31 अक्तू॰ 2009

बजरंगी की गिरफ्तारी का सूत्रधार बबलू तो नहीं !

आनन्द राय , गोरखपुर।



      प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी की गिरफ्तारी सुनियोजित है या दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की विशेष रणनीति का हिस्सा? यह बहस जरायम की गलियों में गरम है। अंदेशा है कि ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू ही मुन्ना बजरंगी की गिरफ्तारी का सूत्रधार है। पहले भी उसने पुलिस और अपने हक में ऐसे कई कारनामे अंजाम दिये हैं। फजलुर्रहमान की गिरफ्तारी इसका उदाहरण है।



दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मुम्बई में बहुत ही आराम से मुन्ना बजरंगी को गिरफ्तार किया तो लोग विस्मित रह गये। इतने बड़े अपराधी की गिरफ्तारी में न कहीं धुआं उठा और न कहीं बारूदी गंध आयी। पहले भी ऐसा हुआ जब भुवनेश्वर में माफिया ब्रजेश सिंह की गिरफ्तारी हुई तो सिर्फ हाथापाई हुई। फजलुर्रहमान की गिरफ्तारी में भी इसी तरह की नौटंकी निकली। फजलुर्रहमान की गिरफ्तारी में तो साफ-साफ बात उठी कि वह ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू के ताने बाने में उलझ गया।




बरेली जेल में बंद डॉन बबलू ने अपने करीबी फजलुर्रहमान को इसलिए गिरफ्तार कराया क्योंकि वह दाऊद के कहने पर बबलू की हत्या के लिए प्रयासरत था। बबलू को यह खबर तब मिली जब लखनऊ पुलिस ने 24 नवंबर 2005 को बैंकाक में छोटा राजन पर हमला करने वाले नूरबख्श को पकड़ा। नूरबख्श लखनऊ जेल पहुंचा तो बबलू से डरा हुआ था। बबलू ने उसे अभयदान का ड्रामा किया। बदले में नूरबख्श ने बबलू के सामने कुछ राज उगल दिये। उसी ने बबलू को फजलू के प्रति आगाह किया था। सूत्र बताते हैं कि बबलू ने बरेली जेल में रहते हुए दिल्ली पुलिस के एक अफसर तक सूचना भेजी और फजलुर्रहमान की गिरफ्तारी का ताना बाना बुना। बबलू ने एक बड़े कारोबारी के अपहरण के लिए फजलू को सूचना भेजी और उसे काठमाण्डू से सोनौली बुलवाया जहां से उसे पुलिस ने उठा लिया।
ध्यान रहे, दिल्ली पुलिस के एसीपी संजीव यादव ने ही फजलुर्रहमान को गिरफ्तार किया था। उन्होंने ही मुन्ना बजरंगी को भी गिरफ्तार किया। मुन्ना बजरंगी के तार पहले से ही बबलू से जुड़े हैं। संजीव की ही टीम ने ब्रजेश सिंह को भी गिरफ्तार किया।



मुन्ना की गिरफ्तारी से माननीयों की नींद उड़ी




मुन्ना बजरंगी की गिरफ्तारी से उसके दुश्मनों और सताये गये बड़े कारोबारियों ने भले ही राहत की सांस ली है लेकिन कुछ माननीयों की नींद उड़ गयी है। यूपी पुलिस उसे रिमाण्ड पर लेगी, यह सोच कर वे परेशान हैं। 11 सितंबर 1998 को जब दिल्ली में मुठभेड़ के बाद मुन्ना बच निकला, तब गोलियां लगने की वजह से उससे बहुत पूछताछ नहीं हो पाई। 28 मई 2001 को वह जमानत पर रिहा हुआ और फिर पुलिस की पकड़ में नहीं आया। इस दौरान नेपाल के एक पूर्व मंत्री से लेकर पूर्वाचल के कई प्रमुख लोगों से उसके अच्छे रिश्ते बने। जाहिर है कि पुलिस उससे इस सच को उगलवाने की कोशिश करेगी।

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