8 अक्तू॰ 2009

एक संस्मरण और जोड़ दूं, ओ मेरे इतिहास रुको तो


आनन्द राय  , गोरखपुर :



लालपुर गांव के 95 साल के किसान रामधनी राय की आंखों में अतीत के सभी सुहाने पल तैरते हैं लेकिन वर्तमान की कड़वी यादों ने उन्हें पीढि़यों समेत बेचैन कर दिया है। गांव के हर बुजुर्ग और युवा के मन में अपने गौरव को पाने की बेचैनी है। सभी कुछ बेहतर करना चाहते हैं लेकिन प्रदूषित आमी ने गांव में दुख का अलार्म बजा दिया है। पर यहां के वाशिन्दों से पूछिये तो सभी यही कहना चाहते हैं- एक संस्मरण और जोड़ दूं, ओ मेरे इतिहास रुको तो। गांव में इतिहास को रोकने का अर्थ आमी नदी को प्रदूषण से मुक्ति। आमी को पहले की तरह धवल, अविरल बनाना। नयी पीढ़ी के युवा खेतिहर जितेन्द्र यादव की आंखों में कुछ ऐसा ही आत्मविश्र्वास झलकता है। राजेन्द्र राय कहते हैं कि जिस दिन आमी प्रदूषण से मुक्त होगी उस दिन गांव की काया पलट जायेगी। इस समय गांव की कथा तो सिर्फ इतनी है कि यहां अथ पर इति की पहरेदारी हो रही है। सब कुछ सिमटने लगा है। पानी प्रदूषित हुआ तो खेती सूख गयी। डेढ़ दशक से सिंचाई के लिए यहां के लोगों ने खूब पापड़ बेले हैं। कई लोगों ने बोरिंग कराया और 500 से लेकर 600 मीटर तक पाइप लगाकर मशक्कत से सिंचाई कर रहे हैं। खेत में जितनी लागत लगती उतना मुनाफा नहीं हो पाता। पहले आमी का पानी खेतों को हरा भरा कर देता था। 1997-98 में ही इस गांव को अम्बेडकर ग्राम सभा में चयनित किया गया। पर यहां की यादव बस्ती और एक दलित बस्ती में अभी तक बिजली नहीं पहुंची। लगभग 4000 की आबादी वाले इस गांव के प्रधान राधाकृष्ण ने विकास का बेहतर खाका तैयार किया पर सरकारी तंत्रों की बेरूखी और आमी नदी के कहर ने अवरोध दर अवरोध खड़ा कर दिया। कई जगह ठीक से रास्ता नहीं है। विकास की मूलभूत सुविधाओं के बीच फंसे इस गांव के बिंद, मल्लाह जब आमी बेहतर थी तब मछली मारकर रोटी रोजी चलाते थे लेकिन अब तो आमी नदी में मछलियां मिलती ही नहीं हैं। इसीलिए भानु बिंद, रघुवंश बिन्द, परमहंस जैसे युवाओं ने मुम्बई जैसे महानगरों की राह पकड़ ली है। प्रधानाध्यापक पद से अवकाश प्राप्त गोरख और किसान राजेन्द्र राय कहते हैं कि नदी के प्रदूषण ने गांवों की रौनक छीन ली है। पहले यहां विजयादशमी के मेले के दिन लोग नदी तट तक जाते थे और आमी का आशीर्वाद लेते थे लेकिन अब तो नदी की ओर कोई नहीं जाता। विधिचंद यादव को इस बात का मलाल है कि गांव के कई पशु नदी का जहरीला पानी पीकर या तो मर गये या उन्हें खउरा रोग लग गया। इसीलिए न तो सुबह की गुनगुनी धूप अच्छी लगती है और न ही चढ़ता हुआ सूरज। गांव की संध्या धुंध की छांव जैसी लगती है। गांवों में तनाव, कुण्ठा, संत्रास और आपसी तनावों से कपट और छलावा भी बढ़ने लगा है। फिर भी लोग सम्बंधों की हथकड़ी में जुड़े हैं और यही चाहते हैं कि आमी नदी प्रदूषण से मुक्त हो जाये।

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है । मगर इतिhaहस कहाँ रुकता नज़र आ रहा है। स्थिति दिन ब दिन नद से बद्तर होती जा रही है फिर भी आशा है शायद कहीम कुछ बदल जाये आभार

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