25 मई 2009

कांग्रेस : प्रदेश में बल्ले-बल्ले तो जिले में मायूसी

राजेश शुक्ल, गोरखपुर
लोक सभा चुनाव के बाद देश व प्रदेश में जहां कांग्रेस पार्टी की बल्ले-बल्ले हो रही है वहीं गोरखपुर जनपद में पार्टी के अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के बाद मायूसी छाई हुई है। पार्टी की मायूसी का सबसे बड़ा कारण बांसगांव संसदीय सीट पर बतौर केन्द्रीय मंत्री महाबीर प्रसाद की जमानत जब्त हो जाना है तथा गोरखपुर सीट पर पार्टी के तीस हजार वोट तक ही सिमट जाना है। संगठन के लोग इन दोनों सीटों पर करारी हार का ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ रहे हैं। कांग्रेसी इसका कारण सांगठनिक कमजोरी मान रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर मण्डल में कांगे्रस के हिस्से केवल एक सीट आयी थी। तब बांसगांव संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में महाबीर प्रसाद जीते थे। पार्टी ने इस जीत का इनाम देते हुए उन्हें केन्द्रीय कैबिनेट में स्थान देकर पूर्वाचल में नया संदेश देने की कोशिश की, लेकिन पांच साल बाद तस्वीर ऐसी बदल गयी कि 2009 के चुनाव में यहां पार्टी हासिये पर चली गयी। चुनावी समीकरण ऐसा बिगड़ा कि इस सीट पर महाबीर प्रसाद की जमानत तक नहीं बची। 2009 के चुनाव में कांगे्रस ने महराजगंज व कुशीनगर लोस सीटों पर विजय हासिल की है, जबकि गोरखपुर में उसका अब तक सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। चुनाव के ऐन मौके पर कांग्रेस में आए बालेश्वर यादव ने देवरिया सीट पर यद्यपि सपा का समीकरण बिगाड़ दिया लेकिन कांग्रेस के लिए कुछ खास नहीं कर पाए, जबकि सलेमपुर सीट पर कांग्रेसी भोला पाण्डेय पिछली बार की तरह ही जीतती बाजी हार गये। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2004 के लोकसभा चुनाव में विपरीत लहर के बावजूद बांसगांव क्षेत्र से महाबीर प्रसाद ने 1.80 लाख वोट हासिल कर कांग्रेस का झण्डा फहराया था। पार्टी हाईकमान से उन्हें इस कामयाबी का ईनाम भी मिला और वे कैबिनेट मंत्री बने लेकिन इस बार उन्हें मात्र 76 हजार मतदाताओं ने वोट दिया और वह पहले से चौथे नंबर पर पहुंचे गये। स्थिति यह रही कि चौरी-चौरा विधानसभा क्षेत्र जहां से कांगे्रस पार्टी ने विधान सभा चुनाव में जीत दर्ज की है वहां भी महावीर प्रसाद केवल 13.76 हजार वोट ही पा सके। इस विधानसभा क्षेत्र में भी वह चौथे स्थान पर ही रहे। सदर संसदीय क्षेत्र में तो कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछले पच्चीस वर्षो से इस क्षेत्र से कांग्रेस का कोई सांसद नहीं बना। वर्ष 1984 में मदन पाण्डेय आखिरी बार यहां से सांसद चुने गए। उसके बाद से गोरखपुर के भगवा लहर में कांग्रेस की नैया डूबती ही चली गयी। न केवल पार्टी हारती रही बल्कि लगातार मतों के प्रतिशत में भारी गिरावट आई। इस बार पुराने खाटी कांग्रेसी लालचंद निषाद को पार्टी ने मैदान में उतारा था। उम्मीद थी कि पार्टी के पारंपरिक वोटों के साथ-साथ लालचंद निषाद को स्वजातीय वोटों का लाभ मिलेगा लेकिन उन्हें महज 30 हजार वोट ही मिल सके। जनपद के दोनों लोकसभा क्षेत्रों में कांगे्रस के इस खराब प्रदर्शन को लेकर कांग्रेसियों में घोर मायूसी है। कांग्रेस नेता इसे संगठन की कमजोरी मान रहे हैं और अन्दर ही अन्दर नये सिरे से पूरे संगठन को परिवर्तित करने के लिए अपने अपने संरक्षणदाताओं को समझाने में लग गये हैं। इस सम्बन्ध में जब जिलाध्यक्ष संजीव सिंह से बातचीत की गयी तो उन्होंने कहा कि बांसगांव व गोरखपुर की जनता अभी जाति धर्म की राजनीति से नहीं उबर पायी है जिसके चलते यहां हार हुयी। पाटी संगठन की निष्कि्रयता के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस प्रकार का आरोप निराधार है चुनाव में हमारे सभी तहसील व ब्लाक पदाधिकारी पूरी तरह सक्रिय रहे हैं। महानगर अध्यक्ष चौधरी इरशाद हुसेन ने कहा कि सदर क्षेत्र से प्रत्याशी चयन की घोषणा ऐन नामांकन के पहले हुई जिसके कारण हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, अगर प्रत्याशी की घोषणा पहले हो गयी होती तो स्थिति अलग होती। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री सैयद जमाल अहमद ने कहा कि हमें इस पर आत्ममंथन करना होगा। हार के कई करण हैं जिसमें संगठन भी एक कारण हो सकता है।

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