आनन्द राय, गोरखपुर
भंवर में फंसी जिंदगी की कश्ती और समाज की चुभती निगाहों का सामना करते हुये एच आई वी संक्रमित हरेन्द्र उर्फ मिण्टू के चेहरे की चमक बढ़ गयी है। उसे न तो जमाने की निगाहों की परवाह है और न ही टूटे हुये पतवारों का गम। अंधेरी रात के दिल में दिये जलाकर वह अपने सफर पर है। सिर उठा कर जीने से उसकी जिंदगी खुशहाल हो गयी है।
बांसगांव विकास खंड के बघराई गाँव के 28 साल के हरेन्द्र की पूरी जिंदगी झंझावातों से उलझी रही है। उसका बड़ा भाई शेषनाथ लगभग डेढ़ दशक पहले मुम्बई से लापता हो गया। उन दिनों भाई को खोजते हुये हरेन्द्र मुम्बई की गलियों में भटकने लगा। भाई तो नहीं मिला लेकिन किसी कोने में एड्स के कीटाणु उसके साथ लग गये। गांव लौटा तो शेषनाथ की पत्नी की पहाड़ सी जिंदगी चुभने लगी। लोगों के कहने पर उसने अपनी भाभी सरोजा से वर्ष 2003 में शादी कर ली। कुछ साल पहले उसकी पत्नी सरोजा बीमार पड़ी। पता चला कि एड्स है। वह इलाज के दरम्यान चल बसी। हरेन्द्र भी बीमार रहने लगा। उसने वाराणसी में जांच करवायी तो उसे भी एड्स रोग का पता चला।
हरेन्द्र ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपना इलाज शुरू किया। वह अपने गांव में एक गुमटी में पान बेचने लगा। क्योंकि उसे अपने एक बेटे, मां-बाप और एक बेरोजगार बड़े भाई और उनकी पत्नी की परवरिश भी करनी थी। सबकी जिम्मेदारी एक बीमार आदमी के कंधे पर, मगर उसने अपना कंधा मजबूत कर लिया। दैनिक जागरण ने 30 जून 2009 को एड्स के क्रूर पंजों से लड़ रहा जिंदगी की जंग शीर्षक से उसकी कथा प्रकाशित की। हरेन्द्र ने न अपना नाम छुपाया और न ही कोई संकोच किया। वह सच के साथ खड़ा हुआ तो महज छह माह के भीतर उसके सहयोग के लिए लोगों की कतार लग गयी।
एड्स रोगियों के लिए काम कर रहे एमएसएस सेवा के चेयरमैन जटाशंकर ने हरेन्द्र को ब्राण्ड एम्बेसडर बना दिया। गांव में स्कूल के सामने उसकी किताब की दुकान खुलवायी। लीडरशिप ट्रेनिंग दी। कैपसिटी बिल्डिंग और कौंसिलिंग की। फिर कई लोगों ने उसकी मदद की। हरेन्द्र स्वावलम्बी तो पहले से था पर दूसरों के सहयोग से उसका आत्मबल और बढ़ गया। वह अपने जैसों को प्रेरित करने लगा। हताशा और निराशा के भंवर में डूबे लोगों को जीवन की राह दिखाने लगा। एड्स रोगियों को हरेन्द्र जब अपनी जिंदगी की दुश्र्वारियां बताता है तब असीम पीड़ा और दर्द से सबकी आंखें नम हो जाती हैं। वह अपना उदाहरण देकर सबका हौसला बढ़ाता है। वह सबके जीवन के फलक से निराशा के बादलों को छांटने की मुहिम में जुटा है। नियमित अपना चेकअप करवाता। योग करता और लोगों को जागरूक करने का कोई अवसर चूकता नहीं है। साहिर लुधियानवी की लिखी यह नज्म - डरता है जमाने की निगाहों से भला क्यों, इंसाफ तेरे साथ है इल्जाम उठा ले, गुनगुनाते हुये वह हर पल खुश रहता है।
1 टिप्पणी:
उम्दा आलेख!!
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