19 मई 2009

भाजपा से कम वोट पाकर सीट पाने में आगे रही कांग्रेस

गोरखपुर : आनंद राय

बस्ती और गोरखपुर मण्डल की नौ संसदीय सीटों पर सभी दलों को मिले मतों को जोड़कर देखा जाय तो सर्वाधिक क्षति सपा की हुई। 2004 के चुनाव में इस अंचल में वोटों के लिहाज से सबसे आगे रहने वाली सपा इस बार सबसे पीछे हो गयी। दोनों मण्डलों में पिछले चुनाव के मुकाबले सपा को लगभग पांच लाख मतों की क्षति उठानी पड़ी जबकि बसपा से उसे सात लाख से अधिक मतों से पीछे रह जाना पड़ा। भाजपा दूसरे नम्बर पर रहकर भी सीटों के मामले में पिछड़ गयी और कम वोट पाकर भी कांग्रेस ने करिश्मा कर दिया। अबकी बार गोरखपुर-बस्ती मण्डल में सर्वाधिक वोट और सर्वाधिक सीटें बहुजन समाज पार्टी को मिली। वोटों के लिहाज से दूसरे नम्बर पर रहने वाली भारतीय जनता पार्टी सीट पाने के मामले में कांग्रेस से पीछे हो गयी। इस बार बसपा को चार सीटें और 1763700 मत मिले। जद यू समेत भाजपा 1521739 मत पाकर सिर्फ दो सीटों पर ठहर गयी। अलबत्ता 1245178 मत पाकर कांग्रेस ने तीन सीटें हासिल की। दोनों मण्डलों में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 1040411 मत मिले। 2004 के चुनाव में सपा सबसे आगे थी। तब सपा को 1539765, भाजपा को 1537945, बसपा को 1417694 और कांग्रेस को 1155244 मत मिले। वैसे इस बार मतों का बिखराव भी खूब हुआ। बस्ती मण्डल में पीस पार्टी का प्रदर्शन करिश्माई हो गया। अधिकार मंच परिवर्तन मंच ने भी कुछ सीटों पर वोटों में सेंधमारी की। अल्पसंख्यक इलाकों में एकतरफा कब्जा जमाने वाली सपा इस बार अपना जादू नहीं चला सकी। यद्यपि अल्पसंख्यकों ने बसपा को भी बहुत महत्व नहीं दिया लेकिन उनके वोटों के बिखराव का लाभ उसे जरूर मिला। जहां पिछली बार बसपा सपा से इन दोनों मण्डलों में 122071 मतों से पीछे थी वहीं इस बार उसे 723289 मतों की बढ़त मिली। सपा की हालत तो इतनी पतली हुई कि पिछली बार उसे जो मत मिले इस बार उसमें 499354 मतों की कमी आ गयी। कांग्रेस ने तो पिछली बार मिले अपने मतों में सिर्फ 89934 मतों की बढ़त हासिल की लेकिन उसे तीन सीटें मिल गयी जबकि पिछली बार सिर्फ एक सीट मिली थी। यह जरूर है कि कांग्रेस के कई क्षेत्रों में मतों का ग्राफ काफी नीचे आ गया। मसलन बांसगांव में महावीर प्रसाद अपने पिछली बार मिले मतों का आधा मत भी नहीं पा सके तो देवरिया में भी कांग्रेस के बालेश्र्वर यादव पिछले चुनाव के मुकाबले कम वोट पाये। गोरखपुर में लालचंद निषाद, बस्ती में बसंत चौधरी और संतकबीरनगर में फजले मसूद का वोट भी पिछले चुनाव के मुकाबले कम रहा। दोनों मण्डलों में भाजपा को पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार सिर्फ 16206 मत कम मिले। पर इस बार भाजपा का प्रयोग फ्लाप हो गया। इसका गढ़ महराजगंज बिखर गया वहीं बस्ती में मजबूत रहने वाली भाजपा दरक गयी। योगी आदित्यनाथ ने अपने पक्ष में गोरखपुर में मतों का धु्रवीकरण करके भले भाजपा के मतों की संख्या बढ़ा दी लेकिन दूसरी सीटों पर उनका जादू नहीं चल सका। महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती जैसी सीटों ने तो निराश ही किया। बसपा को भितरघात और अतिविश्र्वास ले डूबा। वरना शुरूआती दौर में जो स्थिति बन रही थी वह आखिरी समय तक कायम नहीं रह सकी। सपा को जनता ने उपेक्षित कर दिया और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुलायम सरकार में मंत्री रहे ब्रह्माशंकर त्रिपाठी और विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पाण्डेय को जनता ने महज साठ हजार मतों में समेट दिया जबकि ये दोनों दिग्गज पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।

1 टिप्पणी:

Satyendra PS ने कहा…

You are right. But this is also fact that in Eastern UP including Varanasi Zone, there is no any leader of any party who can clame for the CM post in state. After veer bahadur singh, Eastern UP is leaderless & public is voting according wev or according candidate. In present scenario, we can look the strong Eastern UP in leadership of congress because of RPN Singh & jagadambica Pal. Perhaps scenario will be change in coming Vidhansabha Election.

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