6 दिस॰ 2009

ममता के जादू से दिखा रहीं मंजिल की राह

आनन्द राय, गोरखपुर


                 बाल रोग विशेषज्ञ डा. नंदिनी घोष अपनी ममता के जादू से मलिन बस्ती के बच्चों को मंजिल की राह दिखा रही हैं। इन बच्चों को अक्षरों और शब्दों की पूंजी सौंपकर उन्होंने ठिठुरती हथेलियों की रंगत बदल दी है। बुनकर परिवारों की पोलियोग्रस्त बेटियों को सिलाई-कढ़ाई का मौका देकर उनके अंदर जीने का जज्बा पैदा किया है। सहेली बनकर बेबस महिलाओं को दुख से लड़ने की ताकत दी है। हिन्दू-मुसलमान, अमीर-गरीब सबके बीच काम करते हुये वे सद्भाव की सारथी बन गयी हैं।
                           देहरादून की बेटी और गोरखपुर की बहू डा. नंदिनी जबलपुर मेडिकल कालेज से 1979 की एम.डी. हैं। गोरखनाथ मंदिर से दस कदम पर उनका क्लीनिक है। सात साल पहले उन्होंने मलिन बस्ती के घुमंतू बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया। क्लीनिक पर बुलाकर अपने प्यार-दुलार से उन्हें ककहरा सिखाने लगीं। पास में स्कूल खुला तो उन सबका दाखिला करा दिया। अब जो स्कूल नहीं जाते, पता चलते ही उनकी माताओं को जागरूक कर स्कूल भिजवाती हैं। स्कूल जाकर बच्चों से मिलती भी हैं। उन्होंने बुनकर घरों की पोलियोग्रस्त बेटियों की पहाड़ जैसी जिंदगी में जोश भर दिया है। पुराने कपड़े जुटाकर उनसे थैला सिलवाती हैं। हर थैले की कीमत अदा कर उन्हें प्रोत्साहित करती हैं। बेहतर काम करने पर पुरस्कृत भी करती हैं। इस प्रयोग से उन्होंने इनकी हताशा दूर की तो दूसरी तरफ पालीथिन का प्रयोग बंद कर पर्यावरण की रक्षा का भी अभियान शुरू किया।

   वे अपने कार्य से अब मिसाल बन गयी हैं। इस कार्य के लिए उन्होंने किसी से मदद नहीं ली। न ही कोई एन.जी.ओ. चलाया। कहती हैं कि मैं तो अपने आप में एनजीओ हूं और मेरे स्वर्गीय पिता ने यही सिखाया है। डा. घोष मलिन बस्ती से लेकर ईट भट्ठों पर रहने वाले बच्चों का नि:शुल्क इलाज करती हैं। कई बार किसी मां के पास इतने कम पैसे होते जिसमें फीस और दवा नहीं हो सकती लिहाजा मैं अपने पर्स से उसे पैसे दे देती हूं। उस क्षण मां की आंखों में आयी चमक से मुझे फीस मिल जाती है।

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