16 अक्टू॰ 2008
अरविन्द का बुकर
३३ साल के अरविन्द को बुकर अवार्ड मिला हैइसे लेकर हाय तौबा मची है मुझे लग रहा है कि यू पी और बिहार की गरीबी को शब्दों में पिरो कर और उसे बेचकर लोग बाग़ पुरस्कार जीत रहे हैं अक्सर देखा जा रहा है कि हम लोग सिर्फ़ किस्से और कहानियों की विषय वास्तु बन कर रह गए हैं कई फिल्में भी यहीं की जमीन से जुडी होती हैं और उसमें हमारे यहाँ की भाषा और बोली शामिल करके खूब पैसा कमाया जा रहा है वही फिल्में हिट भी होती हैं अमिताभ ने फिल्मों में यहाँ की बोली शामिल कर दी वह बाक्स आफिस पर हिट कर गयी दुनिया गिरमिटिया मजदूरों के इस इलाके की भूख, गरीबी और दर्द को अपने मजे का विषय समझ रही है अरविन्द के उपन्यास में जिस ट्रक ड्राइवर की जिंदगी को नायक और खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है वैसी जिंदगी तो बहुतेरों की है लेकिन उसमे मजा यह है कि आगे बढ़ने के लिए बिहार और यू पी के लोग कैसे होते हैं मुम्बई और दिल्ली में तो यू पी और बिहार के लोगों को किस नजर से देखा जाता है यह भी किसी से छिपा नही है
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2 टिप्पणियां:
anand ji, yun lagata hai ki purvanchal ki kismat main kuchh esa hi hai. yah to vakt hi batayega badalav kab tak hoga. ummid karata hun badalav ki bayar ki ek muhim gorakhpur se shuru hogi.
gangesh srivastava
hindustan, chandigarh,
09888948650
s.gangesh@gmail.com
anand ji, yun lagata hai ki purvanchal ki kismat main kuchh esa hi hai. yah to vakt hi batayega badalav kab tak hoga. ummid karata hun badalav ki bayar ki ek muhim gorakhpur se shuru hogi.
gangesh srivastava
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