20 सित॰ 2009

जमीन पर उतरो मेरे हुजूर


कभी ऊंचे आसमान से

जमीन पर उतरो मेरे हुजूर

कभी तो ख़ास होने का लिबास उतार दो

कभीतो तोड़ दो अपना गुरूर

जमीन और आसमान भले दूर दूर हों

पर उनके बीच बना है एक रिश्ता

भाप और बारिश का रिश्ता

ओस और दूब का रिश्ता

ख्यालों का रिश्ता, निगाहों का रिश्ता

सोचो तो .....................रिश्ता ही रिश्ता

ये कोई अनमोल वचन नहीं हैं

यह तो मन की कथा है

इसके साथ बधी हैं गहरी गाथाएँ

तुम्हारे मन पर इसकी छाप पड़ जाए

तो तुम भी हो सकते हो आसमान की तरह ऊँचे

और धरती की तरह सबको सह लेने वाले।

शायद तब सूरज का ताप भी तुम्ही बन जाओ

और चाँद का अहसास भी तुमसे ही हो ...

3 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

खास तो वही होगा जो ज़मीन पर होगा.

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना व .

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना व .

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