आनंद राय , गोरखपुर :
कस्बाई और गंवई संस्कृति से मिला जुला हरपुर गांव विकास की दौड़ में शामिल है। इस गांव के लोगों को रोजी रोटी का संकट नहीं है। पर औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित आमी नदी सूरज ढलने के बाद लोगों का सुकून छीन लेती है। यहां के लोग आमी के प्रदूषण के खिलाफ आर पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। गोरखपुर से हरपुर की दूरी तीस-बत्तीस किलोमीटर है। दस साल तक यहां की प्रधान रहीं लीलावती देवी के पुत्र मदन मुरारी गुप्ता अब यहां के प्रधान हैं। आमी को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए अपने गांव के हर घर से लोगों को जोड़ रहे हैं। उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनके गांव के रामकृष्ण शुक्ल बहुत समय तक सहजनवा के ब्लाक प्रमुख रहे और पूरे जवार में उनके नाम का सिक्का चलता था। अब वे नहीं हैं लेकिन उनके तेवर की चर्चा पूरे गांव में है। मदन मुरारी गुप्ता आमी की मुक्ति के लिए उसी तरह का तेवर गांव के हर सदस्य में लाना चाहते हैं। दो हजार की आबादी वाले इस गांव में अनुसूचित जाति, ब्राह्मण, मुस्लिम, कंहार, कोंहार, यादव, कचेर समेत कई जातियां निवास करती हैं। हरपुर गांव से नदी लगभग 800 मीटर दूर है। इस गांव को शंकर की नगरी कहा जाता है। आमी नदी के प्रदूषित होने से गांव पर असर पड़ा है। नदी तट पर किसान अपनी गाय भैंस चराते थे। आमी का पानी जहरीला हुआ और पशु उससे दूर होने लगे तो फिर नदी तट से गांव के लोगों की दूरी बन गयी। लोग बाग उधर जाना बंद कर दिये। अब तो सूरज ढलने के साथ ही बदबू बढ़ जाती है। बदबू भी ऐसी कि बर्दाश्त करना मुश्किल। इन दिनों मच्छर बढ़ रहे हैं। मच्छरों ने लोगों का सुख चैन छीन लिया है। इससे बीमारी भी बढ़ रही है। गांव के 85 वर्षीय शिवसम्पत शुक्ल, 88 साल के अछैवर दास और महातम शुक्ल कहते हैं कि पहले तो यहां का पानी अमृत जैसा था और शाम को नदी तट पर पहंुचते ही मन आह्लादित हो जाता था। शिवसम्पत कृषि, अछैवर दास और महातम शुक्ल रेलवे में काम करते थे। नौकरी के दिनों में वे लोग घर लौटते तो नदी में घण्टों तैरते थे। अब तो यह उनके लिए सपने जैसा है। उनकी पीढि़यां इस सुख से वंचित हैं। हरपुर चौराहे पर बहुत सी नयी चीजें आ गयी हैं लेकिन यहां की सबसे बड़ी पहचान गायब हो गयी है। हरपुर में आमदनी की किल्लत नहीं है। सुविधाएं भी हैं लेकिन दुख सिर्फ आमी के प्रदूषण का है।
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