आनंद राय, गोरखपुर
आंखों में नीद नही है । एक एक पल भारी है। चुनाव के नतीजों को सोच सोच कर मन परेशान है। कौन जीतेगा और कौन हारेगा। बोलियाँ लग रही है। जनता के मिजाज का आकलन हो रहा है। हमने कल एक शख्स से कहा- जो होगा वह तो १६ के बाद पता चल जाएगा। जनाब हत्थे से उखड गए। बोले तो क्या १६ तक मुंह पर ताला लगाकर बैठें। अब कौन समझाए कचर पचर करने से जनता का फैसला तो बदल नही जाएगा। पर एक बात तो है लोग अपने ज्ञान को तौलने पर जुटे हुए हैं। तीर चला रहे हैं। सट्टे बाजी भी हो रही है। इसमें भी जीत हार का खेल है। किसी न किसी का तीर तो सही निशाने पर बैठेगा ही। फ़िर उसकी झोली भी भरेगी। उसके पक्ष में आए नतीजे उसे मालामाल भी करेंगे। यकीनन बोलियाँ बड़ी बड़ी लग रही हैं। लाखों तक। जनता की बिसात पर जुआ खेलने वालों के नाम पर चल रहे इस जुए के फनकारों का कोई जवाब नही है। उनकी अपनी दुनिया है। राजनीति में कोई ख़ास दिलचस्पी न होते हुए भी इस समय सबसे बड़ा खेल यही लोग खेल रहे हैं। अब ख़ुद परेशान होने से क्या होगा। अपना तो बस यही कहना-
आग किसके घर लगी, पढ़ लेंगे कल अखबार में .
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