7 अक्तू॰ 2009

डाक टिकटों के संग्रह का जुनून

आनन्द राय, गोरखपुर


 दिल में कब कौन अरमान मचल जाये और कौन किसके लिए दीवाना हो जाये कहा नहीं जा सकता। 33 साल के एम.बी.ए. अश्रि्वनी दुबे के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। कक्षा छह में पढ़ते हुये उन्हें डाक टिकटों के संग्रह का शौक लगा तो अब वह जुनून की हद तक है। अश्रि्वनी इन दिनों ऐतिहासिक चौरीचौरा पर डाक टिकट जारी कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इसके लिए हर पखवारे चौरीचौरा डाकघर जाकर संग्रहकर्ताओं को तीन सौ पोस्टकार्ड पे्रषित करते हैं। गोरखपुर जिले के दक्षिणांचल स्थित मुकंुदवार निवासी अश्रि्वनी दुबे के परिजन शहर के आजादनगर मुहल्ले में रहते हैं। दवा और शिक्षा के पेशे में दुबे परिवार सक्रिय है और अश्विनी भी परिवार के व्यवसाय से ही जुड़े हैं। पर उनकी दिनचर्या में सबसे महत्वपूर्ण कार्य डाक टिकटों का आदान-प्रदान है।

1986 में अश्रि्वनी राजकीय जुबली इण्टर कालेज में कक्षा 6 के छात्र थे। तभी दोस्तों की देखादेखी उन्हें भी डाक टिकट जुटाने का शौक लगा। वे बैंक रोड पर आकर बैंकों में आयी चिट्ठियों से डाक टिकट जुटाते थे। सन 2000 में उन्होंने इण्टरनेट का इस्तेमाल शुरू किया। तब इण्टरनेट के जरिये अन्य देशों के डाक टिकट संग्रह कर्ताओं से सम्पर्क किये। उन्होंने इण्टरनेट के जरिये पूरी दुनिया में डाक टिकटों के शौकीन मित्रों की जमात खड़ी कर ली। अश्रि्वनी का दावा है कि उनके संग्रह में दुनिया के 95 फीसदी देशों का डाक टिकट है। अश्रि्वनी दुबे को इस प्रयास के चलते खास पहचान भी मिली है। मार्च 2009 में डाक विभाग की गोपैक्स में उन्हें सिल्वर मेडल मिला। इसके पूर्व 2006 में कुशीनगर में आयोजित डाक प्रदर्शनी में उन्हें गोल्ड मेडल दिया गया। अभी बिलासपुर में इस प्रयास के लिए उनको विशेष सम्मान दिया गया है।

भारत में डाक टिकट संग्रह करने वाले कुछ खास लोगों की सूची में भी उनका नाम शामिल है। अश्रि्वनी को इस बात का दुख है कि चौरीचौरा काण्ड की गूंज पूरी दुनिया में है, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक चौरीचौरा पर कोई डाक टिकट जारी नहीं किया है। इसके लिए हर पन्द्रह दिन पर अश्रि्वनी चौरीचौरा डाक घर जाते हैं। 50 पैसे के तीन सौ पोस्टकार्ड विभिन्न संग्रह कर्ताओं को डाक से भेजते हैं। अब तक वे सात हजार से अधिक पोस्टकार्ड भेज चुके हैं। उनकी मंशा यह है कि देश भर के संग्रहकर्ताओं की लाट में उनका पोस्टकार्ड जरूर मिले। वे कहते हैं कि आजादी के संघर्ष का प्रतीक चौरीचौरा काण्ड इतना महत्वपूर्ण है लेकिन उसकी उपेक्षा उन्हें बेचैन करती है। इसीलिए वे अभियान के तौर पर कार्य कर रहे हैं। अश्रि्वनी की इस भावना से उनके दोस्त और परिचित पूरी तरह वाकिफ हैं। जब किसी को कोई खास टिकट या डाक सामग्री मिलती है तो उसे लोग अश्रि्वनी को भेंट करते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

जूनून ही तो जवां बनाता है,,,अच्छी जानकारी....शुक्रिया..

Satyendra PS ने कहा…

जुनून तो जुनून है। किसी चीज का हो जाए। यह शौक सफलता दिला रही है, बेहतर है।

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