29 मार्च 2009

आमी के लिए सम्मान

आमी नदी के लिए चलाये जा रहे अभियान को उपजा ने दिया सम्मान

26 मार्च 2009

हर कदम नयी दुश्वारियों का साथ

आनंद राय, गोरखपुर सुबह सुबह नेता ने फोन किया. पूरे हक के साथ. उसका समाचार नही छपा था. बोले तो उसकी पूरी नेतागिरी खराब हो गयी थी. अपनी पार्टी के उम्मीदवार को ठीक ठीक भरोसा दिया था. बड़े ही ताव से कहा था कल से जब अखबार में छपेगा कि में आपके साथ हूँ फिर तो आपको फोन उठाने से ही फुर्सत नहीं मिलेगी. तब आपको पता चलेगा कि लोग मुझे कितना चाहते हैं. अखबार में छुट्भैये नेता के लिए जगह नहीं मिल पायी और उसके बाद प्रत्याशी ने उसकी नींद खराब कर दी. अलसुबह 5 बजे कोई वक्त होता है. प्रत्याशी को तो रात दिन संसद में जाने का ख्वाब दिख रहा है और चूँकि सोने के बाद यह सपना आंखों से ओझल हो जाता है इसलिए उसे तो नींद ही नहीं आ रही है. पर उसके लग्गू बझ्झू तो नींद भी चाहते हैं, शोहरत भी चाहते हैं और चुनाव की मौज मस्ती भी. बेचारा नेता रात को पूरे मज़े से एक अध्धा पचा लिया था. नींद भी ठीक ठाक लग रही थी लेकिन सुबह सुबह ही मुये ने फोन लगा दिया. कुछ इधर उधर की चू चपड करके बात काटी और फिर मेरे पास फोन लगा दिया. सुबह की सलामी भी अच्छी नहीं लगी. सम्वाद में रात की खुमारी थी और शिकायत में बहुत कुछ खो जाने का दर्द. भाई साहब क्यों मेरी नौकरी खराब कर रहे है. इस उम्मीदवार से मेरा बहुत कुछ लेना लादना नहीं है. हम तो सीधे नेता जी से ही बात करते है. ये ससुरा जीते चाहे हारे पर मेरा भौकाल ठीक रहना चाहिये. नेता जी को लगे कि में बहुत मेहनट कर रहा हू. इस बार शहर से सटे जो विधानसभा बनी है वहां की जनता मेरा वेट कर रही है. कभी आप मेरे साथ तो चलिए देखिये लोग मुझे कितना चाहते है. चाहे दिन हो रात लोगों की सेवा में लगा रहता हूँ. कभी आप मेरे बारे में वहां के लोगों से तो पूछिये. सब मेरे घर परिवार की तरह हैं. अब आपसे सच कहूँ तो मेरा कोई बाहरी दुश्मन नहीं है. मेरी जड़ तो अपनी पार्टी वाले ही खोद रहे हैं. इतनी जल्दी पार्टी में मेरा मान सम्मान बढ़ गया है. नेता जी और महासचिव जी मुझे सीधे फोन करते हैं. सच बोलू तो यह बात तो प्रत्याशी साले को भी अच्छी नहीं लगती. भैया मेरा खयाल करिये. और हा अगर हो सके तो जब समीक्षा लिखे तो मेरे पर फोकस कर दीजिये. आपका जीवन भर अहसानमंद रहूंगा. क्या आप नहीं चाहते कि आपका भाई विधायक हो जाये. में क्या बोलू कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था. सुबह नींद खराब करने के लिए उसे फटकार लगाऊ या फिर उसकी मूर्खता पर हंसू.
लगा कि यह राजनीति भी बड़ी कुर्बानी मांगती है. ख़ुद बड़े बड़े सपने सोचने पडते हैं और उनके लिए एक जमीन तैयार करनी पड़ती है. मेरी सुबह खराब हो गयी पर मुझे सोचने के लिए एक विषय दे गयी. आज के इस दौड़ में इन छोटे नेताओं के पास कितना धैर्य है. कितनी कल्पना है और सब कुछ कह देने का कितना निराला अंदाज़ है. फिर लंबी उमर तक जिस पार्टी का झंडा उठाये घूमते हैं और यह आस बनी रहती है कि कभी टिकट मिलेगा और हम भी माननीय बन जायेंगे लेकिन अचानक एक झटके में उसका सपना टूट जाता है. कोई सेठ अपनी पूँजी के बल पर टिकट खरीद लेता. कोई अभिनेता अपने शोहरत का लाभ उठा लेता और कोई संत आस्था का कारोबार कर उसे वोट में बदल लेता और पार्टी उसके तलवे चाटती. ऐसे हाल में किसी के लिए क्या कहने. बस राजेश सिंह बसर की कुछ लेने याद आती हैं -जिंदगी तेरे लिए क्या क्या जतन करना पड़ाजिंदा रहने के लिए विष आचमन करना पड़ा. हर कदम पर नयी दुश्वारियो का साथ है, जिंदगी मेरे लिए तो राम का वनवास है, क्या करें तक़दीर ही सन्यासिनी होने लगी, साधुओ का वेश फिर इस देह को धरना पडा. एक घायल मन लिए इस दुखो की देह में में भटकता फिर रहा परछाइयो के देश में.राह की तपती हुई उस धूल को ठंडक मिलें, इसलिए पाँव के छालो को हवन करना पडा.

24 मार्च 2009

लोकतंत्र का कलेजा छलनी छलनी

aआनंद राय, गोरखपुर
चुनाव का मौसम है और हर तरफ़ एक आग लगी है। राजनीति के मायने बदल रहे हैं। पता नही वे कौन लोग हैं जो लोकतंत्र को अपने आप से जोड़ रहे हैं और उसके सवाल पर वोट मांग रहे हैं लेकिन इस बार तो पूरी तरह साफ़ हो गया है कि स्वार्थ भारी है। किसी के पास कोई मुद्दा नही हैं। किसी के पास कोई नैतिक बल नही है। दल बदलुओं की भीड़ है और शब्दों की जुगाली। बेशर्मी की हद है और ख़ुद की नजरो से भी सामना न कर पाने की बेबसी। पर उम्मीदवार हैं कि उनकी सेहत पर कोई असर नही है। एक से बढ़कर एक। बड़े बड़े वादे और बड़े बड़े दावे। पैसों का भी खूब खेल है। कल तक जिसे गाली देते नही थकते थे उसे भगवान कहने में ज़रा भी संकोच नही है। जिसे सुबह उठकर सलामी बजाने में कोई डेरी नही होती और जिसके सामने पूरी तरह नतमस्तक होते उसके ख़िलाफ़ बोलने में भी कोई संकोच नही है। शर्म उन्हें भले न आ रही हो लेकिन देखने और सुनने वालों की निगाह झुक जाती है।
यह कैसा चुनाव है। यह कैसा लोकतंत्र है। यह तो भारत की तकदीर से खिलवाड़ है। यह तो उनके के लिए अपमान है जिन्होंने अपना सब कुछ लुटा कर देश के लिए कुर्बानी दी। यह तो उनकी मर्यादा पर हमला है जिन्होंने इस देश की मर्यादा बचाई। ताल तिकड़म, हेर फेर, लूट खसोट, धोखा धडी , झूठ फरेब और न जाने कितने उपक्रम हो रहे हैं जिनसे भारतीय लोकतंत्र की आत्मा कराह रही है। जिस दल की राजनीति करते हैं उसी के ख़िलाफ़ षडयंत्र में लगे हैं। जिस दल का झंडा उठाये हैं उसी की सूचनाएँ विरोधी दल को दे रहे हैं। यह लोकसभा का चुनाव है। आने वाले विधानसभा के लिए कई लोग अपनी तकदीर बना रहे हैं। एक तीर से दो दो निशाने साधे जा रहे हैं। इस चुनाव में तो वे बेशर्म भी है जो अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ़ झंडा उठाकर विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को हराते रहे हैं और फ़िर उसी पार्टी की दुहाई देकर चुनाव में खड़े हैं। ये ऐसे तिकड़मी लोग हैं जो वोट के लिए भावनाओं की तिजारत करते हैं। ये अपनी ही पार्टी के लोगों को चुनाव हराते हैं और फ़िर अपने पास से विकल्प देते हैं। पार्टी उनके लिए नही खडी हो तो आंसू बहाते हैं और ख़ुद मौका पड़ने पर पार्टी की पीठ में छुरा भोंकते हैं। ऐसे लोगकी कमी नही है। ये अपनी कही हुई बातें याद भी नही रखते। अगर इन्हे कुछ याद दिला दीजिये तो फ़िर आपसे बड़ा इनका दुश्मन दूसरा कोई नही है। ये लोग तो वक्त के साथ अपना चेहरा बदल लेते हैं। वक्तके साथ इनका व्यवहार बदल जाता है। वक्त के साथ इनकी नजाकत बदल जाती है। आख़िर ऐसे लोगों के भुलावे में जनता क्यों आती है। यही वक्त का सबसे बड़ा सवाल है और जनता को इस सवाल का जवाब खोजना ही होगा वरना दल बदलुओं और अवसर वादियों से लोकतंत्र का कलेजा छलनी छलनी हो जायेगा। हाथ से रेत की तरह सब कुछ फिसल जायेगा और हम देखते रह जायेंगे।

सियासत की जंग में आगे बढ़ गयी एक कार




आनंद राय, गोरखपुर


तेईस मार्च लोहिया और भगत सिंह की यादों की तारीख ।इस दिन कौन बनेगा प्रधान मंत्री कार्यक्रम के लिए स्टार न्यूज़ के दीपक चौरसिया ने पता नही क्यों गोरखपुर को चुना। जगह भी इस तारीख के मुकाबले बेहद उम्दा। मुंशी प्रेमचंद पार्क। स्टेज के ठीक पीछे सब कुछ देखती हुई प्रेमचंद की प्रतिमा, अचानक दृश्य बदल गए। दीपक ने कार्यक्रम की शुरूआत में हाजिर सपा उम्मीदवार मनोज मृदुल और गोरखपुर की मेयर अंजू चौधरी का परिचय कराया। फ़िर एक सवाल जनता की ओर उछाला क्या यहाँ योगी को आना चाहिए। योगी भाजपा के उम्मीदवार हैं और तीन बार से यहाँ के सांसद हैं। कुछ उनके पक्ष में और कुछ विरोध में खड़े थे। दीपक ने बात आगे बढ़ाई और एक नया सवाल दे दिया। क्या वरुण ने जो कहा ठीक कहा। फ़िर कुछ पक्ष और कुछ विपक्ष में बोलने को तैयार। शो में प्रधानमंत्री के बारे में कोई बात नही हो पायी। बहस का दायरा बदल गया। योगी के समर्थक मनोज के ख़िलाफ़ और मनोज के समर्थक योगी के ख़िलाफ़ बोलने लगे। एक बारगी बहस भूमि रण भूमि की तरह नजर आने लगी। पुलिस परेशान। पर दीपक के लिए इस शो के मायने थे। टीआरपी बढ़ाने वाले इस शो से दीपक के चेहरा खिल गया था। ३० मिनट के इस कार्यक्रम में स्थानीय मुद्दे उठने लगे थे और मामला पूरा रोमांचक हो गया। पर जो लोग लाइव कार्यक्रम के लिए टी वी पर निगाहें टिकाये बैठे थे वे उबने लगे। पहले तय था यह कार्यक्रम ८ बजे से ८.३० तक chalegaa। पर यह नही हो सका। सियासत की जंग पर maaruti और naino की जंग bhaaree पड़ गयी। दीपक के लिए यह mushkil bhare KShaN थे। उनके पास दर्शकों को आश्वासन देने के सिवाय कुछ नही था। लोग यह सुनना चाह रहे थे क्यों कार्यक्रम dikhaayaa नही गया। दीपक की lokpriyataa की वजह से सब कुछ sambhal गया। सियासत की जंग में एक कार आगे बढ़ गयी।

23 मार्च 2009

आमी: जहरीली हो गयी गाँव की गंगा

आनंद राय, गोरखपुर।
आमी नदी सदियों की गौरवगाथा का दस्तावेज है। यह गौतम बुद्ध के गृह त्याग की गवाह है। कबीर की आख़िरी यात्रा की साक्षी है। महान गुरू गोरक्षनाथ और कबीरके शास्त्रीय संवाद की प्रतीक है। यह गाँव की गंगा है। सैकडो गाँवों के लोगों के लिए जीवनदायिनी रही है, लेकिन समाज की संवेदनहीनता ने इसे जहरीला कर दिया है।
अब आमी के जहरीले पानी से जीवन टूट रहा है। जो बच्चे इसके पानी में छपछपा छप छैया करते हुए जवान हुए वे इसे मरते हुए देख रहे हैं। लगभग ८० किलोमीटर लम्बी यह नदी सिद्धार्थ नगर जिले के डुमरियागंज तहसील के रसूलपुर परगना के पास राप्ती के छादन से निकल कर संतकबीर नगर जिले से होते गोरखपुर जिले के सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिल गयी है। इसके तट पर रसूलपुर से लेकर सोहगौरा तक ४०० से अधिक गाँव बसे हैं। इनमे मगहर से आगे कतका, मंझरिया, विनायका, सोहराम, बरवाल्माफी, जराल्ही, गादर, बेल्वादादी, तेनुआ, सोह्राबेल्दांड, धरौना, रक्षा नाला, भाम्सी, बड़ा गाँव, भदसार, तेलियादीह, आदिलापार, जगदीशपुर, लालपुर, गोद्सरी, भिठामjअय्न्तीपुर, कुइकोल, शाहीदाबाद, सोहगौरा प्रमुख है।
मगहर से लेकर गीडा तक की अऔद्योगिक इकाइयों ने इस पौराणिक नदी को अपना गटर बना लिया है। इसका चमकता जल काला हो गया है। लेकिन दुखद तथ्य यह है कि गाँव की इस गंगा को बचाने के लिए कदम नही उठ रहे हैं। इसे बचाने के नाम पर जो आवाज गूँज भी रही है वह सरकार प्रशासन और राजनेताओं के बंद कानों को सुनाई नही दे रही है। इतिहास गवाह है कि आमी की धारा ने कई प्रतिमान बनाए हैं। कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ का नश्वर संसार से मोह भंग हुआ तो वे ज्ञान की तलाश में निकल पड़े। अनूतिया नामक स्थान पर उन्होंने तब की अनोमा नदी को पार किया। इस नदी के दूसरे छोर पर उन्होंने अपना मुकुट उतारा और राजसी वस्त्र त्याग कर सारथी को सौंप दिया। राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान मिलने पर गौतम बुद्ध बने। इसी अनोमा नदी को इतिहासकारों ने आमी नदी के रूप में पहचाना है। बौद्ध धर्म के विस्तार के समय इस नदी के किनारे कई बौद्ध विहार बने। इन बिहारों से बुद्धं शरणम गछामी का उदघोष होता था। गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के दो हजार वर्षों तक इस नदी का पानी ज्ञान और बौद्धिक ऊर्जा का स्रोत बना रहा। इसी नदी पर कबीर ने आख़िरी साँस ली। रूढियों के ख़िलाफ़ जब कबीर ने अपनी आख़िरी यात्रा के लिए मगहर को चुना तो इस नदी के तट पर उन्हें ऊर्जा मिली। यहीं पर गुरू गोरक्ष से उनका संवाद हुआ। अब यह नदी मैली हो गयी है। सूख रही है। सिमट रही है और लोगों से टूट रही है। जारी

20 मार्च 2009

सिसक रही है आमी नदी


आमी नदी सिसक रही है। इस नदी का पानी जहरीला हो गया हैयह dunia kee aitihaasik नदी है। इस नदी तट पर goutam बुद्ध को vairaagy milaa thaa। siddhaaRth nagar jile के sohnaaraa से निकली यह नदी gorakhpur jile के sohgouraa men miltee है। यह dunia kee akelee नदी है jisakaa udagam और मिलन raaptee नदी men ही है। कबीर daas अपने अन्तिम दिनों men इसी नदी के तट पर magahar men आए। दो dashak से aoudyogik ikaaiyon के kachare से यह नदी pradooShit हो गयी है।

आमी नदी सिसक रही है


आमी नदी सिसक रही है। इस नदी का पानी जहरीला हो गया हैयह dunia kee aitihaasik नदी है। इस नदी तट पर goutam बुद्ध को vairaagy milaa thaa। siddhaaRth nagar jile के sohnaaraa से निकली यह नदी gorakhpur jile के sohgouraa men miltee है। यह dunia kee akelee नदी है jisakaa udagam और मिलन raaptee नदी men ही है। कबीर daas अपने अन्तिम दिनों men इसी नदी के तट पर magahar men आए। दो dashak से aoudyogik ikaaiyon के kachare से यह नदी pradooShit हो गयी है।
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