आनन्द राय , गोरखपुर
प्रोफेसर परमानंद बहुत ही सहज हैं। उन पर दैनिक जागरण ने एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया और महानगर में खास तरह की हलचल देखी गयी। उन दिनों जब मैं विश्वविद्यालय बीट पर रिपोर्टिंग करता था तब वे वहाँ अपने आख़िरी दिनों में थे। बहुत ही सादगी के साथ। मैं उनसे गाहे बगाहे बातचीत करता। अक्सर तब जब कोई प्रतिक्रिया लेनी होती। बाद के दिनों में उन्हें व्यास और भारत भारती जैसे सम्मान मिले तो उनकी ख्याति भी खूब बढ़ी। जब दैनिक जागरण ने उन पर विमर्श आयोजित किया तो उनके प्रिय शिष्य और युवा आलोचक अनिल राय ने बहुत ही सारगर्भित तरीके से स्थगित हो चुके परमानंद को एक नयी राह दिखाई। अनिल राय की यह विनम्रता थी और गुरू के प्रति आदर भाव पर इस आधार वक्तव्य पर सभी केंद्रित हो गए। सबने कमोवेश वही बात कही।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष सुरेन्द्र दुबे ने साफ़ किया -परमानंद जी अपनी आलोचना में मुक्तिबोध के लिए जो ऊँचाई रखते हैं वही शब्द किसी उभरती हुई कवयित्री के लिए भी। यह सोच उनके स्त्री प्रेम को दर्शाता है। परमानंद ने अपनी जो कवितायें पढी उसके केन्द्र में भी स्त्री थी। उन्होंने स्वीकार किया वे इस आकर्षण से मुक्त नही हैं। मैंने उनका यह आकर्षण देखा है। प्रेस क्लब में परमानंद जी बहुत पहले सीमा शफक नाम की एक खूबसूरत कवयित्री को लेकर आए। उन्होंने मुझसे उनका परिचय कराया। वे बहुत भली महिला हैं पर परमानंद जी ने जिस तरह उनके साहित्य की प्रशंसा की उससे मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी। बाद में माल्विका और अनिता अग्रवाल में भी उन्होंने उसी तरह की दिलचस्पी दिखाई। इससे पहले अनामिका और महुआ की तारीफ़ करते वे नही थकते थे। मेरे कहने का मतलब यह बिल्कुल नही ये कवयित्रियाँ अच्छी रचना नही kartee । मैं कहना यह चाहता हूँ की इनके दौर में बहुत से अच्छा लिखने वाले हैं जिन पर परमानंद की नजर नही गयी। एक दौर में अशोक वाजपेयी जैसे मठाधीश के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले परमानंद को अचानक क्या हो गया। अनिल राय ने जब उनके स्थगित होने की बात कही तो मुझे साफ लगा यही हकीकत है। परमानंद ने नामवर के ख़िलाफ़ भी अपने स्वर मुखर किए लेकिन तब जब उन्हें नामवर अपनी राह में खटकते हुए नजर आए। जो शख्स कभी अपने प्रतिरोध की ताकत से पहचाना गया उसे क्या हो गया।
मुझे लगता है दैनिक जागरण के शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी और संजय मिश्रा ने विमर्श का आयोजन करके परमानंद जी को एक नयी ताकत दी। मुझे याद है परमानन्द kaa स्त्री आकर्षण। २००६ में दैनिक जागरण का संवाद आयोजित हुआ। भोजपुरी फ़िल्म अभिनेत्री रानी मिश्रा आयी थी और एक फोल्क डांस के लिए तैयार हो गयी पर कुछ लोग नही चाहते थे यह डांस हो। परमानंद जी मुझसे कहने लगे यह तो ख़राब बात है। एक कलाकार का आदर नही हो रहा है। चूँकि वह अभिनेत्री मेरे बुलाने पर आयी थी इसलिए परमानंद जी की भावनाओं से अवगत कराने के लिए मैंने उनसे मिलवा दिया। घंटे भर से अधिक समय तक वे रानी मिश्रा के साथ रहे। उन्होंने रानी मिश्रा पर एक रपट भी लिखी। वह रपट कहाँ छपी यह तो नही पता लेकिन ख़ुद उन्होंने ही मुझसे कहा था - रानी की प्रतिभा का मैं कायल हूँ और मैंने एक ख़ास रपट तैयार की है। जो हो मुझे लगता है परमानंद जी देह से मन की ओर जाने वाले कवि हैं। चूँकि हिन्दी का आदमी उदार होता है इसलिए वह अपनी उदारता उनके साथ जरूर दिखाता जिनके करीब जाना चाहता है। परमानंद को स्त्रियाँ आकर्षित करती हैं इसलिए वे इनके प्रति अपनी उदारता भी दिखाते हैं। उनकी आलोचना में अगर कहीं से लोगों को यह बात खटकती है तो मैं सिर्फ़ यही कहूंगा की यह तो उनकी उदारता है।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष सुरेन्द्र दुबे ने साफ़ किया -परमानंद जी अपनी आलोचना में मुक्तिबोध के लिए जो ऊँचाई रखते हैं वही शब्द किसी उभरती हुई कवयित्री के लिए भी। यह सोच उनके स्त्री प्रेम को दर्शाता है। परमानंद ने अपनी जो कवितायें पढी उसके केन्द्र में भी स्त्री थी। उन्होंने स्वीकार किया वे इस आकर्षण से मुक्त नही हैं। मैंने उनका यह आकर्षण देखा है। प्रेस क्लब में परमानंद जी बहुत पहले सीमा शफक नाम की एक खूबसूरत कवयित्री को लेकर आए। उन्होंने मुझसे उनका परिचय कराया। वे बहुत भली महिला हैं पर परमानंद जी ने जिस तरह उनके साहित्य की प्रशंसा की उससे मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी। बाद में माल्विका और अनिता अग्रवाल में भी उन्होंने उसी तरह की दिलचस्पी दिखाई। इससे पहले अनामिका और महुआ की तारीफ़ करते वे नही थकते थे। मेरे कहने का मतलब यह बिल्कुल नही ये कवयित्रियाँ अच्छी रचना नही kartee । मैं कहना यह चाहता हूँ की इनके दौर में बहुत से अच्छा लिखने वाले हैं जिन पर परमानंद की नजर नही गयी। एक दौर में अशोक वाजपेयी जैसे मठाधीश के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले परमानंद को अचानक क्या हो गया। अनिल राय ने जब उनके स्थगित होने की बात कही तो मुझे साफ लगा यही हकीकत है। परमानंद ने नामवर के ख़िलाफ़ भी अपने स्वर मुखर किए लेकिन तब जब उन्हें नामवर अपनी राह में खटकते हुए नजर आए। जो शख्स कभी अपने प्रतिरोध की ताकत से पहचाना गया उसे क्या हो गया।
मुझे लगता है दैनिक जागरण के शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी और संजय मिश्रा ने विमर्श का आयोजन करके परमानंद जी को एक नयी ताकत दी। मुझे याद है परमानन्द kaa स्त्री आकर्षण। २००६ में दैनिक जागरण का संवाद आयोजित हुआ। भोजपुरी फ़िल्म अभिनेत्री रानी मिश्रा आयी थी और एक फोल्क डांस के लिए तैयार हो गयी पर कुछ लोग नही चाहते थे यह डांस हो। परमानंद जी मुझसे कहने लगे यह तो ख़राब बात है। एक कलाकार का आदर नही हो रहा है। चूँकि वह अभिनेत्री मेरे बुलाने पर आयी थी इसलिए परमानंद जी की भावनाओं से अवगत कराने के लिए मैंने उनसे मिलवा दिया। घंटे भर से अधिक समय तक वे रानी मिश्रा के साथ रहे। उन्होंने रानी मिश्रा पर एक रपट भी लिखी। वह रपट कहाँ छपी यह तो नही पता लेकिन ख़ुद उन्होंने ही मुझसे कहा था - रानी की प्रतिभा का मैं कायल हूँ और मैंने एक ख़ास रपट तैयार की है। जो हो मुझे लगता है परमानंद जी देह से मन की ओर जाने वाले कवि हैं। चूँकि हिन्दी का आदमी उदार होता है इसलिए वह अपनी उदारता उनके साथ जरूर दिखाता जिनके करीब जाना चाहता है। परमानंद को स्त्रियाँ आकर्षित करती हैं इसलिए वे इनके प्रति अपनी उदारता भी दिखाते हैं। उनकी आलोचना में अगर कहीं से लोगों को यह बात खटकती है तो मैं सिर्फ़ यही कहूंगा की यह तो उनकी उदारता है।
2 टिप्पणियां:
हम भी फूल-पचक लेते हैं कि हमरे शहर में परमानन्द जी भी हैं। भारत-भारती और व्यास दूनों पा चुके हैं। बिरले हैं... हेन-तेन।
thik hai
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