दीक्षा

चुप रहना बेहद खतरनाक है। दीक्षा एक ऐसा मंच है जहाँ चुप्पी टूटती है।

17 जुल॰ 2010

लखनऊ: यूपी में सियासी जंग में खून बहने का सिलसिला बड़ा पुराना है। वर्चस्व की लड़ाई और जर-जमीन के चक्कर में यहां कई जनप्रतिनिधि अपनी जान गंवा चुके हैं। जनप्रतिनिधियों के खून से यूपी पुलिस की डायरी रंगी पड़ी है। सूबे के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी के ऊपर हुए जानलेवा हमले के बाद यह रंग और गाढ़ा हो गया है।

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आनन्द राय,

दैनिक जागरण लखनऊ

क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं, नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ ........ दैनिक जागरण लखनऊ के राज्‍य ब्‍यूरो में संवाददाता। १९९५ से दैनिक जागरण में हूं।गोरखपुर में इस अखबार में मेरी लम्‍बी सेवा के बाद अप्रैल 2010 में लखनऊ के लिए तबादला हुआ। राष्ट्रीय सहारा, सन्डे मेल, और पूर्वांचल संदेश आदि अखबारों से भी जुड़ा रहा हूं। राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों से जुडी डेढ़ हजार से अधिक महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित। अंडरवर्ल्ड से जुडी ख़बरों में विशेष रूचि। पूर्वांचल और अंडरवर्ल्ड के गठजोड़ पर शोध। सैकडों महत्वपूर्ण लोगों का साक्षात्‍कार। गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब का २००० में निर्विरोध अध्‍यक्ष निर्वाचित। सदाशिव द्विवेदी स्मृति पुस्तकालय और जयप्रकाश शाही स्मृति सूचना कक्ष की स्थापना।
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"चुप रहना बेहद खतरनाक है,"

दीक्षा एक ऐसा मंच है जहाँ चुप्पी टूटती है।


दीक्षा मेरे लिए एक स्लेट भर नहीं है. आत्मा की आवाज को गूँज की शक्ल देने वाला ऐसा साथी है जिसने हमेशा हमारी बात सुनी और दूसरों तक प्रेषित की. मैं बहुत आभारी हूँ उन दोस्तों का जो मेरी बात पर अपनी मुहर लगाते और अगर कहीं फिसलन महसूस करते तो मुझे सावधान भी करते हैं . अपने नए दोस्तों से भी मेरी यही अपेक्षा है. शुक्रिया.

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