आनंद राय, गोरखपुर
चुनावी संतुलन बनाने में सपा को कहीं नफा तो कहीं नुकसान उठाना पड़ा है। इसमें सबसे बड़ी वजह टिकट का बंटवारा था। नेताओं के भविष्य की गारण्टी का सवाल भी कुछ हद तक कारण बना। इन्हीं दो बिन्दुओं पर टिकी महत्वाकांक्षा ने सपा के कई पाये खिसका दिये। पार्टी में रहकर भी कई लोग असंतुष्ट ही दिखे। मतदान खत्म होने के बाद कइयों की त्यौरियां चढ़ी हैं। यूं तो सपा ने कई उतार चढ़ाव देखे लेकिन इस बार के चुनाव में कुछ ऐसे लोगों ने भी पार्टी को अलविदा कहा जिनके नाम से पार्टी का चेहरा उभरता था। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के लिए 22 साल से झण्डा-डण्डा उठा रहे जफर अमीन डक्कू को यह चुनाव रास नहीं आया। इसकी कई वजहें थी। पर उन्होंने मुलायम और कल्याण की दोस्ती को मुद्दा बनाकर पार्टी से रिश्ता तोड़ लिया। 22 साल तक डक्कू जिस डोर से बंधे रहे उसे तोड़ने की टीस तो उन्हें हुई लेकिन मुसलमानों की उपेक्षा का सवाल उठाकर उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को कटघरे में खड़ा कर दिया। उनके पहले टिकट न मिलने से नाराज पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद सपा छोड़ बसपा में चले गये। श्री निषाद ने सपा को लगातार निशाने पर रखा। उन्होंने तो यह भी कहा कि भले ही वह सपा सरकार में साढ़े तीन साल मंत्री रहे लेकिन उनका दम घुटता रहा। उन्हें मनोज तिवारी मृदुल को टिकट दिये जाने का मलाल था। टिकट की ही वजह से पूर्व विधायक कमलेश पासवान ने भी सपा छोड़ी। वैसे तो शुरूआत में मुलायम सिंह यादव ने कमलेश के नाम की घोषणा कर दी। पर जब यह बात चली कि सपा और कांग्रेस में समझौता होगा तो पासवान को लगा कि समझौते में सिटिंग सांसद और बडे़ कद के नाते निश्चित ही महावीर प्रसाद होंगे। सो वे भी भाजपा में शामिल हो गए। में अपना निशाना साधा और तीर सही जगह जाकर बैठ गया। उनकी मां बांसगांव की पूर्व सांसद सुभावती पासवान ने सपा छोड़ने का एलान तो नहीं किया लेकिन अपने बेटे को चुनाव जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। यही हाल सलेमपुर में भी हुआ। सपा के पूर्व सांसद हरिवंश की जिद थी कि सिटिंग एमपी हरिकेवल प्रसाद की जगह उनको टिकट दिया जाय। उनके समर्थकों की माने तो नेताजी ने आश्र्वासन भी दिया था। लेकिन आखिरी क्षण में उन्हें टिकट की सूची से बाहर कर दिया गया। नाराज सहाय ने बसपा का दामन थाम लिया और वे वर्षो जिस पार्टी में रहे उसके खिलाफ खूब गरजे-बरसे। पड़रौना के सांसद बालेश्र्वर यादव की नजर तो परिसीमन के बाद से ही देवरिया पर टिकी थी। उनकी इच्छा थी कि नेताजी सिटिंग एमपी मोहन सिंह का जगह उनको टिकट दें। पिछली बार महराजगंज से सपा छोड़कर राजद के साथ कुछ समय तक रहने वाले पूर्व सांसद कंुवर अखिलेश सिंह ने बाद में सपा के साथ निभाने की बात कही लेकिन चुनाव के दौरान पता नहीं क्या हुआ कि उन्होंने रहस्यमय चुप्पी ओढ़ ली। बाद में पता चला कि सपा से तो वे बेहद नाराज थे और उनका झुकाव कहीं और था। पिछली बार सपा के टिकट पर पनियरा विधानसभा से चुनाव लड़ने वाले सेठ बद्री प्रसाद जायसवाल की ओर देखें तो वे और उनके पुत्र पूर्व मंत्री जितेन्द्र जायसवाल उर्फ पप्पू भैया भी इस बार बसपा में शामिल हो गये। बद्री प्रसाद तो हमेशा दलीय राजनीति करते रहे लेकिन निर्दल विधायक होने वाले पप्पू भैया ने एक ही हार के बाद दल का बैनर लगाना जरूरी समझा और बसपा का दामन थाम लिया। गोरखपुर से मेयर का चुनाव लड़ने वाले सीताराम जायसवाल भी चुनाव के दौरान सपा में महत्व न मिलने से योगी की शरण में चले गये।
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