आनंद राय , गोरखपुर :
धनईपुर गांव आमी नदी के किनारे बसा है। गांव से नदी तट लगभग एक किलोमीटर दूर है। दो दशक पहले तक गांव के बच्चे, बड़े और बूढ़े इस नदी से पूरी तरह जुड़े थे। औद्योगिक इकाइयों के अपजल से नदी जहरीली हुई तो सब इससे दूर होते गये। जो आमी में नाव चलाकर लोगों को पार उतारते थे उनकी नाव अब घर पर बंधी है। और वे लोग मुम्बई और सूरत में अपने लिए रोटी तलाश रहे हैं। गोरखपुर से धनईपुर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। भटवली से बमुश्किल दो किलोमीटर दूरी पर नदी तट है। इस गांव की आबादी 1600 है और यहां निषादों की बहुलता है। 80 फीसदी निषादों के इस गांव में यादव और राजपूतों के अलावा कुछ छिटपुट जातियों के लोग भी बसे हैं। गांव में सन्नाटा है। आमी नदी से बिछुड़ जाने की टीस है। रोजी रोटी और सुख शांति छिन जाने का दर्द है। सुदर्शन और सुदामा निषाद के घर पर बंधी नाव को देखकर लगता है कि नदी से इनका रिश्ता टूट गया है। बाढ़ के दिनों में भले कभी यह नाव उठकर नदी तक पहंुच जाये लेकिन बाकी दिनों में इसकी तन्हाई साफ पढ़ी जा सकती है। पहले यही नाव लोगों को उस पार भेजती थी। धनईपुर के सामने नदी के दूसरे छोर पर बरवलमाफी गांव है। उस पार भी गांव के लोगों की खेती बारी थी। आमी नदी धनईपुर के लोगों की रोजी रोटी से जुड़ी रही है लेकिन जबसे यह नदी प्रदूषित हुई तबसे यहां की कहानी बदल गयी है। पहले गांव के कुछ लोग नदी तट पर ही छप्पर डालकर रहते थे। उनमें अब बहुत से लोग अपने घर पर रहते हैं और उनका समय काटे नहीं कटता। 75 साल के मंगली निषाद, रामसेवक और बूने अपने पुराने दिनों की याद करते तो उनका दर्द उभर जाता है। नदी तट पर रहते हुये कब उनका दिन बीत जाता पता ही नहीं चलता था। भटवली महाविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह धनईपुर के ही रहने वाले हैं और आमी बचाओ आंदोलन से जुड़े हैं। अरुण बताते हैं कि आमी के प्रदूषण से पूरे गांव का सुख चैन छिन गया है। इसलिए गांव के बच्चे बूढ़ों से लेकर महिलाएं भी निर्णायक संघर्ष का मन बना चुकी हैं। धनईपुर गांव के प्रधान रामाज्ञा यादव भी आमी के प्रदूषण से आक्रोशित हैं। इस समस्या से गांव की सूरत बदल गयी है। पूरे गांव में आक्रोश है। लोग मुम्बई, बंगलौर और सूरत में कमाने चले गये हैं। ज्यादातर निषाद मुम्बई और सूरत की गलियों में अपना श्रम बेच रहे हैं। गांव में 18 साल के ऊपर के नौजवानों को खोजना मुश्किल है। गांव के मल्लाहों को इस बात का मलाल है कि नदी के प्रदूषित होने से उन्हें परदेस जाना पड़ रहा है। बताते हैं कि जिन दिनों नदी साफ सुथरी थी उन दिनों एक व्यक्ति दस से पन्द्रह किलोग्राम मछली पकड़ता था और उनके इस कारोबार से रोजी रोटी अच्छे तरीके से चल जाती थी। अब तो खेतों की उपज पर भी असर पड़ा है और इसीलिए गांव में दुश्र्वारियां बढ़ गयी हैं।
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