20 अक्तू॰ 2009

जातियों की राजनीति में सामाजिक जरूरत थे सोनेलाल

आनन्द  राय, गोरखपुर.






 दीपावली के दिन अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर सोनेलाल पटेल की मार्ग दुर्घटना में निधन की खबर आयी तो सहसा यकीन नहीं हुआ. उनमें गजब का तेवर था और खुद के प्रति आत्मविश्वास. वर्ष १९९० में मेरी उनकी पहली मुलाकात हुई थी. तब वे मेरे गाँव के बगल में हरिपरा में एक समारोह में आये थे. आयोजन में मैं भी था और  जब मंच से मैंने उनका स्वागत किया तो वे अभिभूत थे. अपना नंबर दिए और मिलते रहने को कहा. पर मेरी राह बदल गयी और बहुत सालों तक मुलाक़ात नहीं हुई. फिर अखबार में रहते हुए एक बार मुझे उनकी प्रेस कांफ्रेंस में जाने का मौका मिला. मैंने उन्हें अपनी पहली मुलाक़ात की याद दिलाई. वे कुछ देर तक सोचते रहे और फिर मेरी सेहत में आये परिवर्तन की ओर इशारा किया. असल में जब मैं उनसे पहली बार मिला था तो २०-२२ साल का था. खैर इसके बाद उनसे मिलने जुलने का सिलसिला बना रहा.
  मुझे उनकी कुछ चीजे पसंद थी. जो कहते थे खुलकर कहते थे. एक बार कहने लगे कि ताकत का मतलब होता है. हमने पूछा कि आप कहना क्या चाहते हैं तो बोले कि पहले जब मैं निकलता था तो सब कहते थे कि कुर्मी का बच्चा जा रहा है लेकिन जब मैंने अपनी हैसियत दिखाई तो लोग मेरे आगे पीछे घूमने लगे. सोनेलाल की एक और बात मुझे अच्छी लगती. वे कहते थे कि मैं उसी आदमी की मदद करना चाहता जो अपनी मदद खुद करता है. मैं किसी को अपाहिज और लाचार बनाने का पक्षधर नहीं हूँ. लोहिया के समाजवाद को अपनाते हुए उन्होंने खासकर पिछडों को एक जुट किया. उनकी वकालत की और उनके लिए लड़े. जातीय वयवस्था में उनका घोर तर्क कभी कभी मुझे विचलित भी करता. कभी कभी लगता कि ये कितने कट्टर हैं पर जब मैं सोचता कि यह सब तो सामाजिक बदलाव का संकेत है तब मेरा मन खुद शांत हो जाता. यद्यपि यह बात मुझे हमेशा चुभती है कि इस देश में सियासत की धुरी जातियाँ हो गयी हैं. मुलायम सिंह यादव अहीरों के कंधे पर बैठ कर राजनीति कर रहे हैं तो मायावती दलितों कि भावनाओं से कारोबार कर रही हैं. सोनेपटेल की राह भी इन सबसे अलग नहीं रही. पर यह भी तो सोचिये कि एक दशक के अन्दर सभी जातियों के शूरमाओं ने अपनी अपनी पार्टी बना ली. एक और बात यह कि इनमें से अधिकाँश की राजनीतिक ट्रेनिंग बहुजन समाज पार्टी में हुई. अभी कुछ साल से भारतीय समाज पार्टी खूब चर्चा में है. इस पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर हैं. शायद कोई ऐसा दल नहीं होगा जिसके दर पर राजभर ने समझौते का चारा न फेंका हो और ऐन मौके पर उन्हें झटका न दिया हो. इन दलों के पास वोट भी है. पर इनकी संख्या जितनी बढ़ रही है उतना ही संतोष भी बढ़ रहा है. लोग अपने अपने खेमों और कुनबों में सिमट कर क्या कर लेंगे. इस बार लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में उखड चुकी कांग्रेस लौटी तो उसके पीछे एक वजह यह भी थी. वरना सच तो यही है कि जातियों की खेप बांटने का काम अपने फायदे के लिए कांग्रेस ने ही तो शुरू किया.
                बहरहाल राजनीति में अब मूल्यों की बात तो बेमानी है. सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं. सोनेलाल पटेल अन्दर से बहुत ताकतवर आदमी थे. उन्होंने अतीक जैसे माफिया से राजनीतिक फायदे के लिए हाथ बढाया लेकिन जब अतीक ने भरोसे का खून किया तो उनसे रिश्ता तोड़ने में भी देर नहीं लगाई. उनका निधन बेहद दुखद है. इसलिए भी कि जातियों की मौजूदा राजनीति में वे सामाजिक जरूरत थे. वे वैलेंस करने की ताकत रखते थे. अब उनकी पार्टी कैसे चलेगी और नयी अध्यक्ष उनकी पत्नी कृष्णा पटेल संगठन को कितना मजबूती से चला पाएंगी यह तो वक्त बताएगा. इस दुःख भरे मौके पर भी मैं उन्हें यह शुभकामना जरूर दूंगा कि वे समाज को जोड़ने के लिए कुछ काम करें और अपने पति का नाम जिंदा रखें.

     मार्ग दुर्घटना या साजिश
जागरण संवाददाता

     मार्ग दुर्घटना में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने उनकी पत्नी कृष्णा पटेल को अपना दल का अध्यक्ष चुन लिया। वहीं कृष्णा पटेल व उनकी पुत्री अनुप्रिया ने मार्ग दुर्घटना को साजिश बताते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग की। उनके मुताबिक सोनेलाल पटेल की मात्र 17 दिन में दो बार मार्ग दुर्घटना हुई थी। परिवार ने जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की है। 1989 में बसपा के टिकट पर चौबेपुर से विधानसभा चुनाव लड़ने वाले सोने लाल पटेल ने चार नवंबर 1994 को बसपा छोड़कर अपना दल बनाया था। वह खुद पार्टी अध्यक्ष थे। दीपावली वाले दिन मार्ग दुर्घटना में उनका निधन हो गया था।
       उनके आवास पर बैठक में राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने कृष्णा पटेल को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। कृष्णा पटेल इस समय अपना दल की महिला इकाई की भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अध्यक्ष के चयन के लिए हुई बैठक में राष्ट्रीय महासचिव प्रेमचंद्र, कोषाध्यक्ष आरबी सिंह, प्रभारी शीला, संत राम सरोज, लखन राज सिंह समेत कई राष्ट्रीय पदाधिकारी थे। अध्यक्ष चुने जाने के बाद पत्रकार वार्ता में कृष्णा पटेल व उनकी बेटी अनुप्रिया ने सड़क हादसे को साजिश बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व मुख्यमंत्री मायावती से घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि सोनेलाल पटेल की बढ़ती लोकप्रियता से उनके विरोधी परेशान थे। इससे पहले एक अक्टूबर को लखनऊ जाते समय बंथरा के पास उनकी कार को ट्रक ने टक्कर मार दी थी। उस दुर्घटना में सोनेलाल पटेल बाल-बाल बच गये थे।
            17 दिन बाद 17 अक्टूबर को फिर मार्ग दुर्घटना होना सामन्य नहीं है। उनकी सुरक्षा 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद वापस ले ली गयी थी। इसके लिए मुख्यमंत्री से लेकर आला अफसरों तक को पत्र लिखे लेकिन कुछ न हुआ। 2008 में लखनऊ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। उन्होंने पूरे परिवार को सुरक्षा देने की मांग की। उनकी पुत्री अनुप्रिया ने बताया कि 25 अक्टूबर को लखनऊ में शोक सभा होगी।

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