7 नव॰ 2009

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी, तुमने प्रभाष को देखा था.

आनन्द राय , गोरखपुर



अलसुबह अशोक चौधरी का फोन आया. देर तक सोने वाले चौधरी के फोन से ही मन में शंका हो गयी. धड़कते दिल से फोन रिसीव किया. अशोक ने कहा एक दुखद खबर है- प्रभाष जी नहीं रहे. कलेजा धक् से रह गया. उनका मैं बेहद सम्मान करता हूं. इस सम्मान का सिरा तो मेरे लिखने पढ़ने के साथ ही जुड़ा है लेकिन सीधा जुडाव दस साल पहले हुआ. मुझे तारीख याद है. 22 अगस्त 1999, उस दिन गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब की पहली निर्वाचित कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण समारोह था. प्रभाष जी मुख्य अतिथि के रूप में बुलाए गए थे. उनके साथ राष्ट्रीय सहारा के तत्कालीन सम्पादक विभ्यांशु दिव्याल भी आये थे.

          प्रेस क्लब की कार्यकारिणी में मंत्री पद पर दीप्त भानु डे, संयुक्त मंत्री गिरीश पाण्डेय समेत   कई लोग निर्विरोध चुन लिए गए थे. सिर्फ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ था. अध्यक्ष के लिए पीयूष बंका और उपाध्यक्ष के लिए मैं चुना गया था. गोरखपुर के लिए यह बहुत ही नए तरह का माहौल था और इस माहौल तथा उत्साह को प्रभाष जी ने आकर नया रंग दे दिया था. समारोह में  प्रभाष जी बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने प्रेस क्लब के गठन पर प्रसन्नता जाहिर की. दिल्ली के प्रेस क्लब की हालत पर दुःख प्रकट किया और पत्रकारों से आह्वान किया कि प्रेस क्लब को मयखाना मत बनाना. उनके पहले सभी वक्ता बोल चुके थे. मुझे आभार ज्ञापन करना था. मैंने मुखातिब होते ही प्रभाष जी को वचन दिया कि प्रेस क्लब में कभी दारू नहीं आयेगी. मेरी बात पर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई. खाना खाते समय मैंने उनसे एक और बात कही जो उसी समारोह में मैंने उनको करते देखा. यह उनका बड़प्पन था और मैं कई जगह इसका उदाहरण देता हूँ. दरअसल उस कार्यक्रम में वयोवृद्ध पत्रकार ज्ञान प्रकाश राय को सम्मानित करना था. हिन्दी पत्रकारिता के शलाका पुरुष प्रभाष जी ने जब आंचलिक पत्रकार को सम्मान दिया तब उन्हें बाबू ज्ञान प्रकाश राय के संघर्ष और उम्र का अहसास हुआ. शाल डालने के बाद वे ज्ञान प्रकाश राय के पैरों में झुक गए. तब दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय का संवाद भवन तालियों से गूँज उठा. इस बात की नोटिस सभी आचार्यों ने ली और उनके बड़प्पन को सराहा.जब प्रभाष जी से मैं यह कहने लगा तो बोले कि किसी का सम्मान करो तो उसे पता चलना चाहिए.
         कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद प्रभाष जी को हम लोग एक होटल के कमरे में ले गए. उसी शाम उन्हें जाना भी था. उन्होंने कहा आराम नहीं करेंगे. गोरखनाथ मंदिर देखने की इच्छा जतायी. वे मंदिर में गए तो गुरू गोरक्ष से जुड़ी बहुत सी बातें बताने लगे. महंत अवेद्यनाथ से मुलाक़ात की और फिर कई किताबें भी खरीदे. प्रभाष जी वापस लौटने लगे तो इस बात से बेहद खुश थे कि गोरखपुर के पत्रकार रचनात्मक हैं. उन्हें इस बात की भी खुशी थी कि पत्रकारों के कार्यक्रम में शहर का बौद्धिक वर्ग पूरी शिद्दत से जुडा रहा. यह महज संयोग था कि अगली बार की कार्यकारिणी में मुझे प्रेस क्लब का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया. मेरे लिए यह रोमांच की बात थी. उन दिनों कई पत्रकार साथियों का आकस्मिक निधन हो गया. शुरू के एक दो महीने मेरे लिए बहुत मुश्किल के थे. मैं कोई कार्यक्रम भी नहीं कर पा रहा था. प्रेस क्लब में सिर्फ शोक सभा हो रही थी. उन्ही दिनों राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने और गोरखपुर आये. मुलाक़ात में मैंने प्रेस क्लब का जिक्र किया तो उन्होंने अपने कोष से पांच लाख रूपये देने की बात कही. मैंने अपनी नोटबुक से एक पन्ना फाड़ा और उन्हें प्रेस क्लब का पता दे दिया. दस दिनों बाद मुझे पता चला कि पैसा आ गया है. खैर पैसा लाने में मुझे पापड़ भी बेलना पड़ा. पैसा मिलते ही हम लोगों ने जय प्रकाश शाही की स्मृति में एक सूचना कक्ष और डाक्टर सदाशिव दिवेदी के नाम पर एक पुस्तकालय बनवाया. तभी कुछ लोगों ने यह सलाह दी कि यहाँ बार खुल जाता तो आमदनी होती. मैंने कड़ा विरोध किया और साफ़ तौर पर कह दिया कि प्रभाष जी को दिया वचन निभाउंगा. वाकई उस दिन से आज तक कभी प्रेस क्लब में दारू नहीं आयी. किसी समारोह के दौरान भाई लोग अगल बगल से गरम हो लेते हैं पर प्रेस क्लब में कोई बोतल नहीं खुलती है. मैंने साफ़ तौर पर कह दिया कि प्रभाष जी को दिया वचन निभाना है. इसे हम सबने निभाया.
      
             हमने दुबारा प्रभाष जी को बुलाया तो उन्होंने कहा जिस डेट में चाह रहे हो उस डेट में नहीं आ पाउँगा. असल में मेरी कार्यकारिणी का समय बीत चुका था इसलिए और लम्बे समय तक इन्तजार नहीं किया जा सकता था. फिर हमारी कार्यकारिणी के समापन समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह और साहित्कार अब्दुल बिस्मिलाह आये. प्रभाष जी ने हर कार्यक्रम में अपनी शुभकामना दी और कई जगह उन्होंने गोरखपुर के प्रेस क्लब का उदाहरण दिया. गोरखपुर में बाद में दूसरे आयोजन में भी वे आये. उनके निधन की खबर मिलते ही मैंने प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द शुक्ल और मंत्री धीरज श्रीवास्तव को फोन किया और शोक सभा का प्रस्ताव रखा. अध्यक्ष और मंत्री ने शनिवार को उनके व्यक्तित्व के अनुरूप एक संगोष्ठी आयोजित की है. मुझे दिल्ली में अपने रोग से जूझ रहे पत्रकार साथी रोहित पाण्डेय ने एक एसएमएस किया है - प्रभाष जी के जाने के बाद लग रहा है कि अब किसकी छाया में सुरक्षित रहेंगे पत्रकार. वह अकेले सबके रक्षक थे.
वाकई उनका जाना एक निर्मम सच है लेकिन बहुतों के दिल को बेचैन कर देने वाली इस सच्चाई को कैसे स्वीकार किया जाय. बस मन में इस बात की तसल्ली है और फिराक के शेर के माफिक कि- आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी, तुमने प्रभाष को देखा था. यकीनन कुछ गिनी चुनी मुलाकातों में ही उनके बेहद करीब होने का अहसास होता है. कभी उन्होंने अपनी ऊँचाई का अहसास नहीं होने दिया. शायद यही वजह है कि दिल और दिमाग दोनों जगह उनकी ऊँचाई जैसी कोई शख्सियत नहीं दिखती है.

3 टिप्‍पणियां:

वेद रत्न शुक्ल ने कहा…

Bhaia dukh aur bhi gahara isliye ho gaya hai ki us kad ka vaisa ab koi alane-falane nahi.

हरि जोशी ने कहा…

मुझे यह दुखद समाचार रेडियो से उस समय मिला जब मैं अपने बेटे को छोड़ने सुबह घर से निकला। उसके बाद पूरे दिन अखबार पढ़ने का मन नहीं हुआ। ये राष्‍ट्रीय क्षति है।

Expresserve ने कहा…

Prabhash ji ke jane se patrakarita jagat me jo jagah khali hui hai wah shayad hi kabhi bhare, yeh atyant hi dukhad hai.
Niraj Bahadur pal
market plus

..............................
Bookmark and Share