आनंद राय, गोरखपुर
लक्ष्य से भटक गये प्राथमिक विद्यालयों की हालत सुधारने के लिए शासन स्तर पर श्रेणीकरण की व्यवस्था की गयी है। हालांकि इसके लिए विभाग ने अपना चला चलाया नुस्खा अपनाकर आंकड़ों में श्रेणीकरण का कार्य पूरा कर लिया। अधिकांश स्कूलों में न तो विद्यालयों की श्रेणी अंकित है और न ही उस दिशा में कोई पहल हुई है। सच तो यह है कि कागजी श्रेणीकरण में भी इन स्कूलों की हकीकत ही उजागर हुई है। गोरखपुर जिले में महज 23.42 फीसदी विद्यालयों को ए श्रेणी मिल पायी है। गोरखपुर जिले के भटहट विकास खण्ड में पूर्व माध्यमिक विद्यालय रामपुर खुर्द और प्राथमिक विद्यालय रामपुर खुर्द है। इसे बी श्रेणी में अंकित किया गया है। इसी विकास खण्ड में प्राथमिक विद्यालय रामपुर बुजुर्ग, प्राथमिक विद्यालय जमुनिया और प्राथमिक विद्यालय अशरफपुर है जिसे ए श्रेणी मिली है। आस पास के लोग मानते हैं कि इन विद्यालयों का शैक्षिक स्तर ठीक है लेकिन ऐसे बहुत कम विद्यालय हैं। विभिन्न बिन्दुओं पर मूल्यांकन के आधार पर 75 से 100 के बीच अंक पाने वाले स्कूलों को ए श्रेणी, 60 से 74 अंक वाले विद्यालयों को बी श्रेणी, 50 से 59 अंक वाले स्कूलों को सी श्रेणी तथा 35 से 49 अंक वाले विद्यालयों को डी श्रेणी देने की व्यवस्था की गयी है। ध्यान रहे कि शासन स्तर पर विद्यालयों के श्रेणीकरण के लिए पांच बिन्दु निर्धारित हैं इसमें भौतिक परिवेश पर 05, सामुदायिक सहभागिता पर 05, नामांकन एवं उपस्थिति पर 15, शिक्षण स्तर पर 20 और सत्र परीक्षा में विद्यार्थियों के स्तर पर 55 अंक निर्धारित किये गये हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के सचिव ने स्पष्ट हिदायत दी कि विद्यालयों को प्राप्त श्रेणी का अंकन विद्यालय भवन में प्रधानाध्यापक कक्ष के निकट के खम्बे पर एक फिट लम्बे एवं एक फिट चौड़े काले वर्ग पर सफेद रंग से अंकित किया जाय। विद्यालय श्रेणीकरण प्रत्येक सत्र परीक्षा के बाद अर्थात सितम्बर की सत्र परीक्षा के बाद अक्टूबर में और फरवरी की सत्र परीक्षा के बाद मार्च में किया जाय। इसके लिए हेडमास्टर से लेकर समन्वयक और अन्य उच्चाधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गयी। सच्चाई यही है कि इस प्रेरक योजना की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महानगर क्षेत्र के स्कूलों में कहीं श्रेणीकरण का अंकन नहीं है। इस बाबत जब महानगर के प्राथमिक विद्यालय बनकटीचक से हेडमास्टर और शिक्षक संघ के मंत्री ब्रजनन्दन यादव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नगर क्षेत्र की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। पर यही हाल ग्रामीण इलाके के स्कूलों की है। कुछ जगहों पर पिछली बार की श्रेणी भले अंकित हो लेकिन वहां भी यह कार्य नहीं हुआ है। सर्व शिक्षा अभियान के प्रशिक्षण समन्वयक शिवशंकर मल्ल से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि इसके लिए कई बार निर्देश दिया गया है लेकिन ठीक से उसका अनुपालन नहीं हुआ। ध्यान रहे कि इस सत्र में पहली बार श्रेणीकरण के दौरान कुल 2005 प्राथमिक और 701 उच्च प्राथमिक विद्यालयों यानि कुल 2706 स्कूलों को सूचीबद्ध किया गया। इसमें ए श्रेणी के कुल 634, बी श्रेणी के 1797 और सी श्रेणी के 258 विद्यालय चिन्हित किये गये। शेष डी श्रेणी में शामिल हैं। जिले के स्कूलों की संख्या के आधार पर 23.42 प्रतिशत ए, 66.40 प्रतिशत बी और 9.53 प्रतिशत सी श्रेणी के विद्यालय हैं। शिक्षक नेता अनिल पाण्डेय कहते हैं कि इस बार शिक्षकों की चुनाव, मतदाता सूची और मतदान में ड्यूटी लगने से यह योजना बहुत हद तक प्रभावित हुई है।
1 टिप्पणी:
प्राथमिक स्कूलों की इस हालत के लिए सरकार जिम्मेवार है..!बार कहने के बाद भी [न्यायालय ] ,शिक्षकों की ड्यूटी विभिन्न गैर शिक्षण कार्यों में लगाईं जाती है...कभी जन्न्गंन्ना तो कभी पोलियो के नाम पर,कभी चुनाव तो कभी सख्रता के नाम पर..लेकिन इस सब से जो नुकसान होता है..उसकी चिंता किसी को नहीं है!आज पांचवी तक अनिवार्य शिक्षा देने की बात हो रही है लेकिन ये तभी संभव होगा जब शिक्षक को स्कूल में ही रखा जाए...
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