12 मार्च 2008

गाँधी पर फ़िर हमला


तीस जनवरी १९४८ को नाथू राम गोडसे ने महात्मा गाँधी को मारा। साठ साल बाद भी गाँधी मरे नही हैं॥ अब इस देश के कुछ और लोग गाँधी को मारना चाहते हैं। इन लोगों के हाथों में गोडसे की पिस्तौल नही है। ये लोग शब्दों की कटार से गाँधी को ख़त्म कर देना चाहते हैं। इन्हे यह बात चुभती है की साठ साल बाद भी एक बूढा आदमी इस मुल्क की तकदीर बना हुआ है। मरने के बाद भी लोग उसे पूज रहे हैं। दरकते मूल्यों का छरण रोकने के लिए उसी आदमी की दुहाई दी जाती है। हिंदू और मुसलमान के बीच खड़ी होती दीवार को गिराने के लिए उसी नाम का सहारा लिया जाता है। धर्म और मजहब के उन्माद में इंसानियत भूल चुके लोगों को यही याद दिलाया जाता है कि बापू कैसे सबको साथ लेकर चलने का संदेश देते थे। लगभग १५ साल पहले मायावती ने महात्मा गाँधी पर अशोभनीय वक्तव्य दिया। मायावती रातो रात सुर्खियों में आ गई। उस समय ऐसा लगा कि चर्चा में रहने की यह ओछी हरकत है। पर यह एक सियासी चाल थी। उसके पहले संघ के लोगों ने भी गाँधी को क्या कुछ नही कहा। पर बाद के दिनों में उन लोगों कि भाषा बदल गई। उन लोगों ने गाँधी को प्रासंगिक बताया। अब गोरखपुर के सांसद और गोरखनाथ मन्दिर के उत्तराधिकारी योगी आदित्य नाथ ने गाँधी पर अपने शब्दों का तीर चलाया है। गाँधीकी हत्या के ६० साल बाद भी हिन्दू संगठनों और गाँधी के विचारों का द्वंद ख़त्म नही हुआ है। कभी प्रवीण तोगडिया अपने तीर चलाते तो कभी संदीप कुलकर्णी। योगी पीछे क्यों रहते। गाँधी की हत्या के बाद योगी के गुरु के गुरु दिग्विजय नाथ महराजभी तो सुर्खियों में आए थे। योगी एक नई पहचान बनने के लिए गाँधी पर हमला बोल रहे हैं। हिन्दू वादी संगठन गाँधी को मुसलमानों की तुस्तीकरण नीति का जिम्मेदार ठहराते हैं। योगी मुसलमानों के विरोधी हैं। यह अलग बात है कि गोरखनाथ मन्दिर में बहुत सी दुकानें मुसलमानों को किराये पर दी गई हैं लेकिन योगी जी मुसलमानों के लिए पाकिस्तान में जगह बनाने की वकालत करते हैं। योगी के चलते गोरखपुर में दो बार कर्फू लग चुका है। कई लोग मौत कि नीद सो चुके हैं। शहर अब भी वैसे ही है। यहाँ अब भी ईद पर मुसलमानों के घर हिन्दू और होली पर हिन्दुओं के घर मुसलमान जाते हैं। पर उनके मन में यह दहशत रहती है कि पता नही कब किस ओर से हवा बह जाए और जुम्मन और अलगू के ताने बाने टूट जायें। यह डर योगी से भी डरने पर मजबूर करता है। तभी तो योगी के साथ चलने वाले नारा लगाते हैं कि गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना है। जो आदमी इस देश की करोड़ों जनता के दिल में बसे गाँधी के वजूद को ही नकारने पर तुला है उसकी और बात क्या पूछनी। योगी के बारें में इतना जानिए कि ५ जून १९७२ को गढ़वाल जिले के पंचौर में जन्मे बी एस सी पास इस शख्सियत को सब कुछ अचानक मिल गया/ महंत अवेद्य नाथ ने अजय सिंह नाम के इस युवा को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपनी सियासत का भी उत्तराधिकार सौंप दिया। योगी १९९८ में पहली बार गोरखपुर से सांसद चुने गए और फ़िर १९९९ और २००४ में भी उनका झंडा बुलंद रहा। अपनी इसी विरासत को बचने के लिए योगी दिलों में नफरत कि दीवार उठाते हैं। धर्म और मजहब का खेल खेलते हैं। यदि उनके बारे में सबसे सटीक तिप्पदी करनी हो तो बीते दिनों गोरखपुर में जब भाजपा अपनी कार्यसमिति में मुद्दे तलाश रही थी तो योगी के लेफ्टिनेंट रह चुके प्रेमशंकर मिश्रा एक पर्चा बाँट रहे थे। इस पर्चे में उन्होंने योगी से भाजपा को सावधान किया। योगी के बारे में प्रेमशंकर का कहना है कि इन्हे न हिन्दू से मतलब न मुसलमान से। ये सिर्फ़ अपनी सियासी रोटी सकतें हैं। अपनी सीटबचाने के लिए ये कुछ भी कर सकतें हैं। प्रेमशंकर तो यहा तक लिखतें हैं कि योगी दूसरे बाला ठाकरे साबित होंगे। लोगों को जानकर हैरत होगी कि प्रेम शंकर मिश्रा को विधान परिषद् में चुनाव लडाते समय योगी उन्हें मूल्यों का सबसे बड़ा सिपाही करार देते थे। हैरत की एक और बात यह है कि योगी कवि भी हैं। उन्होंने दो किताबें भी लिखी हैं-यौगिक सत्कर्म और हठ योग; स्वरूप और साधना। इन किताबों को मैं पढ़ा नही हूँ और न ही योगी की कोई कविता सुना हूँ लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि योगी अपना ख्वाब देखते हैं और उसे पूरा करने के लिए भावनाओं कि लहर चलाते हैं। भावनाएं स्थाई नही होती इसलिए हर तीसरे साल उनके सेनापति टूट जाते हैं और टूटने पर उनकी ढेर सारी कमियों को उजागर करते हैं। योगी का गाँधी पर किया गया हमला किस उद्देश्य से है अभी पता नही चल पाया है। ।

8 मार्च 2008

भाजपा का झूठ


भाजपा गोरखपुर में राज्य स्तरीय कार्यसमिति का उत्सव मना रही है। इनके कुछ अच्छे प्रयास उभरे हैं। पर उत्तर प्रदेश की चिंता में दुबली हुई भाजपा ने झूठ की ऐसी कहानी गढ़ी है जिससे यहाँ के लोग हतप्रभ हैं। भाजपा के प्रवक्ता हृदयनारायण दीछित ने एक पुस्तक से लोगो को हैरत में डाल दिया है। आतंकवाद और रक्तरंजित उत्तरप्रदेश शीर्षक से वितरित की गई इस पुस्तक के प्रेरणा स्रोत डॉक्टर रमापति राम त्रिपाठी और नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी हैं। शुरूआत में ही पृष्ठ २ पर १ जनवरी ०८ को रामपुर में सी आर पी ऍफ़ कैम्प पर आतंकी हमले के उल्लेख के साथ कुछ घटनाओं का जिक्र किया गया है। इसमें उत्तर प्रदेश का नक्सा है और जिन जिलों में आतंकी वारदात हुई उनकी चर्चा है। गोरखपुर में १ फरवरी को ५ मिनट के अंतराल पर हुए तीन विस्फोट में आधा दर्जन लोगों के मारे जाने की सूचना दी गई है। इसी पुस्तक के पृष्ठ ४ पर १९ मई को गोरखपुर में बम विस्फोट में १३ लोगों के मरने की सूचना दी गई है। असल में गोरखपुर में २२ मई 2007 को तीन विस्फोट हुए थे जिसमें कई लोग घायल हुए लेकिन कोई मौत नही हुई। इसके पहले २६ जनवरी १९९३ को मेनका टाकिज में हुए विस्फोट में २ की जान गई थी। या तो भाजपा ने हडबडी में ये तथ्य जुटाए या फ़िर यह उनकी किसी योजना का हिस्सा है। चूँकि गोरखपुर में पार्टी के शीर्ष नेता जुटे हैं। गोरखपुर के लोगयह पूछना चाहते हैं की आख़िर यह घटना कब घटी । वैसेसम्मेलन में पार्टी के प्रदेश अध्याछ रमापति राम त्रिपाठी ने कह दिया है की जब तक सरकार नही बन जाती tab तक n विश्राम n aaraam। त्रिपाठी जी सरकार मुबारक हो।

7 मार्च 2008

राहुल से उम्मीद बहुत


राहुल गाँधी देश के दौरे पर निकल रहे हैं। पिछले साल विधान सभा चुनाव में उन्हें दौरा करते हुए करीब से मैंने देखा। इसके पहले भी कई बार हमने उनकी कवरेज़ की है। अब उनके देश व्यापी दौरे को लेकर एक बहस चली है कि वे दौरा करके वोट पर कितना असर डालेंगे। राहुल गोरखपुर में विधान सभा चुनाव के दौरान ठहरे। एक रात पार्क रोड के क्लार्क ग्रैंड होटल से निकल कर सड़कों पर ठह्लने लगे। उनके होटल से निकलने कि मुझे ख़बर लगी तो मैं भी कांग्रेस के युवराज की ख़बर लेने चल पड़ा। सुरछा का जबरदस्त इंतजाम था। मैंने देखा राहुल ने देर रात को लौटते हुए एक ठेले वाले को रोका। उससे बातचीत शुरू की। ठेले वाले को पता नही चल पाया कि वह किससे बात कर रहा है। राहुल आगे बढे तो उसे मैंने बताया कि ये राहुल गाँधी थे। वह भावविभोर था। वापस मुड़ कर राहुल से मिलना चाहता था। मैंने बताया कि अब सम्भव नही है। राहुल ने पूरे डेढ़ घंटे सड़क पर चल कर बिताये। उनके साथ कैप्टन सतीश शर्मा भी थे। उन्होंने राहुल गाँधी से मेरी मुलाकात करवाई। राहुल थोडी देर बाद एक पान की दुकान पर रुके। उनके लिए पान लिया गया। लगा जैसे कोई अनाडीपान खा रहा है। राहुल ने इस दौरान लम्बी दूरी तय की और पसीने से लत-पथ हो गए। रात में ही उन्होंने कई उम्मीदवारों से भी बात की। सुबह उन्हें पत्रकारों से बात करनी थी। दिल्ली से भी बड़ी टीम आयी थी। उनके साथ आए पंकज शंकर ने मुझे रात में उनके डेढ़ घंटेकी यात्रा का सही तथ्य प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद दिया। मैं इन बातों को इसलिए कह रहा हूँ कि राहुल ने अपनी यात्रा से यहाँ कांग्रेस का माहौल बना दिया लेकिन मुकामी कार्यकर्ताओं की भीतरघात और उनकी खींचतान ने पार्टी को रसातल में ला दिया। गोरखपुर जिले में राहुल के आने का नतीजा रहा कि मुंडेरमें माधव पासवान को जीत मिली और पिपराइच में दीपक अग्रवाल को पूर्वांचल में सबसे सम्मान जनक वोट मिला। रामनगर में संजय जैसवाल भी बेहतर प्रदर्शन किए। राहुल युवाओं में नया संदेश देने में कामयाब हो जाते लेकिन सच यह है कि खेमों में बटे कांग्रेसी पार्टी की नही बल्कि अपनी चिंता में लगे हैं। इसीलिए कांग्रेस मजबूती से उभर नही पा रही है। सच पूछिये तो इसके जिम्मेदार कांग्रेसी ही हैं।

6 मार्च 2008

कुछ सुहाने पल


प्रजपिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम का दृश्य
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अयोध्या में एक यात्रा के दौरान नेपाल के पत्रकार चेतन पन्त के साथ

एक अच्छे प्रयास से मिट जायेगी बुराई


प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउन्ट आबू कई बार गया हूँ। मूल्यनिष्ठ मीडिया की स्थापना के लिए यह रूहानी संस्थान सक्रिय है। प्रोफेसर कमल दीछित ने मुझे वहाँ की राह दिखायी। शांतनु जी और कोमल भाई ने रिश्ते को और मजबूती दी। यहाँ गोरखपुर में बहन पुष्पा और शिवेश्वर भाई अक्सर कोई न कोई आयोजन करते रहते हैं। शिवरात्री के पर्व पर एक आयोजन हुआ। रास्ट्रीय सहारा के मैनेजर पीयूष बंका और आज के पूर्व सम्पादक रत्नाकर सिंह आयोजन में शामिल हुए। दुनिया में शान्ति कैसे आये इसी मसले को लेकर बहस चलती रही। धर्म और आध्यत्म में उलझे लोग बहस में और भी उलझते रहे। भगवन शिव ने दुनिया को कैसे नई राह दिखाई। ख़ुद विष पीकर सबको अमृत पीने के लिए छोड़ दिया। नीलकंठ भगवन शिव के आदर्शों पर दुनिया चले। तय हुआ की अच्छी चीजें कहीं जाय। अच्छी चीजें लिखी जाय और अच्छी चीजें सुनी जाय। रचना और निर्माण से दुनिया की दिशा बदली जा सकती है। एक उदाहरण आया- एक बार किसी पूजा में तय हुआ की प्रसाद के लिए सभी लोग अपने अपने घर से एक एक गिलास दूध लेकर आयेंगे। पूरे मुहल्ले के लोगों ने सोचा के जब सब लोग दूध लेकर जायेंगे ही तो एक अकेले हमारे न ले जाने से क्या नुकसान हो जायेगा। यही सबकी सोच बन गई। अपने अपने घर से लोग गिलास तो ले गए लेकिन उसमें दूध की जगह पानी था। पात्र पानी से भर गया। एक छोटी बच्ची अपने लिए पीने वाले दूध को लेकर वहाँ गई। वह छोटी थी इसलिए बड़े पात्र में दूध डालने के लिए उसने स्टूल का सहारा लिया। बच्ची ने देखा पूरा पात्र पानी से भरा है। खैर वह तो संकल्प लेकर गई थी, उसने अपना दूध पात्र में दाल दिया और लोगों की हालत सोच कर उदास हो गई। पुजारी ने उसकी उदासी देखी और कारन पूछा। बच्ची ने पात्र में पानी की बात बताई। पुजारी ने उसे अपने कंधे पर उठा लिया और पात्र तक ले गए। बच्ची से पूछे पात्र में क्या है! सिर्फ़ एक गिलास दूध से पात्र का भरा पानी दूध हो गया था। पुजारी ने बच्ची को समझाया की एक अच्छे प्रयास से सभी बुराइयां मिट सकती हैं। मैं सिर्फ़ यही सोचकर लौटा हूँ की हर मोड़ पर अच्छा किया जाय। बुराइयां अपने आप मिट जायेंगी।

3 मार्च 2008

बंदगी से नही मिलती


बंदगी से नही मिलती

इस तरह जिन्दगी नही मिलती

छीनने से तख्त और ताज मिलते हैं

मांगने से भीख भी नही मिलती । फिराक ने यह बात १९२२ में कही और यह आज भी प्रासंगिक है।

याद आए फिराक


फिराक गोरखपुरी की याद में प्रेस क्लब ने एक समारोह किया। प्रोफेसर परमानन्द मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की सदारत जुगानी भाई ने की और संचालन कर रहे मिथिलेश द्विवेदी ने कार्यक्रम को नई ऊंचाई दी। आयोजन के सूत्रधार नवनीत त्रिपाठी ने साहित्यकारों और पत्रकारों को फिराक के बहाने एक मंच पर एकत्र किया। हम सब उनके बुलावे पर ही गए। सबसे खास बात देवेन्द्र आर्य ने कही । वे बोले- इधर कई सालों से फिराक चित्रेगुप्त मन्दिर में कैद थे। गोरखपुर प्रेस क्लब ने उन्हें चित्रगुप्त मन्दिर से बाहर निकाला है। इसके लिए नवनीत त्रिपाठी की सराहना हुई। परमानन्द, जुगानी भाई और करीब करीब सभी वक्ताओं ने आयोजन की सराहना की। जिन्हें आयोजन अच्छा नही लगा वे नाक भौं सिकोड़ते रहे। ऐसे लोग कुछ भी करें अपनी बला से लेकिन अशोक चौधरी जैसे लोग ऐसे मौके कहाँ चुकते। चौधरी ने इस आयोजन को साम्प्रदायिकता के खिलाफ हथियार बना दिया। यही बात मुझे भी बहुत अच्छी लगी और हमने भी इसे बात पर जोर दियासाम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए फिराक के शब्द हमारी ताकत हैं। उन्हें सहेजने की जरूरत है। प्रेस क्लब की कार्यकारिणी इसके लिए बधाई के योग्य है।

1 मार्च 2008

चिंगारी लाओ


इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है


नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है


एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों



इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है

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