25 अप्रैल 2009

अनंतपुर गांव के हर पुरवे में आमी की यादों का झोंका

आनंद राय, गोरखपुर :
अनंतपुर गांव के हर पुरवे में आमी की यादों का झोंका है। मगर प्रदूषण की मार से आमी से बंधे रिश्ते की डोर टूट गयी है। आमी से बिछुड़ जाने की टीस हर चेहरे पर दिखती है। इस गांव में दस-ग्यारह साल के बच्चे आमी की ओर वितृष्णा से देखते हैं लेकिन बुजुर्गो के लिए तो आमी की व्यथा उनकी अपनी व्यथा की तरह है। आमी पर सबकी आंखें डबडबा जाती हैं। सिद्धार्थनगर के सोहनारा से निकली और गोरखपुर के सोहगौरा में राप्ती नदी में विलीन हो गयी लगभग 80 किलोमीटर लम्बी आमी नदी औद्योगिक इकाइयों के अपजल से जहरीली हो गयी है। लगभग दो दशकों से यह नदी तिल तिल कर मर रही है। इस नदी का दर्द बुजुर्गो के बीच जाने पर ही पता चलता है। गोरखपुर से अनंतपुर की दूरी लगभग तीस किलोमीटर है। इसी गांव में आमी नदी पर बना कुआवल पुल भी है। जिगिना, सिसवा, दरघाट और अनंतपुर को मिलाकर 4500 की आबादी वाले इस ग्राम सभा में अब परदेस की महक है। बहुतेरे घरों के जवान लुधियाना, मुम्बई और अन्य बड़े शहरों में अपना जिस्म तपा रहे हैं। गांव के प्रधान सुभाष चंद निषाद भी लुधियाना में कौडि़यों के भाव अपना श्रम बेचकर लौट आये हैं और अब गांव की सेवा में लगे हैं। पर मुन्दि्रका निषाद, उमाकांत निषाद, रामकरन, दुर्गविजय यादव जैसे जवान तो अभी भी अपने घर परिवार की रोटी के लिए लुधियाना में ही जूझ रहे हैं। आमी के प्रदूषण से गांव वालों का रोजगार छिन गया है। मल्लाह, यादव, पासी और दलित बहुल इस ग्राम सभा के 80 फीसदी लोग कभी आमी पर ही आश्रित थे। अब उनका आश्रयदाता बीमार है इसलिए उन सबकी सेहत पर असर पड़ा है और वे पलायन को मजबूर हो गये हैं। गांव में पलायन की सबसे बड़ी छाया सौ साल के होलरी निषाद के घर दिखती है। अपने बाजुओं के भरोसे अकेले होलरी ने एक बड़े परिवार की रोटी आमी की गोंद से निकाली। पर अब उनका भी परिवार लुधियाना की राह पकड़ चुका है। होलरी चलते फिरते हैं और उन्हें कोई आर्थिक संकट नहीं है लेकिन आमी नदी की बीमारी उनके लिए सबसे बड़े दुख का कारण है। उनकी भावनाओं को समझने के बाद जगजीत की गायी एक गजल बरबस याद आती है- दुनिया जिसे कहते हैं, बच्चों का खिलौना है। मिल जाये तो मिट्टी है, खो जाये तो सोना है। होलरी को साफ लगता है कि अपने जमाने में जिसे वे खिलौना समझते थे अब वही सोना हो गयी है। सब लोग तलाश रहे हैं। उसे पाने के लिए आमी बचाओ मंच आंदोलन कर रहा है। महायात्रा निकाली जा रही है लेकिन उसका पता नहीं चल रहा है। शासन-प्रशासन चुप है। सौ साल के होलरी अपनी कातर निगाहों से कभी दूषित हो गयी आमी को देखते और कभी अपने 11 साल के उस प्रपौत्र को, जो उनकी चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधि होकर भी आमी से दूर है। होलरी को अपने पक्के घर में भी सुकून नहीं है। होलरी की तरह ही जिगिना के 90 साल के शिवलाल हैं। उनकी भी चौथी पीढ़ी खड़ी है मगर आमी से उसका कोई रिश्ता नहीं बन पाया है। आमी के तट पर वे सब जाते तो नाक पर हाथ लगा लेते हैं। ग्राम प्रधान सुभाष चंद निषाद कहते हैं- हम सब आमी के प्रदूषण से तबाह हो गये हैं। हमारे यहां का हुनर मर गया है। रोजगार खत्म है। वे अपने गांव के राममूरत और रामदुलारे की बात करना नहीं भूलते। ये दोनों नदी में 40 मिनट तक डूबे रह सकते हैं। पर यह हुनर औरों को नहीं मालूम। बाढ़ के दिनों में जब लोग डूबते हैं तो इन दोनों का हुनर जान बचाने के काम आता है। आमी उस लायक नहीं रही कि कोई इतने समय तक डूब कर रियाज बना सके।

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