7 अप्रैल 2009

राही मासूम और आज की राजनीति




आनंद राय, गोरखपुर


बात 1953 की है. राही मासूम रजा के पिता बशीर हुसैन साहब उन दिनों ग़ाज़ीपुर कचहरी के नामी वकील हुआ करते थे. वह भी जमीदार परिवार से आए वकील. तब ग़ाज़ीपुर में नगर पालिका का चुनाव हो रहा था. काँग्रेस ने बशीर साहब को अपना उम्मीदवार बनाया. उनके खिलाफ वामपंथियों ने आम आदमी के बीच से पब्बर राम को अपना उम्मीदवार बनाया. राही मासूम रजा और उनके भाई मुनीश रजा ने पब्बर राम का समर्थन किया. अपने पिता के खिलाफ पब्बर के साथ खड़े रहे और दिलचस्प यह कि पब्बर भाई चुनाव जीत गये. उसी ग़ाज़ीपुर जिले में चुनाव हो रहा है और वहां अंसारी परिवार चुनाव मैदान में डटा है. अफ्जाल अंसारी और मुख्तार अंसारी ग़ाज़ीपुर और वाराणसी सीट से चुनाव मैदान में हैं. पूरा खानदान जोर आजमाईश में लगा है. बगल में बलिया सीट पर नीरज शेखर अपने पिता चंद्रशेखर की विरासत के लिए जूझ रहे हैं. उसके बगल की सलेमपुर सीट पर उनके ही परिवार के रविशंकर भी मैदान में हैं. संतकबीर नगर में भाजपा अध्यक्ष रमापति राम अपने पुत्र शरद के लिए परेशान हैं. यहाँ पिछली बार सांसद रहे कुशल तिवारी के लिए उनके पिता और लोकतांत्रिक काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यकश हरिशंकर तिवारी ने भी अपनी ताकत लगायी है. बांसगांव में पूर्व सांसद सुभावती पासवान अपने पुत्र कमलेश पासवान के लिए जी जान से जुटी हैं. कुशीनगर में सपा के ब्रह्मा शंकर, बसपा के स्वामीनाथ और भाजपा के विजय डूबे के पुत्र उनका प्रचार कर रहे हैं. यहाँ काँग्रेस के आर पी एन सिंह अपने पिता की विरासत पाने के लिए जूझ रहे हैं. गोरखपुर में महंत अवेद्य नाथ अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जूटे हैं।

बस्ती में प्रदेश के मंत्री रामप्रसाद चौधरी भी अपने भतीजे अरविंद चौधरी को संसद में भेजने की जुगत लगा रहे हैं. महराजगंज में अजीतमानी अपने भाई अमरमणि का खडाऊ लेकर चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे माहौल में राही मासूम रजा का याद आना लाजिमी है. फैज़ की वह रचना बेहद मौजू हो जाती है. लाजिम है कि हम भी देखेंगे, हम देखेंगे हम देखेंगेजब ताज उछले जायेंगे और तख्त गिराये जायेंगे हम देंखेंगे हम देंखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे................................................................................................

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