14 फ़र॰ 2008

रघुपति राघव राजाराम


अभी किसी ने पूछा आपकी फ़िल्म का क्या हुआ। अब मैं क्या बताऊ फ़िल्म वाले कैसे होते हैं। मैं तो अपने अखबार के धर्मेंद्र पाण्डेय जी के कहने पर फिलम में कामकिया। स्कूल में पढता था तो ड्रामा में भाग लिया था। मेरा अभिनय औअल था इसलिए अपने को भी कभी कभार आइने के सामने कुछ एक्टिंग सेक्टिंग में मज़ा आता रहा है। अब तो अपने बेटों को कभी कभी अपनी पुरानी बातें सुनाकर गर्व करता हू की चलो हमने भी कुछ किया। फ़िल्म के नाम पर बात शुरू हुई और हम घर की कहानी बताने लगे। असल में धर्मेंद्र जी से जब मैं स्कूल के दिनों की बात करता तो वे मुझे किसी भोजपुरी फ़िल्म में कम करने के लिए कहते। उन दिनों सुधाकर पण्डे ससुरा बड़ा पैसा वाला फ़िल्म बना रहे थे। धर्मेंद्र जी ने काम करने को कहा। शूटिंग के लिए मिर्जापुर जाना था सो अपन की हिम्मत नही हुई। बात आयी गयी हो गयी। फिर कुछ समय बाद धर्मेंद्र जी ने अपने घर बुलाया। उनके यहा दिवाकर बोस और दीपंकर बोस बैठे थे। पांडे जी ने बोस बंधुओं की भूमिका बताई। इनके अब्बा हूजुर ने नदिया के पर और सजनवा बैरी भये हमार जैसी हिट फ़िल्म बनाईं थी। मेरे अखबार के अरुण, कसेरा और अरुण साथ हो लिए। महराजगंज और आस-पास शूटिंग हुई। फ़िल्म का नाम रघुपति राघव राजाराम रखा गया। गाने और संवाद ठीक ठीक रहे। लेकिन निर्माता ने हम लोग का शौक पहचान लिया। एक रुपया भी फ़िल्म के प्रमोशन पर खर्च नही किया। गोरखपुर के यूनाईटेड टाकीज में फ़िल्म लगी और मैं उसे अपने बच्चों को भी नही दिखा सका। फ़िल्म में हमने एक बुरे दरोगा का अभिनय किया जिसे लोगो ने सराहा पर प्रचार के अभाव में फ़िल्म चल नही पाई। अभी निर्माता ने मुझे फिर प्रस्ताव भेजा लेकिन दोस्तों ने मना कर दिया। अब कोई बहुत अच्छी फ़िल्म मिली तो जरूर काम करूंगा.

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