कभी कभी हम सपने देखते हैं. सभी सपने सच नहीं होते. मेरी यह रपट भी एक सपना है. दुआ करिए कि यह सच हो जाए. दुआ करिए कि खाली हाथों को काम मिले और पूर्वांचल की विशाल जनसेना खेतों से खुशहाली लाये. हमने यही सपना देखा है कि गोरखपुर और बस्ती मंडल में एक सदी में बढ़ गए ३६९ फीसदी लोग अपने श्रम की पूंजी से खुशहाली की नयी इबारत लिखेंगे.
आनन्द राय,
गोरखपुर, 02 जनवरी। वर्ष 2010 उम्मीदों के पांव पर चलकर आया है। सरकार की नयी योजनाओं से ख्वाबों को पर लगने शुरू हो गये हैं। सब कुछ ठीक रहा तो इस साल पूर्वाचल की अपार जन संपदा का सही नियोजन होगा। यही जनसेना खुशहाली लायेगी। फिर खेत सोना उगलेंगे। श्रम की पूंजी से काज संवरेगा। तकनीक की ताकत से तस्वीर बदलेगी। कम्प्यूटर और संचार प्रौद्योगिकी का प्रभाव दिखेगा।
गोरखपुर-बस्ती मण्डल की आबादी 1.71 करोड़ है। 1901 में यहां 47.84 लाख लोग थे जिसके सापेक्ष एक सदी में 369 फीसदी लोग बढ़ गये हैं। सरकार की नयी योजनाएं इसी जन संपदा की बदौलत पूर्वाचल की तकदीर और तस्वीर बदल देंगी। रोजगार के लिए गांव-घर छोड़कर परदेस जाने वाले लौटेंगे। इस साल उन्हें अपने गांव में निश्चित रूप से रोजगार मिलेगा। खेत- खलिहान से उनकी ऊर्जा जुड़ेगी। रोजगार गारण्टी शिकायत निवारण तंत्र नियमावली 2009 लागू होने का उन्हें लाभ मिलेगा।
साल में सौ दिन रोजगार देने वाली योजना मनरेगा के सही संचलन के लिए सोशल आडिट का प्रबंध हुआ है। अगर ठीक से निगरानी हुई तो दोनों मण्डलों के 70 हजार जाब कार्ड धारक परिवारों का सटीक नियोजन होगा। सहकारी ऋण देकर स्वरोजगार, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, गन्ने का उचित मूल्य, विधवा, वृद्धा और विकलांग पेंशन, ईट भट्ठों का उद्योगों में पंजीकरण, विज्ञान प्रौद्योगिकी द्वारा विज्ञान वर्ग के बेरोजगारों का उत्प्रेरण एवं प्रशिक्षण, फार्मास्युटिकल एवं मेडिकल, बायो टेक्नालाजी, कृषि एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी, कम्प्यूटर एवं संचार प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रानिक्स, आटो मोबाइल आदि क्षेत्रों में भी लोगों का समायोजन होगा।
परिवार नियोजन को लेकर सरकार तो हमेशा सजग रही है लेकिन अब लोग सजग होने लगे हैं। इसके बावजूद यहां जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार इतनी तेज है कि पिछली जनगणना में 25 फीसदी की वृद्धि हुई थी। एक साल बाद फिर जनगणना होनी है। अनुमान है कि इस अंचल में 20 से 25 फीसदी की वृद्धि फिर होगी। लेकिन अब इस मानव समूह के नियोजन के लिए निजी क्षेत्र के लोग भी सक्रिय हुये हैं। यद्यपि पूर्वाचल में कल कारखाने पहले की अपेक्षा घटे हैं लेकिन स्पेशल कम्पोनेंट प्लान, परम्परागत कारोबार का विकास और छोटे छोटे उद्योगों ने उम्मीद बढ़ा दी है। अभी व्यवसायिक खेती का भी चलन बढ़ा है। जैट्रोफा, मक्के की खेती, फूलों की खेती ने बहुत से लोगों को माडल बना दिया है। गांव से लेकर शहर तक लोग रोजगार की दिशा में सजग होने लगे हैं और सरकारी नौकरियों की आस छोड़कर अपने हाथों को खुद काम देने लगे हैं। यही प्रवृत्ति सदियों से शोषित और उपेक्षित पूर्वाचल के लिए उम्मीद की किरण बन गयी है।
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छी खबर है शुभकामनायें
एक टिप्पणी भेजें