ही इनके मंसूबों को आगे ले जा सकती है. इस सोच के तहत कल्याण  और मुलायम सिंह यादव की नूरा कुश्ती फिर से शुरू हुई है. अब केशरी नाथ त्रिपाठी जैसे बुनियादी भाजपाई चिल्लाते रहें कि मेरा वश चले तो मैं कल्याण सिंह को पार्टी में नहीं लूंगा लेकिन परदे के पीछे से राजनाथ सिंह और बाहर से  कलराज मिश्रा और रमापति राम त्रिपाठी जैसों ने तो फिर से गोटियाँ बिछानी शुरू कर दी है. संघ  के भी कुछ  ख़ास लोग ताना बाना तैयार करने लगे हैं. वह दिन दिखने को आ सकता है जब कल्याण की भाजपा में ससम्मान वापसी हो और नये सिरे से राम मंदिर आन्दोलन की गूँज सुनाई पड़े. भाजपा और सपा की सफलता का सबसे गहरा राज तो यही है...... यह याद  रहे अभी कल्याण सिंह अमर सिंह पर कुछ बोलने परहेज कर रहे हैं.
       यह सजग होने का वक्त है. यह इन नेताओं का कच्चा चिट्ठा खोलने का वक्त है. यह भारत की जनता को साम्प्रदायिकता की आंच से बचाने का वक्त है. यह समय रहते जाग जाने का वक्त है. यह संघ के उन नेताओं को और आगे करने का वक्त है जो मतभेद भुला कर उलेमाओं के गले मिल रहे हैं. वरना सत्ता में बने रहने की यह  आकांक्षा देश और दुनिया के सबसे ऐतिहासिक प्रदेश को फिर से दंगों की आंच में धकेल देगी. हालांकि मुझे इस बात की भी उम्मीद है कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले कल्याण सिंह के किसी बयान से अब कोई हलचल नहीं उठेगी. उनके किसी बयान से कोई रोमांच नहीं होगा.. राम मंदिर को अपने जीवन का  लक्ष्य बताने का उनका नारा शब्दों  की जुगाली भर लगता है. अब उनके इस नारे से किसी हिन्दू की कोई भुजा नही फड़कती. अब तो किसान अपने खेत खलिहान, खाद पानी और रोजमर्रा की जरूरतों में ही परेशान है. राम करें लम्बे समय से शांत चल रहे उत्तर प्रदेश को इन लोगों की नजर न लगे.

2 टिप्‍पणियां:

आशीष जैन ने कहा…

शानदार लेख ..आनंद जी
आपने बिलकुल सही कहा ...लगता है ...राजनीती का नया दंश है ....जो हिन्दुस्तान में नया परिभाषा को गढ़ रहा है ....

ranjan zaidi ने कहा…

Mitr, kahan chhupe thhe? bahut achha aur suljha hua chintan hai tumhara. Pahli blog dekh raha hoon,4 staar de diye. itne hi the. zyadi hote to ziyadi de deta. Ishq ho gaya tumse to. Yahi suljhi hui peedhi is desh ke loktantra ko bacha sakti hai.Varna rajnath singh, mulayam singh aur kalyan sigh (moorkh)Amar singh to rss ki god se kabhi utrenge hi naheen. Kaash, hamari nai nasl shikariyon ke bichhaye sanjaak ko dekhkar unki girhen khol saken. Bahut achha, mubarakbad.

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