20 फ़र॰ 2010

डॉन की जान खतरे में

गोरखपुर। बड़बोले माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव और उसके गुर्गो की जान खतरे में है। ये लोग नेपाली माफियाओं की आंख की किरकिरी हो गये हैं। इनकी हस्ती मिटाने के लिए अण्डरव‌र्ल्ड में 'बोली' लगनी शुरू हो गयी है। बबलू की पेशी के दौरान कभी भी यह 'बोली' 'गोली' में तब्दील हो सकती है। खुफिया एजेंसियों ने भी सरकार और सुरक्षा तंत्र को इससे अवगत करा दिया है।


काठमाण्डू में 7 फरवरी को मारे गये मीडिया किंग और दाऊद के खास जमीम शाह की हत्या का इल्जाम बरेली जेल में बंद डान बबलू और उसके साथियों पर है। इसके पहले भी मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या से लेकर फजलूर्रहमान की गिरफ्तारी तक कई मामलों में बबलू का नाम उछलता रहा है। बबलू ने हमेशा फोन के जरिये एक-दूसरे गैंग से तार जोड़ने की भूमिका निभायी है। वह कुछ खास पुलिसकर्मियों का मददगार है। लंबी रकम लेकर आईएसआई के इशारे पर काम करने वालों की हत्या में भी सक्रिय है। इसीलिए पाक दूतावास के एक अफसर, जमीम के रिश्तेदार और आईएसआई परस्त कई बड़े माफिया बबलू का विकेट गिराने की योजना बना रहे हैं। उधर भारतीय फेक करेंसी के साथ पकड़ा गया नेपाल के पूर्व मंत्री सलीम मियां अंसारी का पुत्र यूनुस अंसारी भी बबलू से खफा है।
यूनुस ने अपने साइलेंट प्रतिद्वंदी जमीम शाह को निपटाने की डील एक करोड़ रुपये में बबलू से की थी। बबलू के चलते ही इस डील को अमलीजामा पहनाया जा सका। यूनुस के लोगों को शक है कि जमीम की हत्या के बाद खुद बड़बोले बबलू ने ही यह राज जाहिर कर दिया। अण्डरव‌र्ल्ड की सूचना के मुताबिक अब खुद को सच्चा साबित करने के लिए यूनुस कोई भी जोखिम उठाने को तैयार है। बबलू को निपटाने में वह उन भारतीय अपराधियों की मदद ले सकता है जिन्हें समय समय पर पनाह देता रहा है।
जमीम के खून के छींटे धोना चाहता यूनुस
यूनुस अंसारी ने सोचा था कि जमीम शाह की हत्या से उसकी राह का कांटा निकल जायेगा लेकिन हुआ ठीक उल्टा। एक तरफ उसकी मुश्किलें बढ़ीं तो दूसरी तरफ वह अपने ही लोगों की निगाह में दागी हो गया। इससे न सिर्फ उसकी ताकत कमजोर हुई बल्कि अपने सहयोगियों का भी निशाना बन गया। पाक दूतावास इस मामले पर पर्दा डालते हुये अपने सभी सहयोगियों को एक साथ रखने की मुहिम में जुटा है। काठमाण्डू सेंट्रल जेल में बंद यूनुस इस मुहिम में सक्रिय होकर जमीम के खून के छींटों को धोना चाहता है।



यूनुस को बचाने में जुटी नेपाल पुलिस

गोरखपुर, 16 फरवरी। नेपाल के मीडिया किंग और दाऊद इब्राहिम के सहयोगी जमीम शाह की हत्या के हफ्ते भर बाद पुलिस ने रहस्य से पर्दा उठाने का दावा कर दिया है लेकिन इस पूरे घटना क्रम में वह यूनुस अंसारी को बचाने में जुट गयी है। नेपाल पुलिस अपने यहां के कुछ लोगों का नाम जोड़कर सिर्फ भारतीय अपराधियों के नाम की लकीर पीट रही है। बबलू श्रीवास्तव, भगवंत सिंह उर्फ भरत नेपाली, दीपक शाही उर्फ बबलू सिंह और छोटा राजन का कनेक्शन जोड़कर पुलिस ने कमोवेश जमीम शाह मर्डर केस की तफ्तीश पूरी कर दी है।
नेपाल के एआईजी कदम खड़का ने मीडिया के समक्ष शाह मर्डर केस की फाइल खोलते हुये बबलू श्रीवास्तव और भरत नेपाली को कसूरवार ठहराया। इस मामले में नेपाल के पुलिस कर्मी प्रकाश क्षेत्री को संदिग्ध करार दिया जबकि घटना में छह अन्य नेपालियों की भी संलिप्तता बतायी। शूटर के तौर पर मोहम्मद वकार और उसके साथी का नाम उजागर हुआ। जमीम की हत्या के तत्काल बाद दैनिक जागरण ने अपनी रपट में यह आशंका जाहिर की कि वर्चस्व की लड़ाई और अपनी गिरफ्तारी के शक के चलते पूर्व मंत्री सलीम मियां अंसारी के बेटे यूनुस अंसारी ने जमीम का खेल खत्म करा दिया। अगले दिन दस फरवरी के अंक में 'यूनुस व भरत के संबंध तलाश रही पुलिस' शीर्षक से बबलू श्रीवास्तव, भरत नेपाली और यूनुस अंसारी के कनेक्शन जोड़ते हुये एक और खबर प्रकाशित की जिसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया कि यूनुस को बचाने में पुलिस सक्रिय हो गयी है।
प्रारंभ में नेपाल पुलिस ने अपनी तफ्तीश के केन्द्र में यूनुस को रखा और काठमाण्डू सेण्ट्रल जेल में उससे कई च्रकों में पूछताछ की। बाद में पुलिस ने यह तर्क गढ़ा कि हत्यारे पहले यूनुस अंसारी पर ही हमला बोलने वाले थे लेकिन उसके जेल जाने के बाद इरादा बदल दिये और निशाने पर जमीम आ गये। सूत्रों का कहना है कि भगोड़े सैनिक भरत नेपाली और बदायूं के दीपक शाही की आमदरफ्त बबलू श्रीवास्तव के जरिये यूनुस से रही है। घटना की पृष्ठभूमि तैयार करने में इनकी भूमिका भले रही हो लेकिन पुलिस कर्मी प्रकाश क्षेत्री और शूटर मोहम्मद वकार से यूनुस के संबंधों पर पर्दा क्यों डाला जा रहा है। दरअसल नेपाल पुलिस इण्टरनल गैंगवार रोकने के लिए पूरा मामला भारतीय अपराधियों के हवाले कर रही है। इस हाई प्रोफाइल मर्डर मिस्ट्री में नेपाल के कुछ और प्रमुख लोगों की भूमिका है। वैसे इस मामले में वाराणसी जेल में बंद एक व्यक्ति पर भी नेपाल पुलिस शक की निगाह लगाये है।
यूनुस व भरत के रिश्तों का सिरा तलाश रही पुलिस
गोरखपुर। स्पेस टाइम्स ग्रुप के प्रबंध निदेशक जमीम शाह की हत्या की गुत्थी सुलझाने में जुटी नेपाल पुलिस पूर्व मंत्री सलीम मियां अंसारी के बेटे यूनुस अंसारी और भरत नेपाली के बीच तालमेल की जड़ तलाश रही है। भरत नेपाली द्वारा जमीम शाह की हत्या की जिम्मेदारी लिये जाने के बाद ही पुलिस की तफ्तीश में कई नये आयाम जुड़ गए हैं। बरेली जेल में बंद अंडरव‌र्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव के रिश्तों पर भी पुलिस की नजर है।
छोटा राजन गैंग के महत्वपूर्ण अंग रहे भरत नेपाली ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि जमीम की हत्या उसने करवायी है। पुलिस मान रही है इस हत्या में कई चैनल शामिल हैं।
29 जून 1998 को मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या, छह अक्टूबर 2009 को नेपालगंज में डॉन माजिद मनिहार की हत्या और 25 दिसम्बर को बुटवल में परवेज टांडा की हत्या की कड़ी में ही पुलिस जमीम की हत्या को भी जोड़ रही है। ये सभी आईएसआई और दाऊद के मोहरे रहे, इसलिए इनकी हत्या के तार कहीं न कहीं भारतीय अपराध जगत से जुड़ गये। वैसे नेपाल पुलिस की सबसे चौकस निगाह भारतीय जाली करेंसी के साथ पकड़े गये आईएसआईपरस्त यूनुस अंसारी पर ही है। इस खेल में यूनुस और भरत की भूमिका कहां तक हो सकती है इसके लिए अंडरव‌र्ल्ड के कुछ नामी मोहरों से उनके कनेक्शन की जांच हो रही है। केंद्र में बबलू श्रीवास्तव का भी नाम उभरकर सामने आया है। जगजाहिर है कि छोटा राजन, बबलू श्रीवास्तव और भरत नेपाली के बीच बेहतर रिश्ते रहे हैं। मुम्बई बम विस्फोट के बाद दाऊद और छोटा राजन के बीच तनातनी बढ़ी तो बबलू छोटा राजन खेमे में आ गया। तब भी सलीम मियां से उसके सम्पर्क बने रहे। अपने अधूरा ख्वाब उपन्यास में भी उसने सलीम का जिक्र किया है।
पुलिस इस बात को मान रही है कि इधर, जबसे यूनुस अंसारी पकड़ा गया तबसे वह शक के कारण जमीम से खार खाये था। माना जा रहा है कि जमीम शाह और उसकी प्रतिद्वंदिता का लाभ उठाते हुए जेल में बंद बबलू ने यूनुस अंसारी की मंशा को हवा देकर डील करायी और जमीम का खेल खत्म हो गया।

9 फ़र॰ 2010

यूनुस ने खत्म करा दिया जमीम का खेल!

आनन्द राय, गोरखपुर
नेपाल में जाली नोटों के कारोबारी यूनुस अंसारी की गिरफ्तारी के एक माह के अंदर स्पेस टाइम्स समूह के प्रबंध निदेशक जमीम शाह की हत्या से कई सवाल खड़े हो गये हैं। उसकी हत्या के पीछे किसी बड़े षड्यंत्र के कयास लग रहे हैं। यह बात भी सामने आ रही है कि जमीम का खेल खत्म कराने में यूनुस अंसारी ने एक महत्वपूर्ण सूत्रधार की भूमिका निभायी है।
दबी जुबान से यह बात सामने आयी कि नेपाल के पूर्व मंत्री सलीम मियां अंसारी के बेटे यूनुस अंसारी की गिरफ्तारी जमीम शाह की योजना के चलते हुई। अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए यूनुस ने हमेशा जमीम की नकल की और मीडिया के क्षेत्र में उसका वर्चस्व देखकर ही आया इसलिए दोनों के बीच बराबर प्रतिद्वंदिता बनी रही। आईएसआई और दाऊद तक पहंुच बनाने के बाद तो वह जमीम शाह की आंख की किरकिरी बन गया। इसीलिए माना यही जा रहा है कि जमीम ने यूनुस को जेल भिजवाया तो उसने उसकी इस दुनिया से छुट्टी करवाने में खास भूमिका निभायी। ध्यान रहे कि जमीम शाह नेपाल के पूर्व नौकरशाह मोइन शाह का बेटा है। विराटनगर में सबसे पहले रेडियो की शुरूआत करने वाले प्रसन्न मानचिंग प्रधान की बेटी अम्बिका से उसने शादी की। फिर वह मीडिया के क्षेत्र में आ गया। बाद में पाक दूतावास के एक अफसर ने जमीम का सम्बंध दाऊद इब्राहिम से करा दिया। दाऊद ने साढ़े चार करोड़ रुपये की पूंजी लगाकर स्पेस टाइम्स नेटवर्क की शुरूआत करवायी। फिर जमीम का प्रभाव बढ़ता गया और वह काले कारोबार में शामिल होकर अरबों रुपये का मालिक हो गया।
 जब दाऊद ने काठमाण्डू में एक बंगला खरीदने की जिम्मेदारी जमीम शाह पर डाली तो पैसों के लिए उसने हाथ खड़े कर दिये। फिर दोनों के बीच तनाव बढ़ गया। तब पाक दूतावास ने भारत विरोधी गतिविधियों के लिए दोनों का समझौता करवाया। हालांकि समझौते के बाद भी वह दाऊद से डरा हुआ था। उसने दार्जिलिंग में पढ़ रहे अपने बेटे जैकी को काठमाण्डू बुलवा लिया था। उसके पहले जमीम ने ऋत्विक रोशन का इण्टरव्यू अपने अखबार में तोड़ मरोड़ कर छापा और एक भडकाऊ कैसेट बनाकर रोशन विरोधी अभियान शुरू कर दिया। वर्ष 2004 में नेपाल के भारतीय दूतावास ने जमीम की सभी करतूतों का जिक्र करते हुये नकेल कसने के लिए भारत सरकार को एक रिपोर्ट भेजी। तभी आईएसआई ने जमीम के विकल्प के तौर पर यूनुस अंसारी को उभार दिया। भारत के भगोड़े अपराधियों को पनाह देने की वजह से यूनुस का नेटवर्क प्रभावी हो गया। इसीलिए वह दाऊद के लिए महत्वपूर्ण हो गया और जमीम की उपयोगिता कम हो गयी। जमीम के निपटारे में दाऊद की सहमति है या जेल में बंद होने का लाभ उठाने के लिए यूनुस ने खुद अपनी मर्जी से अपनी राह का रोड़ा हटा दिया, इस तरह के कई कयास लग रहे हैं।
छोटा राजन का भी नाम उछला
गोरखपुर : स्पेस टाइम्स नेटवर्क समूह के प्रबंध निदेशक जमीम शाह की हत्या में छोटा राजन के हाथ होने की भी चर्चा तेज हो गयी है। अण्डरव‌र्ल्ड का एक खेमा इस बात की चर्चा में लगा है कि जमीम की हत्या छोटा राजन ने करवायी है। हालांकि एक दूसरा खेमा इसे उड़ती खबर बता रहा है। अपराध जगत के कुछ जानकारों का कहना है कि जब भी ऐसी वारदात होती तो अण्डरव‌र्ल्ड में अपनी धमक कायम करने के लिए कुछ माफिया खुद ही अपना नाम प्रचारित करवा देते हैं। इस तरह कई महत्वपूर्ण मसले अफवाहों की भेंट चढ़ जाते हैं और असली गुत्थी सुलझ नहीं पाती है। बहरहाल इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि जमीम की हत्या में छोटा राजन और उसके शूटरों की प्रमुख भूमिका है।माना यह जा रहा है कि बरेली जेल में बंद बबलू श्रीवास्तव ने इसमें सबसे अहम् रोल निभाया है.

2 फ़र॰ 2010

सोहगौरा- कभी फिजा में गूंजते थे वेदमंत्र मगर ..

आनन्द राय, गोरखपुर
पांच हजार साल पुराने ऐतिहासिक सोहगौरा गांव के पं. धनंजय राम त्रिपाठी 84 बसंत पार कर चुके हैं। देश के गणतंत्र होने पर उनके दिल में विकास की बेइंतहा उम्मीदें जगी मगर साठ साल बाद भी विकास की बयार उनके गांव को छू नहीं पायी। अब तो इस गांव के लोग खुद को स्थापित करने के लिए पलायन करने लगे हैं। कौड़ीराम से चार किलोमीटर दूर आमी और राप्ती नदी के संगम पर बसे सोहगौरा गांव में कुछ पुश्तैनी मकान टूटकर भव्य इमारतों में तब्दील हो गये हैं लेकिन बाकी खण्डहर हो रहे हैं।
गांव की युवा पीढ़ी रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर हो गयी है। इसीलिए गांव में सुबह और शाम को भी सन्नाटा दिखता है। दुनिया के सबसे पुराने इस गांव में अब पहले की तरह वेदमंत्रों की आवाज नहीं गूंजती है। बारुदी गंध ने यहां की फिजा बदल दी है। गैंगवार के चलते यहां अब तक 38 लोगों की जानें जा चुकी हैं। इसीलिए पण्डित धनंजय राम त्रिपाठी क्षोभ से भरे हैं। उनके पितामह पण्डित परमार्थी राम त्रिपाठी ने इच्छा मृत्यु पायी। यह कहते समय उनका चेहरा गौरवान्वित रहता है लेकिन गांव की बदहाली ने उन्हें दुखी कर दिया है। भारतीय इतिहास अनुसंधान केन्द्र के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर दयानाथ त्रिपाठी ने इस गांव में खुदाई करवाकर यहां की ऐतिहासिकता प्रमाणित की है।
 प्रोफेसर त्रिपाठी के मुताबिक सोहगौरा विश्र्व का प्राचीनतम ग्राम है जो 5000 वर्षो से एक ही स्थल पर अपने होने का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इस गांव में खुदाई के समय चित्रित धूसर मृदभाण्ड, चन्द्रगुप्त मौर्य के समय का ताम्रपत्र, अकाल के समय दुर्भिक्ष को दान देने का प्रमाण और अन्य कई साक्ष्य मिले हैं। प्राचीन इतिहास के शोधार्थी आशुतोष राम त्रिपाठी कहते हैं कि पुरातत्व विभाग ने भी इस गांव को उपेक्षित कर दिया वरना यह तो पूरी दुनिया के लिए एक धरोहर है। इन दिनों गांव की आभा बिगड़ गयी है। दाग इतने लग गये कि गांव के लोग ही झेंपते हैं। बड़े बड़े जमींदारों और राजाओं को दीक्षा देने वाले इस गांव में अब बदनामी के निशान पड़ने लगे हैं। हालांकि 67 साल के शास्त्रार्थ महारथी कैप्टन रामचंद्र राम त्रिपाठी इसे खारिज करते हैं। उनका दावा है कि सोहगौरा के जीन में वेद है, संस्कार है और यह कभी खत्म नहीं हो सकता। लेकिन वे भी यह मानते हैं कि सरकार ने इस ऐतिहासिक गांव के लिए कुछ नहीं किया।
सचमुच इस गांव में प्रदूषण और पिछड़ेपन का पांव पसरता गया है। 20 गांवों के केन्द्र में होने के बावजूद यहां आठवीं के बाद कोई स्कूल नहीं है। लड़कियों को शिक्षा के लिए कौड़ीराम जाना पड़ता है। पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। हैण्डपम्प में प्रदूषित जल आता है। कोई स्वास्थ्य केन्द्र भी नहीं बन पाया है। आमी-राप्ती की बाढ़ से तबाही आती ही है। बाढ़ न रहने पर कटान होने के बाद सैकड़ों एकड़ भूमि रेत में तब्दील हो जाती है। शिक्षक शिवाकर राम त्रिपाठी और युवा नेता राकेश राम त्रिपाठी गांव के बंधे पर बन रही पीएमआरवाई की अधूरी सड़क की ओर इशारा करते हैं। सरकार अभी तक एक मुकम्मल सड़क भी नहीं दे पायी है। गांव की बदहाली के अभी और भी किस्से बाकी हैं।
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