26 नव॰ 2009

बार बार सजग होने का पैगाम


आनन्द राय, गोरखपुर
आज २६ तारीख है. देश की छाती पर आतंकियों ने इसी तारीख को पिछले साल ऐसा जख्म दिया जिसके घाव अभी तक हरे हैं. यह एक ऐसी विडंबना है जिस पर न तो आंसू बहा सकते और न ही अपने गम को छुपा सकते. यह भारत की बुलंद तस्वीर को बचाए रखने की गाथा भर नहीं है, यह तारीख तो हमें बार बार सजग होने का पैगाम भी है. यह तारीख इस बात का सबूत भी है कि अगर हम चुके तो हमारी हस्ती को मिटाने वाले आगे बढ़ जायेंगे. यह अलग बात है कि भारत की धरती वीरों से खाली नहीं है. यहाँ हमेशा अर्जुन का गांडीव अपनी प्रत्यंचा चढ़ाए है. यहाँ वीर परशुराम के फर्शे की धार पैनी बनी हुई है. यहाँ राम की धनुष और कृष्ण का चक्र दुश्मन का सर काटने के लिए तैयार बैठा है. बस सियासत में पहुंचकर सो जाने वालों को जगाने की जरूरत है. बाकी तो पूरे मुल्क की आँखे निगहबान है.

जहांगीर को नहीं भूलता होटल ताज का मंजर
जगनैन सिंह नीटू, गोरखपुर

जहांगीर के जेहन में मुम्बई की आंतकी घटना पैबस्त है। इस घटना में उसके तीन अपने भी शिकार हुए थे। जो ताज होटल में तत्कालीन सांसद लालमणि से मिलने गये थे। रोजी रोटी के लिए परदेश में आकर अपनों को गंवाना ताजिंदगी का घाव बन जाता है और नासूर बन कर जीवन भर रिसता है। जहांगीर के लिए वह घटना एक घाव ही है जिसका दर्द वह भुला नहीं पाये। जिसे याद कर हर पल उनकी रूह कांपती रहती है। संत कबीरनगर जनपद के निमावा गांव का 32 वर्षीय जहांगीर शेख बचपन में ही रोजी रोटी की तलाश में मुंबई गये थे। जहांगीर आजकल मुंबई के माहिम इलाके में रहते हैं। जहांगीर के 42 वर्षीय चाचा मकसूद अहमद शेख ,उनके दोस्त 45 वर्षीय एखलाक अहमद व 30 वर्षीय फिरोज अहमद किसी जमाने में मुंबई रोजगार के लिए पहुंचे थे। इनकी जिंदगी सुकून से गुजर रही थी लेकिन तकदीर के पन्नों पर कुछ और ही लिखा था। 26 नवम्बर 2008 को मुंबई के ताज होटल के वाकये की जहांगीर ने तफसील से दूरभाष पर जानकारी दी। उनका बयान रूह को कंपा देने जैसा था। जहांगीर ने बताया कि ताज होटल में अपने बस्ती जनपद के सांसद लालमणि प्रसाद आए हुये थे। इस बात की सूचना जब चाचा मकसूद अहमद शेख को मिली तो उनकी खुशी का ठिकाना नही था। सांसद से चाचा की जान पहचान थी सो मारे खुशी के वे अपने दोस्त एखलाक व फिरोज के साथ ताज होटल में मिलने चले गए। वहां पहुंचे तो काफी देर तक मेल मिलाप व चायपान हुआ। सांसद के कमरे में बातचीत के दौरान टीवी के एक चैनल पर समाचार आया कि वीटी स्टेशन पर गोली बारी हुई है। थोड़ी देर बात दूसरी ब्रेकिंग न्यूज थी कि कोई साम्प्रदायिक वारदात हो गयी है। इस खबर के बाद चाचा ने सांसद से फिर मिलने की बात कहकर होटल से निकलने की इजाजत ली। तीनों लोग सांसद से विदा लेकर जैसे ही पहले माले की सीढि़यों से उतरने लगे तो सामने हथियारों से लैस कुछ लोगों को बेतहाशा फायरिंग करते देखा। कुछ सोचते इससे पहले ही आतंकियों की गोली ने चाचा और फिरोज को मौत की नींद सुला दी। एखलाक पीछे थे और फायरिंग देखकर दीवार की ओर छलांग लगा दी मगर बच नही सके क्योंकि तभी आतंकियों ने एक ग्रेनेड उनकी ओर फेंक दिया और उनकी भी कहानी खत्म हो गयी। जहांगीर ने रूंधे गले से बताया कि हमलोग मुतमईन थे सांसद से मिलकर देर सवेर आ ही जाएंगे लेकिन क्या पता था कि वह आखिरी मुलाकात है। जहांगीर बताते हैं कि 26 की रात में जब हम लोगों को पता चला कि ताज होटल में लगातार गोलीबारी हो रही है ,हमारे घरों में चूल्हा नही जला। सब यही दुआ कर रहे थे सब ठीक ठाक से हों । मगर 28 नवंबर को जब आपरेशन खत्म हुआ और लाशें जे.जे. हास्पीटल में भेजे जाने लगी तो उनमें तीन लाशें चाचा, एखलाक व फिरोज की भी थीं। बकौल जहांगीर घटना के बाद सरकार ने तीनों मृतकों के परिजनों को 11-11 लाख रुपये करी आर्थिक सहायता दी है लेकिन उस रात की घटना का एक पल भी आज तक हम नही भूले। रूह कांप जाती है।

उमर के जन्नतनशीं होने के बाद उजड़ गया परिवार
नजीर मलिक, सिद्धार्थनगर

 जिले के बांसी कोतवाली क्षेत्र के ग्राम जनियाजोत निवासी 28 वर्षीय उमर का कसूर यह था कि वह बेकसूर था। उसने न तो किसी आतंकी का विरोध किया न ही उसे इस बारे में अधिक मालूमात ही थी, मगर दुर्दात आतंकियों ने उसकी टैक्सी भाड़े पर ली और मौके पर उतरने के बाद उन्होंने गाड़ी में विस्फोटक छोड़ दिया। नतीजतन आतंकियों के जाने के कुछ ही देर बाद टैक्सी में विस्फोट हुआ और उमर जन्नतनशीं हो गया। इसके साथ उजड़ गया उसका भरा पूरा परिवार। 26/11 के हादसे को बुधवार को ठीक एक साल हो गये। एक साल पूर्व जब उसकी मौत की खबर उसके गांव जनियाजोत आयी थी, तो गांव ही नहीं पूरा जिला मर्माहत हो गया था। तकरीबन सभी दलों के बड़े नेता उसके मां- बाप से मिले और उनके लिए बहुत कुछ करने का दावा किया, मगर वक्त के थपेड़ों में उनके दावे हवा हो गये। आज उमर के मां-बाप, उसकी पत्‍‌नी दो मासूम बच्चे व तीन शादी योग्य बहनों का कोई पुरसा हाल नहीं है। उमर के पिता अखलाक की मानें तो उनका इकलौता बेटा ही परिवार का एक मात्र सहारा था। आज उमर की पत्‍‌नी मोमिना उसके तीन छोटे बच्चे कमर, फैसल व अफजल यतीम हो चुके हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर उनके परिवार की जिंदगी अचानक कठिन क्यों हो गई। सबसे बड़ी दिक्कत उमर की तीन जवान बहनों अफसाना, राफिया व सालेहा के साथ है। भाई की मौत के बाद उनकी शादी कैसे हो? यह एक बड़ा सवाल बन गया है। बकौल मोमिना, जिस घर में खाने के लाले हों, वहां शादी की बात कैसे सोची जाए। उमर की मां इस मुद्दे पर फफक पड़ती हैं। कहती हैं कि कातिलों (आतंकी) ने उनके जवान बेटे की जान क्यों ली। खुद को मुर्स्लिम कह कर कत्ल करने वाले ऐसे कातिलों के खिलाफ कलमा पढ़ने वाले हर मुसलमान को खड़ा होना पड़ेगा। उमर के परिवार को सबसे बड़ा शिकवा सियासतदानों और सरकार से है। पिता एखलाक के मुताबिक उमर की मौत की खबर पर तमाम नेताओं ने उनकी मदद का वादा किया, मगर मामला ठंडा होने के बाद कोई लौट कर उनके घर नहीं आया। जहां तक रही प्रशासन की बात तो आज तक कोई अफसर उनके घर झांकने तक नहीं आया। इस बारे में बांसी क्षेत्र के विधायक लालजी यादव का कहना है कि पीडि़त परिवार के मुआवजे के लिए उन्होंने केन्द्र व प्रदेश सरकार को कई पत्र लिखा, मगर कहीं से भी आशाजनक जवाब नहीं आया। गौर तलब है कि मुम्बई में टैक्सी चलाने वाले उमर की टैक्सी 26/11 के दिन कुछ आतंकियों ने भाड़े पर लिया था। घटना के पूर्व गंतव्य पर उतरने के बाद आतंकियों ने टैक्सी में विस्फोटक छोड़ दिया था। बाद में मुम्बई के बिले पार्ले में उक्त टैक्सी में विस्फोट हो गया था, जिसमें उमर के साथ एक सवारी की जान भी चली गई थी।

क्रूर टेलीफोन संदेश की याद से कांप उठती है रूह
महेन्द्र कुमार त्रिपाठी, देवरिया:
 पिछले साल यानी 26/11 (नवम्बर 2009) को मुम्बई में आतंकवादियों के खतरनाक खूनी खेल के एक वर्ष बीत गया। लेकिन बरियारपुर गांव के पोटरिहवां टोला निवासी गरीब कुशवाहा की झोपड़ी में पिछले साल आए टेलीफोन के कू्रर संदेश को याद कर परिजनों की रूह कांप उठती है। लोग कहते हैं कि भगवान किसी को यह क्रूर टेलीफोन संदेश पहुंचाने का दिन न दिखाए। देवरिया शहर से करीब दस किमी. दूर स्थित बरियारपुर गांव के पोटरिहवां टोला निवासी गरीब कुशवाहा के आंसू बुधवार को थमने का नाम नहीं ले रहा था। जागरण टीम को देखते ही गरीब के घर में चीत्कार उठने लगी। सभी को साल भर पहले मुम्बई में आतंकी हमले में गोली के शिकार हुए नौजवान मिश्रीलाल के मौत की खबर 26 नवम्बर 08 शाम की याद आ गयी। दरवाजे पर बैठे वृद्ध गरीब कुशवाहा और उनकी पत्‍‌नी चन्द्रावती के आंखों से आंसू भरभरा रहे थे। सभी को अपने बेटे मिश्रीलाल के मौत का गम था। 26 नवम्बर 2008 से पहले यानी एक दिन पूर्व 25 नवम्बर 08 को मिश्रीलाल ने अपने माता-पिता से टेलीफोन पर खूब बतियाया था। उसकी हर बातें अब बूढ़े मां-बाप को टीस रही हैं। घर का एक मात्र कमाऊ पूत और मिलनसार व्यक्तित्व के नहीं रहने से मां-बाप को पुरानी यादें साल रही हैं। बातचीत में आंसू के धार के बीच चन्द्रावती कहती हैं मिश्री बाबू हमारे कलेजा के टुकड़ा थे। अब वो कहां होंगे। यह हम सभी को अन्दर ही अन्दर साल रहा है। मुम्बई आतंकी हमला के एक साल बीतने के बाद भी पोटरिहवां टोला में अभी तक न तो प्रदेश सरकार के कोई अफसर ही उसके दरवाजे पर कुशलक्षेम पूछने गए और न ही यहां के जनप्रतिनिधि। इस वक्त तंगी की जिन्दगी मिश्रीलाल की विधवा गुड्डी व उसके तीन नौनिहाल रीतिक (2), रंजीता (7) व अमृता (डेढ़ वर्ष) गांव में गुजर बसर कर रहे हैं। मिश्रीलाल की विधवा गुड्डी को रेलवे ने नौकरी देने का भरोसा दिया है। उसके लिए वह साल भर से रेलवे का चक्कर लगा रही है। अभी तक कोई उम्मीद नहीं जगी है। उसे अभी भी सरकारी इनायत का इंतजार है। बताते है कि मुम्बई में मिश्रीलाल का छोटा भाई जयश्री व रामविलास भी साथ रहता था। लेकिन हादसा के बाद जयश्री घर पर ही रह गया। उसका हिम्मत नहीं जुट रहा है। गौरतलब है कि बरियारपुर के पोटरिहवां टोला निवासी गरीब कुशवाहा का बड़ा बेटा मिश्रीलाल जो मुम्बई में आटो रिक्शा चालक था। जो बीते 26 नवम्बर 08 को मुम्बई सी.एस.टी. रेलवे स्टेशन पर अपनी बहन विजया देवी को ट्रेन में बैठाने के लिए गया था। उसी बीच आतंकवादियों की तरफ से चली गोली का शिकार हो गया और मौके पर ही मौत हो गयी। जबकि उसकी बहन विजया के पैर में गोली लगी और वह घायल हो गयी जो मुम्बई में अभी भी इलाज करा रही है।
dainik jagran se sabhar

20 नव॰ 2009

मन रे गा नहीं कहिये मन रे रो

आनन्द राय, गोरखपुर



 मुम्बई में दिहाड़ी पर हर दिन दो सौ रुपये कमाने वाला खोराबार का रामसुभग नरेगा की लालच में डेढ़ साल पहले काम छोड़कर लौटा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि गांव लौटकर जिंदगी त्रिशंकु बन जायेगी। गांव के दबंगों की चिरौरी करके उसका कार्ड तो बन गया लेकिन रोजी छिन गयी। एक दिन भी काम नहीं मिल सका। रामसुभग की तरह बहुत से बेरोजगार हैं जो नरेगा के जाल में उलझ गये हैं। अभावों से जूझ रहे ऐसे लोग कहीं दया के पात्र हैं तो कहीं प्रधानों के बंधुआ मजदूर।
 पंचायती राज संस्थाओं के पचास साल पूरे होने पर जब राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम को महात्मा गांधी के नाम किया गया तब यह उम्मीद जगी कि यह नया नाम मनरेगा खुशियों की बहार लायेगा। पर हालत जस की तस है, और बिगड़ती जा रही है। फिर तो कहना ही होगा- मन रे गा नहीं अब मन रे रो। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2005 में नरेगा की नींव डाली। गरीबों की जिंदगी से जुड़े इस कार्यक्रम को 2 फरवरी 2006 से लागू किया गया। शुरू में 200 जिलों में लागू यह योजना 1 अप्रैल 2008 से देश के सभी ग्रामीण जिलों में चल रही है। यह योजना कुप्रबंधन की काली छाया के अंधेरों से घिरी है। हालात को देखकर यह कहना सही लगता है- कैसी मशालें लेके चले तीरगी में आप, जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही। मनरेगा के लिए नारे गढ़े गये थे- मिला गांव में ही रोजगार, शहरों में जाना है बेकार। एक साथ में सौ दिन काम, दस हजार का है इंतजाम। पर ये नारे ब्लाक मुख्यालयों की दीवारों की शोभा बनकर रह गये हैं। हकीकत बयां करने के लिए राम सुभग जैसे लोग काफी हैं।
 जिले के उरुवा विकास खण्ड का भिटहा पाण्डेय गांव प्रदेश के उन्हीं गांवों की तरह है जहां कुप्रबंधन ने मनरेगा के उद्देश्य को भ्रष्टाचार से जकड़ दिया है। धुरियापार प्रतिनिधि से मिली जानकारी के मुताबिक भिटहां पाण्डेय गांव में वर्ष 2007 से ही जाब कार्ड धारक झिनकाई, पारसनाथ, मुरली, रामप्रताप, रामवृक्ष, पन्ने, गुनई, सुनैना, मोतीलाल, लालमती, रंजना देवी, प्रभावती, घुरई को न कोई काम मिला और न ही उनकी कोई सुनवाई हुई। भूख से जूझ रहे इन लोगों की बेबसी को शायद ही कोई समझ पाये। ग्राम पंचायत अरांव जगदीश के रामपलट, सोनबरसा, मालती, चन्द्रभान और हरिलाल का कहना है कि उनसे 8 दिन काम करवाया गया लेकिन भुगतान नहीं मिला। इनके जाब कार्ड भी प्रधान के पास हैं। मरवटिया गांव के सिंगारे, शंभू, चन्द्रकला, लाची, रामभजन का कहना है कि उनका कार्ड भी प्रधान के ही पास है। यह व्यथा सिर्फ इन लोगों की ही नहीं है।
गोरखपुर- बस्ती मण्डल के 14777 ग्राम सभाओं का यही हाल है। कहीं थोड़ी बहुत बेहतर स्थिति जरूर है लेकि न सच्चाई यही है कि अधिकांश लोगों के जाब कार्ड प्रधानों की आलमारी में बंद है। कुछ लोगों से समझौता है। उनके नाम की मजदूरी प्रधान और ब्लाक के अधिकारी अपने हवाले कर रहे हैं। उन्हें औना पौना दे दिया जाता है। जो प्रधान के विरोधी खेमे के लोग हैं वे अपना कार्ड लेकर काम को तरस रहे हैं। अफसरों की दलील है कि जाब कार्ड धारक काम मागेंगे तब तो काम मिलेगा।

 उत्तर प्रदेश में इस वित्तीय वर्ष में महात्मा गांधी के नाम की 3606.79 करोड़ के बजट की इस महत्वाकांक्षी योजना की तस्वीर यह है कि अभी तक 2371.65 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं लेकिन 294620 कामों में से सिर्फ 162862 काम पूरे हो पाये हैं। ऊपर से लेकर नीचे तक लूट खसोट करने वालों का संजाल फैला है और तिकड़म से गरीबों की रोजी मारी जा रही है। गोरखपुर-बस्ती मण्डल के सातों जिलों में 55 हजार से अधिक परिवारों के जाब कार्ड पर लगभग 68 हजार लोग काम के अधिकारी हैं लेकिन किसी दिन चार फीसदी से अधिक लोग काम नहीं पाते हैं। कमिश्नर पी.के. महान्ति ने बार बार मातहतों को चेतावनी दी है लेकिन यह सही है कि योजना की पारदर्शिता कायम नहीं हो पायी है।

17 नव॰ 2009

लालटेन की रोशनी में चमक रहे अक्षर

आनन्द राय, गोरखपुर


                           यह कथा उन बच्चों की है जो गरीबी की कोख में पल रहे हैं। पढ़ने में होनहार हैं लेकिन उनके पास संसाधनों का अभाव है। लालटेन की रोशनी में आंख टिकाये लगातार पढ़ रहे हैं। न तो उन्हें इनवर्टर की दरकार है और न ही उनका कोई नखरा है। उनका रिश्ता तो सिर्फ अक्षरों से जुड़ा है। वे सिर्फ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।

             वर्ष 2007 में यूपी बोर्ड हाईस्कूल की परीक्षा टाप करने वाली हरिप्रिया को अभी कौन भूल पाया है। जब उसने 88 फीसदी अंक हासिल कर प्रदेश के लाखों छात्र छात्राओं को पीछे छोड़ दिया तो वह गोरखपुर की लाडली बन गयी। इस साल वह इण्टरमीडिएट परीक्षा की तैयारी कर रही है। महानगर के दुग्धेश्र्वरपुरम के दो कमरे के मकान में रहने वाली कार्मल ग‌र्ल्स इण्टर कालेज की यह छात्रा स्कूल के अलावा घर पर सात से आठ घण्टे पढ़ रही है। बिजली की आंख मिचौली कभी उसके हौसलों पर भारी नहीं पड़ी।

                प्राथमिक विद्यालय बनकटीचक में कक्षा पांच में पढ़ने वाला विशाल थापा और शैलेश इतने मेधावी हैं कि कभी कभी विद्यालय के हेडमास्टर ब्रजनन्दन यादव विस्मित रह जाते हैं। उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि इन गरीब बच्चों को कैसे बेहतर मुकाम मिले लेकिन विशाल और शैलेश के हौसलों को दाद देनी होगी। कंदराई के प्रधान देवेन्द्र यादव अपने गांव के बलवंत का उदाहरण देते हैं। सामान्य घर में पैदा हुआ बलवंत पढ़ने के प्रति समर्पित है। बिजली तो वैसे भी गांव में नहीं आती है। वह लालटेन की रोशनी में पढ़ने बैठता है तो कई बार लोगों को मना करना पड़ता है। महुआडाबर जूनियर हाईस्कूल में कक्षा आठ में पढ़ने वाले इस बच्चे का सपना बड़ा होकर उन लोगों की तरह बनना है जिनके पीछे दुनिया भागती है।

             कुछ शिक्षक राजकीय जुबली कालेज गोरखपुर में कक्षा दस बी में पढ़ने वाले अमरनाथ मिश्रा की नसीहत देते हैं। इस बच्चे में पढ़ने के प्रति जो ललक है उसे कोई अड़चन प्रभावित नहीं कर पाती। यह तो कुछ गिने चुने बच्चों की बानगी भर है। ऐसे अनगिनत बच्चे हैं जो अभाव में पल रहे हैं। उनके पिता मेहनत मजदूरी करके किसी तरह दो जून की रोटी लाते हैं मगर अपने बच्चे को कुछ बनाना चाहते हैं। ये बच्चे अपने पिता की दिक्कतों को समझते हुये अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं। इनकी तकदीर इन्हें कहां ले जायेगी कहा नहीं जा सकता लेकिन इनके जज्बों को देखकर यही लगता है कि एक न एक दिन सफलता इनका कदम चूम लेगी।

16 नव॰ 2009

मुलायम, कल्याण और संघ नया गुल खिलाने की तैयारी में

आनन्द राय , गोरखपुर


यह मेरा अपना विचार है. हो सकता है यह सिर्फ मेरी आशंका हो, यह भी हो सकता है कि यह बिल्कुल सच हो. मैं कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की नूरा कुश्ती की बात कर रहा हूँ. यद्यपि भारत की जनता जिस तरह ताजा चीजों को ही याद रखती है उस हिसाब से कब कल्याण सिंह को लाभ मिल जाय और कब मुलायम सिंह यादव बाजी मार लें, कहा नहीं जा सकता. मुझे अबकी बार पता नहीं क्यूँ लग रहा है कि मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और संघ के कुछ ख़ास लोगों की योजना कुछ नया गुल खिलाने की है. फिर से कुछ  खिचडी पक रही है.
     कल्याण सिंह ने दो बार भाजपा छोडी और दोनों बार उनके जो बयान सामने आये यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है. मुलायम सिंह यादव की सरकार भाजपा ने बनवाई. इधर जब मुसलमान सपा की सारी असलियत जान गए तबसे इन सभी नेताओं का पेट खराब है. कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद काण्ड में हिन्दुओं और मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों का दिल जीता था. इस बुनियाद पर दोनों नेतओं ने लम्बी पारी खेली. दोनों एक दूसरे का हित साधते रहे. दोनों ने जब यह जाना कि मुसलमानों का मिजाज बदल रहा है तो फिर से एक नया प्लान तैयार किया गया. लोक सभा चुनाव के दौरान जब  बिहार के शूरमा लालू यादव और राम बिलास पासवान के साथ कल्याण सिंह को लेकर मुलायम घूम रहे थे तब  आज़म खान का भूत उनका पीछा कर रहा था. सबने मुस्लिम मतदाताओं पर जोर न देकर पिछडा कार्ड खेला. एक तरफ कांग्रेस को टिकट बंटवारे में उसकी औकात बताने का दंभ और दूसरी तरफ डेढ़ दशक तक एक दूसरे को गरियाने वालों की गलबहियां, यह मंच जनता के दिलों में नहीं उतर सका. यह पिछडा
 कार्ड सिर्फ यू पी में ही नहीं, बिहार में भी नहीं चल पाया.
      लालू यादव की जमीन दरक गयी. पासवान साफ़ हो गए. मुलायम सिंह यादव की ताकत सिमट गयी और कल्याण सिंह बेचारे हो गए. लोहिया के वंशवाद विरोधी झंडे के ध्वजवाहक मुलायम सिंह यादव ने जब भाई, भतीजा और बेटे के बाद बहू के लिए भी सीट सुरक्षित करने की सोची तो उन्हें कल्याण सिंह से भी उम्मीदें थी. राजबब्बर की आंधी और समर्पित कार्यकर्ताओं की वेदना ने मुलायम के परिवारवाद की राह रोक ली. न तो उनकी खूबसूरत बहू का जादू चला और कल्याण सिंह ही कोई करिश्मा कर पाए.   मुलायम को लगा कि अब उनके तरकश में कोई तीर नहीं बचा है. उन्हें अपने उत्थान के दिन याद आये. उन्हें परिंदा पर नहीं मार सकता वाला अपना डायलाग याद आया, उन्हें तब अपने उत्थान के सबसे ख़ास सूत्रधार कल्याण का पुराना रूप  याद आया  और कल्याण का वह नारा- राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे, याद आया. मुलायम और उनके कुनबे को लगा कि हमारी राजनीति तो नफरत की आंधी में परवान चढ़ती है. ऐसी  आंधी बहाने वाला तो हमारे घर में घिरा हुआ है. बस
 यहीं से एक नए खेल की शुरूआत हो गयी.

  सियासत की धुरी बने रहने की आकांक्षा ने मुलायम सिंह यादव की सोच और राजनीति की दिशा बदल दी. उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक विचारधारा इतने टुकडों में बनती है कि यहाँ पिछडा कार्ड नहीं खेला जा सकता है. वह भी हाल के पांच सात वर्षों में तो सभी जातियों के शूरमाओं ने अपने अपने नाम की पार्टी बना ली है. सिर्फ हिन्दू मुसलमान की राजनीति ही इनके मंसूबों को आगे ले जा सकती है. इस सोच के तहत कल्याण  और मुलायम सिंह यादव की नूरा कुश्ती फिर से शुरू हुई है. अब केशरी नाथ त्रिपाठी जैसे बुनियादी भाजपाई चिल्लाते रहें कि मेरा वश चले तो मैं कल्याण सिंह को पार्टी में नहीं लूंगा लेकिन परदे के पीछे से राजनाथ सिंह और बाहर से  कलराज मिश्रा और रमापति राम त्रिपाठी जैसों ने तो फिर से गोटियाँ बिछानी शुरू कर दी है. संघ  के भी कुछ  ख़ास लोग ताना बाना तैयार करने लगे हैं. वह दिन दिखने को आ सकता है जब कल्याण की भाजपा में ससम्मान वापसी हो और नये सिरे से राम मंदिर आन्दोलन की गूँज सुनाई पड़े. भाजपा और सपा की सफलता का सबसे गहरा राज तो यही है...... यह याद  रहे अभी कल्याण सिंह अमर सिंह पर कुछ बोलने परहेज कर रहे हैं.
       यह सजग होने का वक्त है. यह इन नेताओं का कच्चा चिट्ठा खोलने का वक्त है. यह भारत की जनता को साम्प्रदायिकता की आंच से बचाने का वक्त है. यह समय रहते जाग जाने का वक्त है. यह संघ के उन नेताओं को और आगे करने का वक्त है जो मतभेद भुला कर उलेमाओं के गले मिल रहे हैं. वरना सत्ता में बने रहने की यह  आकांक्षा देश और दुनिया के सबसे ऐतिहासिक प्रदेश को फिर से दंगों की आंच में धकेल देगी. हालांकि मुझे इस बात की भी उम्मीद है कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले कल्याण सिंह के किसी बयान से अब कोई हलचल नहीं उठेगी. उनके किसी बयान से कोई रोमांच नहीं होगा.. राम मंदिर को अपने जीवन का  लक्ष्य बताने का उनका नारा शब्दों  की जुगाली भर लगता है. अब उनके इस नारे से किसी हिन्दू की कोई भुजा नही फड़कती. अब तो किसान अपने खेत खलिहान, खाद पानी और रोजमर्रा की जरूरतों में ही परेशान है. राम करें लम्बे समय से शांत चल रहे उत्तर प्रदेश को इन लोगों की नजर न लगे.

15 नव॰ 2009

भूख ने चाहतों से जुदा कर दिया

आनन्द राय, गोरखपुर




छोटी उम्र में बड़ा बोझ उठाने वाले बचपन को गौर से देखिये तो वे आपके अपने बच्चों से अलग नजर नहीं आयेंगे। वे सब भी पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनना चाहते हैं मगर भूख ने इन्हें चाहतों से जुदा कर दिया है। इनके दिल के अरमानों पर पहरा लगा दिया है।

         कठउर गांव के 9 साल के शिव की कहानी सुनिये। बात सोमवार की है। कक्षा चार में पढ़ने वाले शिव ने स्कूल जाने की तैयारी शुरू की मगर पिता सिद्धू ने कह दिया आज स्कूल नहीं जाना है। सिद्धू ने अपने बेटे के हाथ में ठेला पकड़ा दिया और कठउर से छह किलोमीटर पैदल चलकर पिता के साथ अमरूद बेचते वह सिविल लाइंस पहंुचा। शिव के साथ अक्सर ऐसा होता है। इस बारे में उससे पूछा गया तो होठों पर चुप्पी थी। हर बार कुरेदने पर बाप की ओर सहमी हुई नजरें उठ गयीं। कई बार जोर देने पर बस इतना ही कह पाया कि स्कूले जाइल चाहत रहलीं, बाकी इ मना कर दिहलें..। अब सिद्धू की दलील सुने तो यही कि पढ़ लिखकर पेट थोड़े भरेगा।
          
            यही हाल पप्पू का है। पादरीबाजार में रहने वाला पप्पू पहले एक होटल में काम करता था। अब उसने अपने 12 साल के बेटे फिरोज को भी उसी होटल में लगवा दिया है और खुद भाड़े का रिक्शा चला रहा है। फिरोज ने तो दो चार बार स्कूल का मंुह देखा लेकिन तीन भाई बहनों का पेट भरने के लिए उसने यही रास्ता अपना लिया। कचरे के ढेर में अपने पूरे परिवार की रोटी तलाश रही 8 साल की लक्षमिनिया और मारे डर के अपना नाम न बताने वाली उसकी एक सहयोगी, इन दोनों को देखकर नियति के विधान पर दुख हुआ। उनकी आंखों में सांझ भी थी और जब भी कचरे में कुछ मिल जाता तो भोर की चमक भी। उन सबके लिए दया, पुचकार और प्यार के बोल बेगानी बातें हैं। शहर में रहते हुये भी पूरा दिन कचरे के ढेर में कुछ ढूंढ़ते हुये गुजर जाता है। बस इतना ही कह पाती हैं कि यह तो हमारा रोज का काम है।

                    मन्नू, जितेन्द्र, पिण्टू,सुंदर, राजा, गोमा, गुडडू, छोटे, अर्जुन, अकलू, हरमेश, नाटे और सेवक जैसे न जाने कितने बच्चे हैं जो किसी होटल, किसी गैराज, किसी चाय की दुकान और किसी के घर की नौकरी करके अपना बचपन बिता रहे हैं। बदले में इन सबको किसी तरह दो जून की रोटी मिल जाती है। पेट भर कर ये अपना सबसे अनमोल समय कौडि़यों के भाव बेच रहे हैं। अनदेखे सपनों के बीच इनके कुम्हलाये चेहरों को देखें तो साफ साफ शाम की उदासी दिखती है। और कुछ भले न हो लेकिन यह तो सही है कि असमय इन बच्चों के बड़े हो जाने से बुनियाद कांप रही है। इसका अहसास निजाम को भले न हो। इनमें कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जिन्हें अपने सपनों, ख्वाबों के व्यर्थ हो जाने और अस्तित्व की निरर्थकता का अहसास है।

                       गोरखपुर मण्डल में शैक्षणिक सत्र के शुरूआती दिनों में जब 6 से 14 साल के बच्चों का सर्वेक्षण हो रहा था तब 29 लाख बच्चे चिन्हित किये गये। बेसिक शिक्षा विभाग ने अपने आंकड़ों में 22 हजार बच्चों को आउट आफ स्कूल दिखाया। इनमें से अधिकांश किसी न किसी स्कूल में एडमिशन भी पा चुके हैं। पर यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है। उनकी पढ़ाई भी शिव की तरह हो रही है। शहर से लेकर गांव तक शायद ही कोई जगह हो जहां जिंदगी से जूझते हुये शिव जैसे बच्चे न मिलें। इन बच्चों की तरक्की के लिए हर साल रस्मी उपाय ढ़ूंढे जाते हैं और सब कुछ कागजों में निपटा कर इतिश्री कर ली जाती है। राजेश सिंह बसर ने ऐसे ही हालात पर लिखा है-
 दिल में अरमान यूं तो कई थे मगर,
भूख ने चाहतों से जुदा कर दिया।

10 नव॰ 2009

प्रभाष जोशी की याद में




 मुंबई विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष आचार्य रामजी तिवारी ने प्रभाष जोशी को रुंधे गले से याद करते हुए जब कहा- चाहे जितना कह जाएँ, अनकहा बहुत रह जाएगा. तब सबकी आँखे नम थीं. प्रभाष जी के साथ के कई प्रेरक प्रसंगों को सुनाते हुए वे बेहद भावुक थे. उन्होंने उनके समग्र व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.

आचार्य तिवारी गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब द्वारा : आजादी के बाद की पत्रकारिता और प्रभाष जोशी.: विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रभाष जी ने अपनी भाषा के जरिये पाठक से आत्मीय रिश्ता बनाया.




इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्व भोजपुरी संघ के महासचिव अरुणेश नीरन ने कहा कि प्रभाष जी ने पत्रकारिता के संगीत में एक नया राग शुरू किया. उन्होंने पत्रकारिता में नयी हिन्दी की सथापना  की जो मनुष्य  से जुडी  थी. आकाशवाणी  के कार्यकारी निदेशक आलोचक अरविन्द  त्रिपाठी  ने कहा कि वे व्यवस्था की आँखों में आँखे डालकर कड़ी से कड़ी बात कहने की        हिम्मत रखते थे. संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष आनन्द राय ने कहा कि प्रभाष जोशी ने हिन्दी पत्रकारिता को गौरवमयी मुकाम दिया है और इसकी रक्षा करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि है. श्री राय ने प्रभाष जोशी की गोरखपुर की पहली यात्रा का संस्मरण सुनाया और कहा कि गोरखपुर के पत्रकार हर साल उनकी याद में समारोह आयोजित करेंगे. स्वतंत्र चेतना समूह के प्रधान सम्पादक रामचंद्र गुप्त ने उनसे जुड़े संस्मरण सुनाये. प्रेस क्लब के संस्थापक अध्यक्ष एस. पी. त्रिपाठी ने पत्रकारिता में प्रभाष जोशी के व्यक्तित्त्व पर प्रकाश डाला.
 
         पूर्व अध्यक्ष पीयूष बका ने कहा कि वे ग्रामीण पत्रकारों को भी सशक्त करना चाहते थे. राष्ट्रीय सहारा के संपादक मनोज तिवारी ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हुए पटना और देल्ली के कई संस्मरण सुनाये. सञ्चालन कर रहे प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष सर्वेश दुबे ने आजादी के बाद की पत्रकारिता में प्रभाष जोशी के योगदान पर प्रकाश डाला. प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द शुक्ल ने प्रभाष जी के गोरखपुर से जुडाव की चर्चा की. जनसत्ता के ब्यूरो चीफ एस. के. सिंह ने प्रभाष जोशी से मिली दीक्षा को याद करते हुए   भावांजलि दी. मंत्री धीरज श्रीवास्तव ने आभार ज्ञापित किया. इस अवसर पर  राष्ट्रीय सहारा के प्रमुख संवाददाता धर्मेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अजय श्रीवास्तव,  दैनिक जागरण के छायाकार अभिनव चतुर्वेदी, मोहन राव , श्रीकृष्ण त्रिपाठी, नवीन लाल, समेत कई प्रमुख पत्रकारों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. अतिथियों ने प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द शुक्ल और मंत्री धीरज श्रीवासतव को इस बड़े आयोजन के लिए आभार जताया.

9 नव॰ 2009

गाँव की गंगा का जहर पीने निकले नीलकंठ

आनन्द राय , गोरखपुर


 आमी नदी के लिए तीन दिन तक कमिश्नर कार्यालय गरम रहा. जन जन ने आमी की मुक्ति की पुकार लगाई. इसमें याचना का भाव नहीं बल्कि रण का अंदाज दिखा. आर या पार लड़ने की कूवत के साथ तटवर्ती गाँव के लोंगों ने हुंकार भरी तो सांसदों, विधायकों, पूर्व विधाय्व्कों, पूर्व मंत्रियों और तमाम संगठनों के लोगों ने गाँव की गंगा को बचाने के अनुष्ठान में अपनी आहुति दी. सभी नीलकंठ बनकर गाँव की गंगा का जहर पीने निकल पड़े.  

गांव की गंगा को बचाकर ही लेंगे दम
कार्यालय संवाददाता, गोरखपुर : उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और डुमरियागंज के सांसद जगदम्बिका पाल ने कहा है कि ऐतिहासिक आमी नदी से हमारी आस्था जुड़ी है। यह हमारे पूर्वजों की गौरवमयी विरासत है। यह पूर्वाचल की धरोहर है और हर हाल में हम इस धरोहर को बचायेंगे। श्री पाल शुक्रवार को कमिश्नरी कम्पाउण्ड में आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह की अगुवाई में चल रहे तीन दिवसीय डेरा डालो- घेरा डालो आंदोलन को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आमी को सुनियोजित रूप से प्रदूषित किया जा रहा है और प्रशासन मौन बना है। इसके लिए उद्यमी और सरकार जिम्मेदार है। श्री पाल ने कहा कि इस मुद्दे को उन्होंने विधानसभा में उठाया था और केन्द्र सरकार के समक्ष भी मजबूती से उठायेंगे। उन्होंने आमी बचाओ मंच को हर तरह के सहयोग का भरोसा दिया। सभा को सम्बोधित करते हुये उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता द्विजेन्द्र राम त्रिपाठी ने आमी के साथ अपना संस्मरण सुनाया। उन्होंने कहा कि इस नदी का गौरवशाली अतीत मुझे पल पल याद है लेकिन इसका वर्तमान देखकर आंखें भर जाती हैं। उन्होंने कहा कि आमी नदी से हमारी आत्मा जुड़ी है और इसकी लड़ाई में मैं आखिरी दम तक साथ निभाऊंगा। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों का अपार समर्थन देखकर पूरी उम्मीद है कि गांव की गंगा अपजल से मुक्त होगी। गोरखपुर विश्र्वविद्यालय शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष डा. मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने आमी के सामाजिक ताने बाने को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इस नदी से समाज के सभी वर्गो की कड़ी जुड़ी है और यदि यह नदी बिसुरती है तो सभी कडि़यां टूट जायेंगी। डा. मानवेन्द्र ने कहा कि एक पुरानी परम्परा को जिंदा रखने के लिए इन कडि़यों का आपस में जुड़ना जरूरी है। सभा की अध्यक्षता करते हुये पूर्व एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि नदियां हमारी जीवन रेखा हैं और औद्योगिक घरानों तथा नौकरशाहों के गठजोड़ से इन पर संकट मड़रा रहा है। उन्होंने कहा कि मरती हुई आमी को बचाने के लिए जनता लगाम कसेगी। विधान परिषद सदस्य डा. वाई.डी. सिंह ने कहा कि आमी को बचाने के लिए मैंने सदन में सवाल उठाया और आगे भी इस लड़ाई में शामिल रहूंगा। मानीराम के विधायक विजय बहादुर यादव ने कहा कि प्रदूषण से सर्वाधिक नुकसान किसानों और पशुपालकों का हुआ है। इस मुद्दे पर सदन में आवाज उठेगी। मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह ने तीन दिनों तक चले आंदोलन में जनता के प्रति आभार जताया और कहा कि अब गीडा मार्च इस आंदोलन का अगला पड़ाव होगा। पूर्व विधायक अवधेश श्रीवास्तव ने कहा कि कहा कि मेरी अंतिम इच्छा है कि आंदोलन पूरे भारत में पर्यावरण बचाने का प्रतीक बन जाये। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव डा. सैयद जमाल अहमद ने कहा कि आमी नदी के प्रदूषण से लाखों लोग प्रभावित हैं। उनके जीवन के लिए मानवीय संवेदना का परिचय देना होगा। सभा को पूर्व प्रमुख चतुर्भुज सिंह, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष संजीव कुमार सिंह, वरिष्ठ नेता कृष्ण बिहारी दुबे, डा. चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी, सरोज रंजन शुक्ल, नवल किशोर सिंह, रामपाल सिंह, भाजपा के पूर्व प्रत्याशी शरद त्रिपाठी, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष शीतल पाण्डेय, विभ्राट कौशिक, प्रेमशंकर मिश्र, बच्चन त्रिपाठी, विनय कुमार सिंह, पूर्व उपाध्यक्ष महेन्द्र राय, धर्मेन्द्र सिंह, बंधु उपेन्द्र नाथ सिंह, जन सम्पर्क प्रमुख संजय सिंह, सुनील सिंह, बलवीर सिंह, अरुण सिंह, जेपी नायक, कृष्णभान सिंह उर्फ किसान सिंह, नरेन्द्र जीत छोटे, मदन त्रिपाठी ने सम्बोधित किया। आंदोलन में तीन दिनों तक भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष उपेन्द्र दत्त शुक्ल ने सक्रिय भूमिका निभायी और सफल संचालन किया। आंदोलन को कमिश्नर कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण श्रीवास्तव, मंत्री प्रमोद पाठक, पूर्वाचल जन शक्ति पार्टी और निषाद विकास मंच के अध्यक्ष देवेन्द्र निषाद, सुरेश शुक्ल एडवोकेट, प्रियानन्द सिंह एडवोकेट समेत कई प्रमुख संगठनों ने आंदोलन को अपना समर्थन दिया।

गीडा मार्च की चेतावनी के साथ उठा डेरा

कार्यालय संवाददाता, गोरखपुर : औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित हो चुकी ऐतिहासिक आमी नदी की मुक्ति के लिए कमिश्नरी में बुधवार से चलाये जा रहे डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन का डेरा गीडा मार्च की चेतावनी के साथ शुक्रवार की शाम को उठा। आंदोलनकारियों ने दो टूक कहा कि आमी नदी से पूर्वाचल का जन जीवन जुड़ा है और अपनी सांस को बचाने के लिए आर-पार की लड़ाई होगी। कमिश्नरी कार्यालय पर बुधवार से ही चल रहे आमी बचाओ मंच के डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन को जनता के साथ ही जनप्रतिनिधियों का अपार समर्थन मिला। जहां गोरखपुर सदर के सांसद और गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ, बांसगांव के सांसद कमलेश पासवान और डुमरियागंज के सांसद जगदम्बिका पाल ने अपना समय और समर्थन दिया वहीं भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, एमएलसी विनोद पाण्डेय, विधायक डा. राधा मोहन दास अग्रवाल, विजय बहादुर यादव और एमएलसी डा. वाई डी सिंह ने भी इस आंदोलन से खुद को जोड़ा। आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह की अगुवाई में चले इस आंदोलन ने एक नया माहौल पैदा किया। शांतिपूर्ण आंदोलन में ग्रामीणों का आक्रोश और संयमित गुस्सा देखने को मिला। आंदोलनकारियों ने यह चेतावनी भी दे दी है कि अब उनके आंदोलन का स्वरूप बदला हुआ नजर आयेगा। तीन दिन तक चले आंदोलन में लोक कलाकारों ने ग्रामीणों के दर्द को उकेरा। आमी के तट पर दो दशक से अधिक समय से सिसक सिसक कर जी रहे लोगों की व्यथा को शब्द मिले। घुना, सुरसती, राधिका, सहदेई, रंभा, सोनमती, गुडडी, गुलजारी जैसी औरतों की आंखों से गंगा यमुना बह निकली। पहलवानों ने मल्ल युद्ध कर अपनी ताकत भी दिखा दी। किसानों ने अपने हथियार हंसिया और फावड़ा का संकेत भी दिया। तीन दिनों तक जल रहे चूल्हे ने सामाजिक समरसता भी बनायी। गौतम बुद्ध, कबीर, गुरू नानक और गुरू गोरक्षनाथ के संकल्पों की साक्षी इस नदी की कातर पुकार इस आंदोलन में सुनी गयी। कभी अमृत की तरह बहती हुई इस धारा को अविरल और निर्मल करने का मंसूबा और जज्बा देखने को मिला। निष्कर्ष यही निकला कि अब अगला पड़ाव गीडा होगा। उसकी तिथि तय होगी और जो उद्योग नदी में अपना कचरा गिराते हैं, उन पर लगाम लगायी जायेगी।

लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया

कार्यालय संवाददाता, गोरखपुर : औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित हो गयी ऐतिहासिक आमी नदी की मुक्ति के लिए चलाये जा रहे डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन को राजनीतिज्ञ, शिक्षक, व्यवसायी, संस्कृतिकर्मी, छात्रों, किसानों और साहित्यकारों के साथ ही पत्रकारों ने भी अपना समर्थन दिया। डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन के दूसरे दिन लोग आते गये और कारवां बढ़ता गया। सरकार की खामोशी के खिलाफ आमी बचाओ मंच के नारे की गूंज दूर दूर तक सुनायी पड़ी। गुरुवार को कमिश्नरी में आमी बचाओ मंच के केन्द्रीय अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह की अगुवाई में दूसरे दिन भी तटवर्ती इलाकों के ग्रामीण डटे रहे। कस्बा संग्रामपुर, कूड़ाभरत, कोठा, रुद्रपुर, सरया आदि गांवों के लोग आमी के प्रति श्रद्धा और आस्था से वशीभूत होकर अपने अपने संसाधनों से यहां आये। आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी और कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष लालसिंह के नेतृत्व में शामिल हुये और दो टूक कहा कि इस लड़ाई से हमारा संगठन आत्मा से जुड़ा है। सिविल कोर्ट बार एसोसिएशन के मंत्री जयप्रकाश सिंह, जितेन्द्र दुबे समेत कई अधिवक्ताओं ने भी अपना समर्थन दिया। इसके अलावा दवा विक्रेता समिति गोरखपुर के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह, माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई गुट के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश पाण्डेय, नाई महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धु्रवनारायण, जीपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. गोयल समेत कई प्रमुख लोगों ने इस आंदोलन को अपनी ताकत दी। गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष रत्नाकर सिंह और मंत्री मुमताज खान ने भी इस आंदोलन में शामिल होकर अपने समर्थन का एलान किया। आंदोलन स्थल पर मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह की अध्यक्षता में एक सभा हुई जिसे सम्बोधित करते हुये उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री शिवप्रताप शुक्ल ने कहा कि जल ही जीवन है लेकिन आमी का प्रदूषण इस भावना के विपरीत है। हम सबको दल, क्षेत्र और हर तरह की दीवार को गिराकर इस नदी की मुक्ति के लिए संघर्ष करना होगा। नगर विधायक डा. राधा मोहन दास अग्रवाल ने कहा कि आमी बचाओ मंच के आंदोलन ने जन मुद्दों पर संघर्ष की विलुप्त होती परम्परा को पुनर्जीवित किया है। डा. अग्रवाल ने कहा कि गीडा के विकास के साथ साथ सरकार की जिम्मेदारी है कि लोगों के जीवन की सुरक्षा की जाय। उन्होंने कहा कि वे हर मोड़ पर इस लड़ाई में सहभागी हैं। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष संजीव कुमार सिंह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस आंदोलन को गति देगी और केन्द्र सरकार से वार्ता करके हर संभव सहयोग करेगी। कामरेड पुरुषोत्तम त्रिपाठी और मजदूर नेता प्रमोद कुमार ने कहा कि हम सब किसानों के साथ उनका जीवन बचाने के संघर्ष में खड़े हैं। जगदीश पाण्डेय ने कहा कि इस आंदोलन में शिक्षक पूरी ताकत के साथ लगेंगे। निषाद विकास मंच के दयाशंकर निषाद और निषाद उत्थान परिषद के ठाकुर निषाद ने कहा कि प्रदूषण के कारण मछुआरे बर्बाद हो रहे हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्र्वविजय सिंह ने मिल रहे अपार जनसमथर्न के प्रति आभार जताया। संचालन कर रहे भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष उपेन्द्र दत्त शुक्ल ने कहा कि आमी की लड़ाई की निर्णायक अंजाम तक चलेगी। जनसम्पर्क प्रमुख संजय सिंह ने आंदोलन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम को छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कृष्णभान सिंह उर्फ किसान सिंह, सुनील सिंह, सुधा त्रिपाठी, जयप्रकाश नायक, भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष डा. रतनपाल सिंह, बलवीर सिंह, अविनाश शुक्ल, रमेश सिंह, वीरेश, नवलकिशोर सिंह, छोटेलाल पासवान, सावित्री मौर्य, जीवन प्रकाश, मदन त्रिपाठी, हरिशंकर सिंह, विजय कुमार सिंह, प्रेमशंकर मिश्र, शिवशंकर यादव, धीरज समेत कई प्रमुख लोगों ने सम्बोधित किया।

7 नव॰ 2009

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी, तुमने प्रभाष को देखा था.

आनन्द राय , गोरखपुर



अलसुबह अशोक चौधरी का फोन आया. देर तक सोने वाले चौधरी के फोन से ही मन में शंका हो गयी. धड़कते दिल से फोन रिसीव किया. अशोक ने कहा एक दुखद खबर है- प्रभाष जी नहीं रहे. कलेजा धक् से रह गया. उनका मैं बेहद सम्मान करता हूं. इस सम्मान का सिरा तो मेरे लिखने पढ़ने के साथ ही जुड़ा है लेकिन सीधा जुडाव दस साल पहले हुआ. मुझे तारीख याद है. 22 अगस्त 1999, उस दिन गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब की पहली निर्वाचित कार्यकारिणी का शपथ ग्रहण समारोह था. प्रभाष जी मुख्य अतिथि के रूप में बुलाए गए थे. उनके साथ राष्ट्रीय सहारा के तत्कालीन सम्पादक विभ्यांशु दिव्याल भी आये थे.

          प्रेस क्लब की कार्यकारिणी में मंत्री पद पर दीप्त भानु डे, संयुक्त मंत्री गिरीश पाण्डेय समेत   कई लोग निर्विरोध चुन लिए गए थे. सिर्फ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ था. अध्यक्ष के लिए पीयूष बंका और उपाध्यक्ष के लिए मैं चुना गया था. गोरखपुर के लिए यह बहुत ही नए तरह का माहौल था और इस माहौल तथा उत्साह को प्रभाष जी ने आकर नया रंग दे दिया था. समारोह में  प्रभाष जी बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने प्रेस क्लब के गठन पर प्रसन्नता जाहिर की. दिल्ली के प्रेस क्लब की हालत पर दुःख प्रकट किया और पत्रकारों से आह्वान किया कि प्रेस क्लब को मयखाना मत बनाना. उनके पहले सभी वक्ता बोल चुके थे. मुझे आभार ज्ञापन करना था. मैंने मुखातिब होते ही प्रभाष जी को वचन दिया कि प्रेस क्लब में कभी दारू नहीं आयेगी. मेरी बात पर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई. खाना खाते समय मैंने उनसे एक और बात कही जो उसी समारोह में मैंने उनको करते देखा. यह उनका बड़प्पन था और मैं कई जगह इसका उदाहरण देता हूँ. दरअसल उस कार्यक्रम में वयोवृद्ध पत्रकार ज्ञान प्रकाश राय को सम्मानित करना था. हिन्दी पत्रकारिता के शलाका पुरुष प्रभाष जी ने जब आंचलिक पत्रकार को सम्मान दिया तब उन्हें बाबू ज्ञान प्रकाश राय के संघर्ष और उम्र का अहसास हुआ. शाल डालने के बाद वे ज्ञान प्रकाश राय के पैरों में झुक गए. तब दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय का संवाद भवन तालियों से गूँज उठा. इस बात की नोटिस सभी आचार्यों ने ली और उनके बड़प्पन को सराहा.जब प्रभाष जी से मैं यह कहने लगा तो बोले कि किसी का सम्मान करो तो उसे पता चलना चाहिए.
         कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद प्रभाष जी को हम लोग एक होटल के कमरे में ले गए. उसी शाम उन्हें जाना भी था. उन्होंने कहा आराम नहीं करेंगे. गोरखनाथ मंदिर देखने की इच्छा जतायी. वे मंदिर में गए तो गुरू गोरक्ष से जुड़ी बहुत सी बातें बताने लगे. महंत अवेद्यनाथ से मुलाक़ात की और फिर कई किताबें भी खरीदे. प्रभाष जी वापस लौटने लगे तो इस बात से बेहद खुश थे कि गोरखपुर के पत्रकार रचनात्मक हैं. उन्हें इस बात की भी खुशी थी कि पत्रकारों के कार्यक्रम में शहर का बौद्धिक वर्ग पूरी शिद्दत से जुडा रहा. यह महज संयोग था कि अगली बार की कार्यकारिणी में मुझे प्रेस क्लब का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया. मेरे लिए यह रोमांच की बात थी. उन दिनों कई पत्रकार साथियों का आकस्मिक निधन हो गया. शुरू के एक दो महीने मेरे लिए बहुत मुश्किल के थे. मैं कोई कार्यक्रम भी नहीं कर पा रहा था. प्रेस क्लब में सिर्फ शोक सभा हो रही थी. उन्ही दिनों राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने और गोरखपुर आये. मुलाक़ात में मैंने प्रेस क्लब का जिक्र किया तो उन्होंने अपने कोष से पांच लाख रूपये देने की बात कही. मैंने अपनी नोटबुक से एक पन्ना फाड़ा और उन्हें प्रेस क्लब का पता दे दिया. दस दिनों बाद मुझे पता चला कि पैसा आ गया है. खैर पैसा लाने में मुझे पापड़ भी बेलना पड़ा. पैसा मिलते ही हम लोगों ने जय प्रकाश शाही की स्मृति में एक सूचना कक्ष और डाक्टर सदाशिव दिवेदी के नाम पर एक पुस्तकालय बनवाया. तभी कुछ लोगों ने यह सलाह दी कि यहाँ बार खुल जाता तो आमदनी होती. मैंने कड़ा विरोध किया और साफ़ तौर पर कह दिया कि प्रभाष जी को दिया वचन निभाउंगा. वाकई उस दिन से आज तक कभी प्रेस क्लब में दारू नहीं आयी. किसी समारोह के दौरान भाई लोग अगल बगल से गरम हो लेते हैं पर प्रेस क्लब में कोई बोतल नहीं खुलती है. मैंने साफ़ तौर पर कह दिया कि प्रभाष जी को दिया वचन निभाना है. इसे हम सबने निभाया.
      
             हमने दुबारा प्रभाष जी को बुलाया तो उन्होंने कहा जिस डेट में चाह रहे हो उस डेट में नहीं आ पाउँगा. असल में मेरी कार्यकारिणी का समय बीत चुका था इसलिए और लम्बे समय तक इन्तजार नहीं किया जा सकता था. फिर हमारी कार्यकारिणी के समापन समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह और साहित्कार अब्दुल बिस्मिलाह आये. प्रभाष जी ने हर कार्यक्रम में अपनी शुभकामना दी और कई जगह उन्होंने गोरखपुर के प्रेस क्लब का उदाहरण दिया. गोरखपुर में बाद में दूसरे आयोजन में भी वे आये. उनके निधन की खबर मिलते ही मैंने प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द शुक्ल और मंत्री धीरज श्रीवास्तव को फोन किया और शोक सभा का प्रस्ताव रखा. अध्यक्ष और मंत्री ने शनिवार को उनके व्यक्तित्व के अनुरूप एक संगोष्ठी आयोजित की है. मुझे दिल्ली में अपने रोग से जूझ रहे पत्रकार साथी रोहित पाण्डेय ने एक एसएमएस किया है - प्रभाष जी के जाने के बाद लग रहा है कि अब किसकी छाया में सुरक्षित रहेंगे पत्रकार. वह अकेले सबके रक्षक थे.
वाकई उनका जाना एक निर्मम सच है लेकिन बहुतों के दिल को बेचैन कर देने वाली इस सच्चाई को कैसे स्वीकार किया जाय. बस मन में इस बात की तसल्ली है और फिराक के शेर के माफिक कि- आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी, तुमने प्रभाष को देखा था. यकीनन कुछ गिनी चुनी मुलाकातों में ही उनके बेहद करीब होने का अहसास होता है. कभी उन्होंने अपनी ऊँचाई का अहसास नहीं होने दिया. शायद यही वजह है कि दिल और दिमाग दोनों जगह उनकी ऊँचाई जैसी कोई शख्सियत नहीं दिखती है.

5 नव॰ 2009

आमी के लिए जागा पूर्वांचल

        आनन्द  राय , गोरखपुर          


     

          आमी नदी से कितने जीवन जुड़े हैं इसका कोई आंकडा नहीं है. यह नदी मुझे बार बार अपनी ओर खींचती है. सिसक रही इस नदी को जीवन देने के लिए जनता जाग उठी है. गाँव जाग उठे हैं. नगर डगर सब ओर जाग्रति है. बस कोई सो रहा है तो वह है सरकार. सिर्फ माया बहन जी की ही सरकार नहीं. ढाई दशक में जितनी भी सरकारें आयी सब सो रही हैं. आमी ऐतिहासिक नदी है. इससे बुद्ध , कबीर , नानक और गोरक्षनाथ का नाता है. मैं जहां रहता हूँ वहां से सिर्फ ५२ किलोमीटर की दूरी पर कुशीनगर में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ. ८० किलोमीटर दूर कपिलवस्तु है जहां उनका आविर्भाव हुआ. इस दूरी के बीच यह  नदी बहती है. पहले उसे अनोमा के नाम से जानते थे. अब वह आमी कहलाती है. वैराग्य के लिए यही नदी राजकुमार सिद्धार्थ की प्रेरक बनी. सिद्धार्थनगर जिले के सोह्नारा में राप्ती नदी की छाडन से निकल कर यह गोरखपुर जिले के सोहगौरा में राप्ती नदी में ही मिल जाती है. जब जीवन के प्रश्नों ने राजकुमार सिद्धार्थ को व्याकुल कर दिया और जवाब की तलाश में अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़ घर से निकले तो पहली बार इसी नदी के तट पर उनके कदम ठिठके. उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे, केश को काट दिया और सब कुछ सारथी को सौंप कर ज्ञान की खोज में चल पड़े. यह नदी उनके संकल्पों की साक्षी बनी. इसी नदी के तट पर मगहर में अपने आख़िरी दिनों में कबीर दास आये. यहाँ उनकी मजार और समाधि दोनों है. अभी इसी २ अक्टूबर को मगहर में गुरूद्वारा भगत कबीर की बुनियाद रखी गयी. नदी और स्त्री एक तरह होती है. आमी नदी गाँव की गंगा की तरह थी.
   
इधर दो दशक में इस नदी को औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित कर दिया गया. विकास की रफ़्तार में सदियों की गौरव गाथा समेटने वाली आमी को बदरंग कर दिया गया. तीन जनवरी से इस नदी की मुक्ति के लिए मैंने एक अभियान शुरू किया. इस बीच मैं नदी तट पर बसे गाँवों में गया. वहां लोगों की पीडा देखी. जिल्लत भरी जिन्दगी और लोगों को दुखों का पहाड़ उठाते देखा. आमी नदी जिसका रिश्ता लोगों के चौके और चूल्हे से था उसे टूटते और दरकते देखा. मैंने देखा कि प्यास और सांस दोनों पर पहरा लगा दिया गया है. गाँवों के अन्दर घुसने पर दुनियादारी की किचकिच साफ़ साफ़ सुनी. दुबले, मर्झल्ले और नंगे बच्चों की चीख सुनी. कच्ची दारू के सुरूर में निठल्ले हो चुके उनके बापों के खौफ की आंच में अदहन सी खौलती उनकी माँओं की कातर पुकार भी सुनी. आमी की तरह उन औरतों को भी तड़पते देखा जो सेवार, जलकुम्भी और मरे हुए जानवरों के दुर्गन्ध के बीच सिसक सिसक कर जी रही हैं. रोग की जकड में फंसे हुए लोगों की कराह भी सुनी. ३ जनवरी २००९ से लगातार इस नदी की पीडा को शब्दों की शक्ल दे रहा हूँ. पर मेरी आवाज इस आंचलिक परिधि से बाहर नहीं निकल रही है. अगर आमी तट के गाँवों में जहां सरकारी तंत्र कभी नजर नहीं डालता, जहां जनप्रतिनिधि उद्यमियों के प्रभाव में अपने होठ पर ताला डाले पड़े हैं, वहां एक नजर ऐसी चाहिए जो बुद्ध को समझ सके. जो चेतना की यात्रा को समझ सके. जो इस ठहराव को समझ सके और यह भी समझ सके कि अब सडन बर्दाश्त के बाहर हो गयी है. यकीन जानिए- अगर कभी फुरसत लेकर आप सबने  पल-दो-पल इस मैले हो चुके आमी के आँचल को छूने की कोशिश की तो एक नये बुद्ध का साक्षात्कार होगा. वह आपके लिए नयी अनुभूति होगी.


संघर्ष का शंखनाद
कार्यालय संवाददाता, गोरखपुर : औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित हो गयी ऐतिहासिक आमी नदी की मुक्ति के लिए बुधवार को जनता और जनप्रतिनिधि एक साथ सड़क पर उतर पडे़। तटवर्ती गांवों से भारी तादात में निकली जनता ने मण्डलायुक्त कार्यालय परिसर में पहुंचकर आमी की मुक्ति के लिए निर्णायक संघर्ष का शंखनाद किया। साथ में सतुआ-पिसान लेकर पहुंचे लोगों ने अपने इरादे को साकार करने के लिए डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन शुरू कर दिया है जो लगातार तीन दिन तक चलेगा। आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह के नेतृत्व में शुरू हुए डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन को ताकत देने में जनप्रतिनिधियों और नेताओं की दलीय प्रतिबद्धता आड़े नहीं आयी। आंदोलन में शामिल होकर सदर सांसद और गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्य नाथ, बांसगांव के सांसद कमलेश पासवान, भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं एमएलसी विनोद पाण्डेय, वामपंथी नेता यशवंत सिंह और परिवर्तन कामी छात्र संगठन के चक्रपाणि ओझा ने जनता की आवाज को बल देते हुये सरकार के रवैये के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया। आमी बचाओ मंच के आह्वान पर डेरा डालो घेरा डालो आंदोलन को निर्णायक बनाने के संकल्प के साथ भुसवल, जरलही, डोमाघाट सोहगौरा, बांसगांव, कंदराई, बरवल, महुआडाबर समेत कई तटवर्ती गांवों की जनता बस, ट्रैक्टर-टाली, जीप, टैम्पो, मोटरसाइकिल से मण्डलायुक्त कार्यालय में उमड़ पड़ी। गांव की गंगा को बचाने के लिए महिलाएं मन की ताकत लेकर आयी थीं। सतुआ पिसान के साथ तीन दिन तक टिके रहने और अपनी आवाज को सरकार तक पहंुचाने की उनकी मंशा ने इस अनोखे आंदोलन को बल दिया। 11 बजे डोमा घाट कुटी के पुजारी संत रामलखन दास ने संकल्प दीप प्रज्ज्वलित कर आंदोलन की विधिवत शुरूआत की तो अविरल आमी-निर्मल आमी का नारा गूंज उठा। आंदोलन में वे महिलाएं भी आयीं जिन्होंने आमी के लिए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों को चूडि़यां पहनायी थी। जरलही की कुंता देवी, भुसवल की रामसिंगारी, जरलही की सहदेई, सुभावती, रंभा, गुडडी देवी और कंुता जैसी कई महिलाएं थीं जो चीख चीख कर कह रही थीं- अब हमनी के साहब लोग के घरे में गंदा पानी डालब तब उनका के बुझाई.। अपनी आस्था को एक मुकाम देने और गांव की गंगा को बचाने की उनकी जिद में निसंदेह एक गूंज थी। खुफिया एजेंसियों के लोग आंदोलनकारियों का तेवर पता कर रहे थे। ठीक उसी वक्त गगनभेदी नारों के बीच फरुवाही कलाकार छेदी यादव के गीत के बोल सुनायी पड़े- काटल जाई चलिके जेलखनवा, अपने आमी के करनवा...। यकीनन सभी लोग इस मंसूबे के साथ आंदोलन में उतरे हैं कि अब आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे, चाहे जो कुर्बानी देनी पड़े। रात को जब कमिश्नर कार्यालय में चूल्हा सुलगा और एक साथ सभी लोग भोजन पर जमे तो यह साफ लगा कि गांवों की जनता सचमुच जाग उठी है।



आमी के लिए सड़क से संसद तक होगी लड़ाई : योगी
कार्यालय संवाददाता, गोरखपुर : गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और सदर सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आमी नदी की समस्या का समाधान न होना सरकार की विफलता का प्रतीक है। सरकार संवेदनहीन है और आर्थिक गठजोड़ के कारण उसके हाथ पांव बंधे हैं। योगी आदित्यनाथ बुधवार को मण्डलायुक्त कार्यालय परिसर में आमी बचाओ मंच के तीन दिवसीय डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आमी बचाओ मंच के आंदोलन से नदी की मुक्ति की उम्मीद जगी है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन के लिए हम सड़क से लेकर संसद तक कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। सभा की अध्यक्षता करते हुये आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह ने कहा कि जनता ने हमारे संघर्ष को एक नयी धार दी है। इसी ताकत के बल पर हम अपने मुकाम तक पहंुचेंगे। बांसगांव के सांसद कमलेश पासवान ने कहा कि गरीब किसान और मजदूरों का जन जीवन नदी के प्रदूषण से बदहाल हो गया है। उनके जीवन को लय देने के लिए हम आर पार की लड़ाई लड़ेंगे। भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व एमएलसी विनोद पाण्डेय ने कहा कि मैंने परिषद में पहला सवाल आमी के प्रदूषण पर लगाया था। सरकार महापुरुषों के सम्मान का ढोंग करती है जबकि आमी तट से महापुरुषों का रिश्ता जुड़ा हुआ है। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष उपेन्द्र दत्त शुक्ल ने कहा कि आमी हमारे लिए राजनीति का नहीं बल्कि आस्था का सवाल है। सभा को राधेश्याम सिंह, जनसम्पर्क प्रमुख संजय सिंह, सुनील सिंह, बलवीर सिंह,विश्र्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष समीर कुमार सिंह, बधु उपेन्द्र नाथ सिंह, पूर्व उपाध्यक्ष योगेश प्रताप सिंह, अरुण सिंह, विकास सिंह, फौजदार यादव, सूर्यप्रकाश कौशिक, विनय सिंह, श्याम सिंह, रामलौट निषाद, मंजू देवी, लक्ष्मी नारायण दुबे, विनय राम त्रिपाठी, चंदा देवी, राम जगत निषाद, रामचन्द्र निषाद, ब्रजमोहन निषाद समेत कई प्रमुख लोगों ने सम्बोधित किया।

4 नव॰ 2009

मन को छू जाती देवेन्द्र आर्य की कवितायें


कवि देवेन्द्र आर्य की कवितायें जनमानस के भीतर बहुत ही गहराई तक असर डालती हैं. उनकी रचनाओं पर चर्चा के लिए इस मंगलवार दैनिक जागरण ने एक विमर्श आयोजित किया. दैनिक जागरण के यूनिट हेड शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी और स्थानीय डेस्क प्रभारी  संजय मिश्र की अगुआई में आयोजित इस विमर्श में उनके प्रति समाज के सभी वर्ग के लोगों की प्रतिक्रया आयी. मेरे मन में  देवेन्द्र आर्य के प्रति हमेशा सम्मान का भाव रहा है. अपनी जिन्दगी में उन्होंने बहुत ही दुःख पीडा और संत्रास भोगा है. लेकिन चेहरे पर उनकी मुस्कान उन्हें औरों से अलग करती है.                  


जन चेतना के कवि हैं देवेन्द्र आर्य : प्रो. रामदेव शुक्ल
मिथिलेश द्विवेदी , गोरखपुर :

 आज के दौर में जब कविता फैशन बन गयी है, मैगी की तरह लोग दो मिनट में इसका स्वाद चख लेना चाहते हैं ऐसे में भी देवेन्द्र आर्य की कविताएं आस्वाद छोड़ती हैं। देवेन्द्र जनचेतना के ऐसे कवि हैं जो समाज पर गहरा असर छोड़ते हैं। यह कहना है प्रख्यात साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल का।

        प्रो. शुक्ल मंगलवार को दैनिक जागरण एवं सेन्ट्रल एकेडमी के संयुक्त तत्वावधान में होटल शिवाय के सभागार में आयोजित देवेन्द्र आर्य की कविताओं पर विमर्श को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे। प्रो. शुक्ल ने कविता, गजल और गीत को अलग अलग देखने का प्रतिवाद करते हुए कहा कि कविता में गीत, गजल, काव्य सब समाहित है। अच्छे कवि सभी प्रकार के फन आजमाते हैं। उन्होंने कहा कि जनता में विश्र्वास का अलख जगाने वाली कविताएं नारा भी बन जाती हैं और सामाजिक बदलाव का मंत्र भी फूंकती हैं। आर्य की कविताओं में यह धारणा मौजूद है। देवेन्द्र आर्य की कविता के शब्द विचार माफिया को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यदि इस शब्द युग्म ने आप पर असर छोड़ दिया और उसके जरिए आपके भीतर रासायनिक क्रिया हुई तो कवि का उद्देश्य सफल हुआ। उन्होंने साहित्यकारों पर विमर्श आयोजित करने के लिए दैनिक जागरण की सराहना की। इससे पूर्व गोरखपुर विश्र्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केसी लाल ने कहा कि आर्य की कविताएं उनकी यथार्थ को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने वाले स्वभाव की उपज हैं। वे नए प्रतीकों में बात करते हैं और नए प्रतिमान गढ़ते रहते हैं। उनकी कविताएं प्रेरणा बन सकती हैं बशर्ते वे तुकों के चमत्कार में न उलझें। प्रो. अनंत मिश्र ने कहा कि आज के दौर में जब शब्द निरर्थक लगने लगे तब कविता करना कठिन काम है। खुशी की बात है कि इस दौर में भी देवेन्द्र यह काम ईमानदारी से कर रहे हैं।
              साहित्यकार एवं उत्तर प्रदेश विश्र्वविद्यालय आवासीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. चित्त रंजन मिश्र ने कहा कि देवेन्द्र आर्य की कविता में मैं आत्मा की गुप्तचरी देखना चाहता हूं। नि:संकोच वे जनपक्षधरता के अच्छे कवि हैं मगर कहीं न कहीं उनका बाहरी और भीतरी संघर्ष अलग-अलग दिखता है। इसके पूर्व अपने लिखित आधार वक्तव्य में युवा आलोचक डा. अनिल राय ने कहा कि आर्य बड़े अनुभव व बड़ी रचनाओं वाले कवि हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि उनकी शुरुआती रचानाओं में जो विद्रोह और सामाजिक क्रांति लाने का उत्साह दिखता था अब उसका लोप क्यों हो रहा है। पूछा कि आज की उनकी कविता में हड़ताली मजदूर खुद को कहां पाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दीदउ गोरखपुर विश्र्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेन्द्र दूबे ने कहा कि साहित्यिक रूप से सजग यह शहर जैसे प्रेमचंद व फिराक का है, वैसे ही आज के कवि देवेन्द्र आर्य का है। वे जनता की संवेदनाओं के शानदार शिल्पी हैं। आलोचक कपिलदेव ने कहा कि आर्य की गतिशीलता गजब की है। यही वजह है कि आज तक मेरे दिमाग में कभी नहीं आया कि उनकी कविताओं का मूल्यांकन हो। साहित्यकार मदन मोहन ने कहा कि आज के जटिल दौर में शब्दों को पकड़ने व सामज की नब्ज पकड़ने की गंभीर चुनौती है। साहसी कवि देवेन्द्र ने यह चुनौती स्वीकार की है। चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने अशआर की खूबसूरती पर बल दिया और कहा कि ज्यों-ज्यों कवि परिपक्व होता है रचनाएं गूढ़ अर्थो वाली होती जाती हैं। इसलिए देवेन्द्र की सराहना की जानी चाहिए। जगदीश नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि शब्दों के शिल्पी देवेन्द्र आर्य आम जन रुचि को संवेदना में पकाकर परोसते हैं जिससे उसका आस्वाद बढ़ जाता है।
       डा. रंजना जायसवाल ने भी अपनी राय व्यक्त की। विमर्श के आरम्भ में देवेन्द्र आर्य ने अपनी चुनिंदा कविताएं सुनायीं। इससे पूर्व डा. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत किया जबकि वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र ने संचालन किया। सेंट्रल एकेडमी के निदेशक सृंजय मिश्र ने कहा कि ऐसे आयोजन समाज को दिशा देते हैं और आगे भी वे ऐसे आयोजनों में हर संभव सहयोग देते रहेंगे। इस अवसर पर देवेन्द्र आर्य और उनकी पत्‍‌नी श्रीमती आशा श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न एवं सम्मान पत्र देकर तथा शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार एवं शायर राजेश सिंह बसर ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। शुरू में अतिथियों को ओमप्रकाश जोशी, डा. संजयन त्रिपाठी, प्रधानाचार्य गोरखलाल श्रीवास्तव, उपेन्द्र पाण्डेय, डा. विवेकानन्द मिश्र ने माल्यार्पण किया। इस मौके पर डा. रजनीकान्त पाण्डेय, पं. दयाशंकर दूबे, डा. के.सी. पाण्डेय, फतेह बहादुर सिंह, डा. सत्येन्द्र सिन्हा, टी.एन. श्रीवास्तव, महेन्द्र मिश्र, रमेश चंद गुप्त, राजकुमार राय, द्विजेन्द्र पाठक सहित भारी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।

देवेन्द्र की रचनाओं में जादू 


मौत भी जिंदगी सी हो जाए।

झूठ और सच का फ़र्क़ खो जाए।
तिश्ना लब के सिवाय कौन है जो .
सुर्ख अहसास को भिगो जाए।
पिण्ड तो छूटे वर्जनाओं से ,
जो भी होना है आज हो जाए।
ऐसे मत मांग हाथ फैला के ,
हाथ में जो है वो भी खो जाए।
मैं तवायफ़ हूँ, बेहया तो नहीं ,
थोड़ी मोहलत दे, बच्चा सो जाए।


देखना न भूलियेगा बस एक छोटे से ब्रेक के बाद

ठेकेदारों के लिए शिलन्यास.

और कवियों के लिए सबसे ख़ुशी का दिन.
उनके संग्रह के लोकार्पण का होता है।
हिन्दुस्तान की आधारशिला शताब्दियों पहले,
महारानी एलिजाबेथ ने रखी थी,
शीघ्र ही उसका लोकार्पण.
अंकल सैम के हाथों सम्पन्न होगा।
देखना न भूलिएगा,
देश की लोकार्पण की तैयारियों पर,
हमारा विशेष बुलेटिन.
बस छोटे से ब्रेक के बाद।
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