मुम्बई में फिर हल्ला मचा है। मुझे गामा की याद आ रही है। गामा सुल्तानपुर जिले से मुम्बई कमाने गया था। गांव में जो हाल रहा हो पर वहा जाकर थोड़ा दादागीरी करने लगा। शर्मा की दुकान पर दिन भर बैठे रहता और किसी न किसी से उलझ जाता था। एक बार बाजु वाले से उसका लफडा हो गया। बोले तो कट्टा और छुरी भी चली। गामा डरा हुआ था। अपनों ने भी उसकी कोई मदद नही की। भंदूप के तुलसी पादा में रहता था। विक्रोली में अनिल वांद्रे लेठ मशीन पर काम करता था। लोकल लोंगों पर उसका ठीक प्रभाव था। गामा को लोग घेरने लगे। तो भभुआ केगोरख सिंग ने अनिल वांद्रे से मुलाकात कराई। बोले ऐ मराठा सरदार मदद करेगा। शाम को एक दिन अनिल आया उसके साथ दो मवाली जैसे लड़के आये थे। गामा और उसके खिलाफ वालों को बुलवाया। दोनों गुटों से पूछा मुम्बई में का ऐ को आयेला। इधर बीच पंगा करेगा तो कमाएगा क्या। खाली-पीली नौटंकी करने से क्या होएला। तू भैया लोग इध्रीच लड़ेगा और उधर तेरा बाप लोग सोचेगा की बेटा मेरा पगार बना रहा है। इधर को रोक्र्रा कमाने आया है तो शान्ति से कमा। तू लोग इधर से कमा के जाता तो अपन लोग को बहुत अच्छा लगता। अब राज ठाकरे को कौन समझाए की वंहा मराठियों को बहुत अच्छा लगता की उनके यहा लोग कमाकर अपने घर खुशहाली भेजते हैं। मैं राज ठाकरे से यह कहना चाहूँगा की किसी को भी मुम्बई में अपनी जड़ नही जमानी है वरना जिनकी जड़े जमी थी उन्हें भी अपने मुल्क की याद सताती रही। तभी तो राही मासूम ने लिखा-
मेरा फन मर गया यारों
मैं नीला पड़ गया यारों
मुझे ले जाकर गाजीपुर की गंगा की गोदी में
सुला देना
मगर शायद वतन से दूर मौत आये
तो यह वसीयत है
अगर उस शहर में छोटी सी भी नदी बहती है
तो मुझको उसकी गोदी में सुलाकर
उससे कह देना
की यह गंगा का बेटा तेरे हवाले है
वो नदी भी मेरी माँ, मेरी गंगा की तरह
मेरे बदन का सारा जहर पी लेगी.
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