1 जन॰ 2010

रोडवेज : चुनौतियों से भरा रहा साल का सफर

आनन्द राय, गोरखपुर


रोडवेज आम आदमी के सफर का साथी है। मंजिल का साधन है। पर नींव इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसके भरोसे मंजिल आसान नहीं है। गुजरे एक साल के खास मौके इस बात के गवाह हैं। इस बात की गवाह कई सुनसान सड़के हैं जहां कभी भूले से भी कोई सरकारी बस नहीं गयी। इस बात के गवाह वे यात्री हैं जो सरकारी बसों का इंतजार करते रह गये मगर उनकी जगह पहुंची डग्गामार बसों ने उनकी जेब हल्की कर दी।
  उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम इस साल आम आदमी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। रही सही कसर आखिरी समय में निगम ने खुद पूरी कर दी। किराया इतना अधिक कर दिया कि यात्री अपनी जेब का वजन देखकर सफर तय करने लगे। पर रोजमर्रा की राह पर चलने वालों के लिए मुश्किल बढ़ गयी। बेड़े में बाल्वो और पवन और सर्वजन हिताय बसों के शामिल होने के बाद भी रोडवेज का चेहरा लोगों को लुभा नहीं पाया। खटारा बसों और आये दिन हड़ताल-चक्का जाम की चेतावनियों से यात्रियों की सांस टंगी रही।
   साल के प्रारंभिक सफर को देखें तो सबसे पहले इलाहाबाद कुंभ मेले की चुनौती सामने थी। रोडवेज प्रबंधन ने मेले के श्रद्धालु यात्रियों के लिए 263 बसें और 18 वैकल्पिक केन्द्र बनवाये लेकिन रोडवेज के प्रबंधन पर आस्था भारी पड़ी। लोग ठूंस ठूंस कर भरे गये, फिर भी बहुत से लोग जा नहीं पाये। यात्रियों की मुश्किल गोरखपुर-नौतनवां रेल लाइन आमान परिवर्तन के चलते भी बढ़ी। सोनौली जाने वाले हजारों यात्रियों के लिए डेढ़ सौ से अधिक बस चलाने का दावा किया गया लेकिन जब तक रेल सफर नहीं शुरू हुआ तब तक दिक्कत बनी रही। छठे वेतनमान को लेकर सभी संगठनों ने बार बार चेतावनी और चुनौती दी। संविदा परिचालकों ने पूरे साल हंगामा खड़ा किया। कभी जाम तो कभी इल्जाम उनके रवैये में शामिल रहा।

  अफसरों को ये कर्मी बंधक बनाने से भी नहीं चूके। हालात के माफिक समझौता होता रहा। नेताओं की चांदी रही लेकिन आखिरी कतार में खड़ा संविदाकर्मी पूरे साल छला गया। कुछ नयी बसें आयी लेकिन उनसे ज्यादा बसें जर्जर हो गयीं। ए.सी. बसों का सपना सपना ही रहा। दूसरे डिपो की बाल्वो बस ने इन सभी कमियों को पूरा किया। आखिरी दिनों में गोरखपुर क्षेत्र के पड़रौना में एक डिपो शुरू हुआ और क्षेत्र में कुल सात डिपो हो गये। पर न ही रीजनल वर्कशाप का नया केन्द्र बन पाया और न ही पहले की प्रस्तावित कई योजनाएं अस्तित्व में आयीं। अलबत्त्ता वर्कशापों से चोरी का सिलसिला तेज हो गया। इसी साल इलेक्ट्रानिक टिकट मशीन का चलन शुरू हुआ। प्रारंभ में दिक्कत बनी रही लेकिन धीरे धीरे स्थिति सामान्य हो गयी।
  साल समाप्त होते होते अनिल श्रीवास्तव सेवा प्रबंधक होकर आये। उन्होंने बसों के रख रखाव और साफ सफाई पर ध्यान केन्दि्रत किया। पर जहां गड़बड़ी जड़ तक पहुंची हो वहां इतनी जल्दी सुधार की अपेक्षा कैसे संभव है। सरकार ने डग्गामार बसों पर नियंत्रण के लिए हर दिन घण्टी बजायी लेकिन प्रबंधन के बंद कानों पर कोई असर नहीं हुआ। डग्गामार वाहनों से एक रकम तय हो गयी और वे रोडवेज की दहलीज पर चढ़कर सवारी भरते रहे। निगम ने रक्षा बंधन, होली और दीपावली जैसे त्यौहारों पर ओवरटाइम करने पर आकर्षक पुरस्कार देने की घोषणा की लेकिन लालच पर तीज त्यौहार भारी पड़ गये। चेतावनी के बावजूद रोडवेज कर्मियों ने छुट्टी मनायी। परिवहन मंत्री राम अचल राजभर ने बार बार रोडवेज को सर्वजन का बनाने का दावा किया और पहल भी की लेकिन अफसरों की सुस्ती के चलते कोई गति नहीं आयी।
  परिवहन मंत्री की व्यक्तिगत पहल पर कुछ उपेक्षित इलाकों में बस तो चली लेकिन रकहट जैसे कई क्षेत्र हैं जो सरकारी बस से वंचित रहे। डिपो परिसरों में गंदगी का साम्राच्य बना रहा। क्षेत्रीय प्रबंधक रामवृक्ष पूरे साल संवाद बनाने से कतराये। कुछ सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों से उनकी अनबन भी जग जाहिर हुई। रोडवेज में फर्जी टिकट के धंधे को लेकर हमेशा एक वर्ग मुखर रहा लेकिन कुछ संगठित लोगसब पर भारी पड़े। क्षेत्रीय मुख्यालय के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक रामदेव की मानें तो इस साल गोरखपुर क्षेत्र की पिछले साल से ज्यादा आमदनी रही और यात्रियों को सर्वाधिक सुविधाएं मिली।

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