4 नव॰ 2009

मन को छू जाती देवेन्द्र आर्य की कवितायें


कवि देवेन्द्र आर्य की कवितायें जनमानस के भीतर बहुत ही गहराई तक असर डालती हैं. उनकी रचनाओं पर चर्चा के लिए इस मंगलवार दैनिक जागरण ने एक विमर्श आयोजित किया. दैनिक जागरण के यूनिट हेड शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी और स्थानीय डेस्क प्रभारी  संजय मिश्र की अगुआई में आयोजित इस विमर्श में उनके प्रति समाज के सभी वर्ग के लोगों की प्रतिक्रया आयी. मेरे मन में  देवेन्द्र आर्य के प्रति हमेशा सम्मान का भाव रहा है. अपनी जिन्दगी में उन्होंने बहुत ही दुःख पीडा और संत्रास भोगा है. लेकिन चेहरे पर उनकी मुस्कान उन्हें औरों से अलग करती है.                  


जन चेतना के कवि हैं देवेन्द्र आर्य : प्रो. रामदेव शुक्ल
मिथिलेश द्विवेदी , गोरखपुर :

 आज के दौर में जब कविता फैशन बन गयी है, मैगी की तरह लोग दो मिनट में इसका स्वाद चख लेना चाहते हैं ऐसे में भी देवेन्द्र आर्य की कविताएं आस्वाद छोड़ती हैं। देवेन्द्र जनचेतना के ऐसे कवि हैं जो समाज पर गहरा असर छोड़ते हैं। यह कहना है प्रख्यात साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल का।

        प्रो. शुक्ल मंगलवार को दैनिक जागरण एवं सेन्ट्रल एकेडमी के संयुक्त तत्वावधान में होटल शिवाय के सभागार में आयोजित देवेन्द्र आर्य की कविताओं पर विमर्श को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे। प्रो. शुक्ल ने कविता, गजल और गीत को अलग अलग देखने का प्रतिवाद करते हुए कहा कि कविता में गीत, गजल, काव्य सब समाहित है। अच्छे कवि सभी प्रकार के फन आजमाते हैं। उन्होंने कहा कि जनता में विश्र्वास का अलख जगाने वाली कविताएं नारा भी बन जाती हैं और सामाजिक बदलाव का मंत्र भी फूंकती हैं। आर्य की कविताओं में यह धारणा मौजूद है। देवेन्द्र आर्य की कविता के शब्द विचार माफिया को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यदि इस शब्द युग्म ने आप पर असर छोड़ दिया और उसके जरिए आपके भीतर रासायनिक क्रिया हुई तो कवि का उद्देश्य सफल हुआ। उन्होंने साहित्यकारों पर विमर्श आयोजित करने के लिए दैनिक जागरण की सराहना की। इससे पूर्व गोरखपुर विश्र्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केसी लाल ने कहा कि आर्य की कविताएं उनकी यथार्थ को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने वाले स्वभाव की उपज हैं। वे नए प्रतीकों में बात करते हैं और नए प्रतिमान गढ़ते रहते हैं। उनकी कविताएं प्रेरणा बन सकती हैं बशर्ते वे तुकों के चमत्कार में न उलझें। प्रो. अनंत मिश्र ने कहा कि आज के दौर में जब शब्द निरर्थक लगने लगे तब कविता करना कठिन काम है। खुशी की बात है कि इस दौर में भी देवेन्द्र यह काम ईमानदारी से कर रहे हैं।
              साहित्यकार एवं उत्तर प्रदेश विश्र्वविद्यालय आवासीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. चित्त रंजन मिश्र ने कहा कि देवेन्द्र आर्य की कविता में मैं आत्मा की गुप्तचरी देखना चाहता हूं। नि:संकोच वे जनपक्षधरता के अच्छे कवि हैं मगर कहीं न कहीं उनका बाहरी और भीतरी संघर्ष अलग-अलग दिखता है। इसके पूर्व अपने लिखित आधार वक्तव्य में युवा आलोचक डा. अनिल राय ने कहा कि आर्य बड़े अनुभव व बड़ी रचनाओं वाले कवि हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि उनकी शुरुआती रचानाओं में जो विद्रोह और सामाजिक क्रांति लाने का उत्साह दिखता था अब उसका लोप क्यों हो रहा है। पूछा कि आज की उनकी कविता में हड़ताली मजदूर खुद को कहां पाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दीदउ गोरखपुर विश्र्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेन्द्र दूबे ने कहा कि साहित्यिक रूप से सजग यह शहर जैसे प्रेमचंद व फिराक का है, वैसे ही आज के कवि देवेन्द्र आर्य का है। वे जनता की संवेदनाओं के शानदार शिल्पी हैं। आलोचक कपिलदेव ने कहा कि आर्य की गतिशीलता गजब की है। यही वजह है कि आज तक मेरे दिमाग में कभी नहीं आया कि उनकी कविताओं का मूल्यांकन हो। साहित्यकार मदन मोहन ने कहा कि आज के जटिल दौर में शब्दों को पकड़ने व सामज की नब्ज पकड़ने की गंभीर चुनौती है। साहसी कवि देवेन्द्र ने यह चुनौती स्वीकार की है। चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने अशआर की खूबसूरती पर बल दिया और कहा कि ज्यों-ज्यों कवि परिपक्व होता है रचनाएं गूढ़ अर्थो वाली होती जाती हैं। इसलिए देवेन्द्र की सराहना की जानी चाहिए। जगदीश नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि शब्दों के शिल्पी देवेन्द्र आर्य आम जन रुचि को संवेदना में पकाकर परोसते हैं जिससे उसका आस्वाद बढ़ जाता है।
       डा. रंजना जायसवाल ने भी अपनी राय व्यक्त की। विमर्श के आरम्भ में देवेन्द्र आर्य ने अपनी चुनिंदा कविताएं सुनायीं। इससे पूर्व डा. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत किया जबकि वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र ने संचालन किया। सेंट्रल एकेडमी के निदेशक सृंजय मिश्र ने कहा कि ऐसे आयोजन समाज को दिशा देते हैं और आगे भी वे ऐसे आयोजनों में हर संभव सहयोग देते रहेंगे। इस अवसर पर देवेन्द्र आर्य और उनकी पत्‍‌नी श्रीमती आशा श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न एवं सम्मान पत्र देकर तथा शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार एवं शायर राजेश सिंह बसर ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। शुरू में अतिथियों को ओमप्रकाश जोशी, डा. संजयन त्रिपाठी, प्रधानाचार्य गोरखलाल श्रीवास्तव, उपेन्द्र पाण्डेय, डा. विवेकानन्द मिश्र ने माल्यार्पण किया। इस मौके पर डा. रजनीकान्त पाण्डेय, पं. दयाशंकर दूबे, डा. के.सी. पाण्डेय, फतेह बहादुर सिंह, डा. सत्येन्द्र सिन्हा, टी.एन. श्रीवास्तव, महेन्द्र मिश्र, रमेश चंद गुप्त, राजकुमार राय, द्विजेन्द्र पाठक सहित भारी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।

देवेन्द्र की रचनाओं में जादू 


मौत भी जिंदगी सी हो जाए।

झूठ और सच का फ़र्क़ खो जाए।
तिश्ना लब के सिवाय कौन है जो .
सुर्ख अहसास को भिगो जाए।
पिण्ड तो छूटे वर्जनाओं से ,
जो भी होना है आज हो जाए।
ऐसे मत मांग हाथ फैला के ,
हाथ में जो है वो भी खो जाए।
मैं तवायफ़ हूँ, बेहया तो नहीं ,
थोड़ी मोहलत दे, बच्चा सो जाए।


देखना न भूलियेगा बस एक छोटे से ब्रेक के बाद

ठेकेदारों के लिए शिलन्यास.

और कवियों के लिए सबसे ख़ुशी का दिन.
उनके संग्रह के लोकार्पण का होता है।
हिन्दुस्तान की आधारशिला शताब्दियों पहले,
महारानी एलिजाबेथ ने रखी थी,
शीघ्र ही उसका लोकार्पण.
अंकल सैम के हाथों सम्पन्न होगा।
देखना न भूलिएगा,
देश की लोकार्पण की तैयारियों पर,
हमारा विशेष बुलेटिन.
बस छोटे से ब्रेक के बाद।

1 टिप्पणी:

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

आदरणीय देवेन्द्र जी का सानिध्य मुझे मिला है. उनकी कुछ रचनाएँ भी मैंने पढी हैं, गोरखपुर विश्विद्यालय के दिनों में जब कविता प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था तो देवेन्द्र जी निर्णायक मंडल में थे. आयोजन का पहला पुरस्कार देते हुए देवेन्द्र जी ने मुझे कहा था--" गलतियाँ करना , कई बार लिखना पर हाँ नक़ल नहीं करना.."
यह उनका व्यापक सामाजिक-साहित्यिक सरोकार ही तो था.

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