29 जून 2009

कौन झूठा! नरेगा की वेबसाइट या प्रधान जी


आनंद राय , गोरखपुर :

केन्द्र में कांग्रेस की दुबारा सरकार बनवाने में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम यानि नरेगा की भले ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो लेकिन इस योजना की जमीनी सच्चाई सरकार के महत्वाकांक्षी उद्देश्य को मुंह चिढ़ा रही है। या तो नरेगा की वेबसाइट झूठी है या फिर गांवों के प्रधान जी झूठ बोल रहे हैं। एक बात पूरी तरह सच है कि जितने लोगों के जाब कार्ड बने हैं उन्हें काम नहीं मिल रहा है। सौ दिन काम पाने की बात तो दूर कई ऐसे हैं जिन्हें एक दिन भी काम नसीब नहीं हुआ। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित नरेगा कार्यक्रम गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है। पर गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के गरीब परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने की गरज से 2005 में शुरू किये गये इस कार्यक्रम को फरवरी 2006 में देश के 200 जिलों में पहली बार क्रियान्वित किया गया। एक अप्रैल 2008 से यह देश के सभी ग्रामीण जिलों में संचालित है। गोरखपुर जनपद के कौड़ीराम विकास खण्ड में इस कार्यक्रम की पड़ताल की गयी तो कई तरह की बेमेल बातें सामने आयी। 26 जून को नरेगा की वेबसाइट पर देखा गया तो इस विकास खण्ड के कुल 1105 परिवारों का जाब कार्ड बना है। इन परिवारों के 1206 लोग काम के लिए पंजीकृत हैं। वेबसाइट के मुताबिक इस विकास खण्ड में सिर्फ 131 लोगों को ही रोजगार मिला है। इसकी सही तस्वीर जानने के लिए जब कौड़ीराम ब्लाक पर खण्ड विकास अधिकारी से सम्पर्क की कोशिश की गयी तो पता चला कि उनकी तबियत खराब है। सहायक विकास अधिकारी सुधीर गिरी से बातचीत हुई तो उन्होंने पहले तो आंकड़ों पर आश्चर्य प्रकट किया। बहस के दौरान उन्होंने माना कि गांवों में काम की डिमाण्ड नहीं है। यानी जिनके जाब कार्ड बने हैं वे भी काम नहीं मांग रहे हैं। एक बात और भी साफ हुई कि गांवों में ग्राम पंचायतों के जरिये कुछ गिनी चुनी परियोजनाएं ही संचालित हैं और दूसरे विभाग जाब कार्ड धारकों से काम नहीं ले रहे हैं। इस विकास खण्ड के जाब कार्ड धारक रुपेश, रजई, लक्ष्मन, हरिश्चन्द्र समेत कई ने बताया कि गांव में काम रहेगा तब तो काम मिलेगा। उन्हें अब तक एक दिन भी काम नहीं मिला है। पड़ताल के दौरान इस सच्चाई से इतर नरेगा की एक दूसरी तस्वीर भी देखने को मिली। ऊंचेर ग्राम सभा के पूर्व प्रधान और मौजूदा प्रधान के पति रियाजुल से जब पूछा गया कि आपके गांव में कितना कार्ड बना है तो उन्होंने बताया कि 70 से 75 परिवार का जाब कार्ड बना है। कितने लोगों को काम मिलता है? जो काम चाहता है उन्हें मिलता है। रियाजुल के दावे के विपरीत वेबसाइट पर इस गांव के कुल 18 परिवारों को ही जाब कार्ड निर्गत है। कौड़ीराम विकास खण्ड के ही सोनाई ग्राम सभा में वेबसाइट पर केवल 15 लोगों का जाब कार्ड निर्गत है। पर इस गांव के प्रधान राम नेवास से बातचीत होती है तो कहते हैं कि हमारी ग्राम सभा में 86 परिवारों को जाब कार्ड दिया गया है। प्रधान जी से पूछा गया कि इनमें से कितने लोग काम कर रहे हैं तो उनका जवाब था कि 26 लोगों को तालाब खुदाई का कार्य दिया गया है। प्रधान जी की बात पर यकीन करें तो भी सोनाई के 60 जाब कार्ड धारकों को काम नहीं मिला। कौड़ीराम विकास खण्ड की प्रमुख नीता सिंह ग्राम प्रधानों का पक्ष लेती हैं। उनका दो टूक कहना है कि वेबसाइट पर सही आंकड़े फीड नहीं किये गये हैं। गांवों में जाब कार्ड धारकों को भरपूर काम मिल रहा है।

1 टिप्पणी:

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

आपकी रिपोर्ट सही हो सकती है लेकिन मुझे लगता है इसमें ग्राम-प्रधानो का कोई दोष नहीं है .नरेगा में अब इतनें कार्यक्रम घोषित हो चुके है की केवल मजदूरी ही नहीं अपितु बहुत सारी चीजों को अब इसमें जोड़ दिया गया है जिसको बताने के लिए ही पूरे प्रदेश में खुली -बैठके हो रही हैं .

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