15 दिस॰ 2011

चुनाव में मुसीबत बनेंगे अवैध असलहे

आनन्द राय
लखनऊ, 12 दिसंबर : सूबे में बड़े पैमाने पर अवैध असलहों की खेप उतारी जा रही है। इसमें बिहार के देशी तथा इटली और यूएसए के बने असलहे भी शामिल हैं। खबर है कि 2012 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे दबंग किस्म के लोग ये असलहे खरीद रहे हैं। अभिसूचना संकलन में बराबर इसकी आमद की खबर मिल रही है, लेकिन असली संचालकों तक पुलिस के हाथ नहीं पहंुच रहे हैं। इससे सरकार की नींद उड़ी है, क्योंकि चुनाव आयोग ने असलहा रखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। इन दिनों असलहों की बरामदगी पर पुलिस का जोर है।

अभी तक बिहार के मुंगेर जैसे इलाकों में बने कंट्री मेड असलहों की आपूर्ति हो रही थी, लेकिन बीते कुछ दिनों में अत्याधुनिक अवैध असलहों की बरामदगी ने नए नेटवर्क का राजफाश किया है। अब नेपाल और इंदौर से भी अवैध असलहे लाए जा रहे हैं। इस महीने मेरठ पुलिस ने छह असलहा तस्करों को गिरफ्तार कर इटली और यूएसए की बनी 32 बोर की छह पिस्टल बरामद कीं। मुजफ्फरनगर में भी इटली की छह और यूएसए निर्मित चार पिस्टल के साथ एक अभियुक्त गिरफ्तार किया गया। उसने बताया कि नेपाल से लाकर वह मुजफ्फरनगर, बागपत और मेरठ में असलहे बेचता है। मथुरा पुलिस ने मध्यप्रदेश के इंदौर से असलहा लाकर बेचने वाले गिरोह के चार सदस्यों को असलहों के साथ पकड़ा।

खरीदारों तक नहीं पहंुच रहे हाथ : आए दिन किसी न किसी जिले की पुलिस तस्करी में लगे कैरियरों को पकड़ती है और उनका चालान कर देती है। छूटने के बाद वे फिर धंधे में लग जाते हैं, लेकिन पुलिस न असली संचालक और न ही असली खरीदार तक पहंुच पाती है। चुनाव के दौरान होने वाली हिंसक घटनाओं पर गौर करें तो ज्यादातर मामलों में अवैध असलहों का ही प्रयोग होता है। इस बात से पुलिस महकमा भली भांति परिचित है।

कैसे मिलते हैं कारतूस : सबसे बड़ा सवाल असलहों के लिए मिलने वाले कारतूस का है। अवैध असलहे तो कहीं बन सकते हैं, लेकिन कारतूस तो वैध फैक्टि्रयों में ही बनते हैं। पिछली घटनाओं पर नजर डालें तो पुलिसकर्मियों और शस्त्र विक्रेताओं ने ही अवैध तरीके से कारतूस मुहैया कराया है।

गौर करें 2004 में मिर्जापुर के पीएसी शस्त्रागार के हेड कांस्टेबल ने 99589 कारतूस गायब किए थे। 2008 में गोरखपुर, रामपुर, बस्ती और बलिया समेत कई जिलों में शस्त्रागारों से कारतूस गायब होने का खेल उजागर हुआ और कई आरमोरर पकड़े गए। पिछले साल एसटीएफ ने लखनऊ के मोहनलालगंज से हिमाचल प्रदेश के लाइसेंसी शस्त्र विक्रेता मनवीर कैथू और रामप्रताप भदौरिया को गिरफ्तार किया तो पता चला कि कारोबार की जड़ पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और हिमाचल तक जुड़ी है।
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अब पुलिस भी रखेगी चुनावी खर्च का ब्योरा


लखनऊ, 12 दिसंबर (जाब्यू) : इस बार के चुनाव में पुलिस पर कानून व्यवस्था पर नियंत्रण के साथ ही प्रत्याशियों के चुनावी खर्च पर भी नजर रखने की जिम्मेदारी होगी। अधिक से अधिक सूचनाएं हासिल करने के लिए चुनाव आयोग इनकी मदद लेगा। आयोग ने प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों को इस बारे में जरूरी निर्देश दे दिए हैं। वे जिलों में तैनात अधिकारियों को इस नई भूमिका के बारे में 14 दिसंबर को बैठक बुलाकर समझाएंगे। 23 दिसंबर को लखनऊ में कार्यशाला का आयोजन भी होगा ताकि सभी विभागों में समन्वय बना रहे।

आयोग का मानना है कि पुलिस को स्थानीय समझ अधिक होती है, इसलिए वे कहां कौन प्रत्याशी किसे प्रलोभन दे रहा है, इस बारे में सहजता से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आयोग उनकी इसी क्षमता का लाभ उठाना चाहता है। शासन के सूत्रों के अनुसार मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा ने पिछले दिनों पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें इस बाबत जानकारी दे दी है। कहा है कि हर विधानसभा क्षेत्र में पुलिस के बड़े अफसरों से लेकर सिपाही तक की मदद ली जाए। पुलिसकर्मियों को यह पता करना होगा कि प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में कितनी गाडि़यां लगी हैं, कितने कार्यकर्ता किस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं, प्रतिदिन किस प्रत्याशी और उसके समर्थकों ने कहां-कहां पर चुनावी सभाएं की, जनसम्पर्क के दौरान प्रत्याशी एवं उसके समर्थक कहां-कहां और किन किन वाहनों से गए, किस प्रत्याशी ने क्षेत्र में कहां-कहां कुल कितने पोस्टर-बैनर आदि लगवाए, किस प्रत्याशी ने मोटरसाइकिल या कार रैली निकाल कर प्रचार किया और किस प्रत्याशी ने अपने क्षेत्र में कंबल, साड़ी, अनाज आदि बांटा। पुलिस यह सूचनाएं निर्वाचन आयोग के प्रेक्षक को देगी।

14 दिसंबर को जिलों में तैनात एएसपी को आयोग की अपेक्षा से अवगत कराया जाएगा। इसके बाद सभी पुलिस कप्तानों तथा रेंज आइजी एवं डीआइजी को इसकी जानकारी दी जायेगी। पुलिसकर्मियों को अवैध शराब एवं शस्त्र आदि की धरपकड़ के लिए क्षेत्र में अभियान चलाने के भी निर्देश दिए जाएंगे।

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