27 अक्तू॰ 2009

आमी तट पर मिली थी आईएनए के खुफिया चीफ को पनाह

आनन्द राय, गोरखपुर




आमी तट के नगरी कालिका में आजाद हिन्द फौज के खुफिया चीफ एस.एन. चोपड़ा की याद गूंजती है। आजादी की लड़ाई में फरारी के दिनों में इस तट पर उन्हें पनाह मिली थी। यहां रहते हुये डेढ़ साल बाद वे पकड़ लिये गये। उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी। तब तक देश आजाद हो गया। छूटकर लौटे तो पुन: यहीं आये और आठ साल रहे। इस दौरान उन्होंने विकास के नये मार्ग प्रशस्त किये और किसानों को श्रमदान के लिए prerit   किया।

   आमी बचाओ मंच ने एस.एन. चोपड़ा की यादों को सजीव करने का निर्णय लिया है। इलाके के पुराने लोगों को नवरात्र के इस मौसम में एस.एन. चोपड़ा की खूब याद आती है। इस सीजन में हर साल वे एक बड़ा भोज करते थे और उनके द्वारा स्थापित रमण आश्रम में भारी संख्या में लोग जुटते थे। रमण आश्रम तो अब भी मौजूद है लेकिन वहां गायत्री परिवार के लोग रहते हैं। उनकी याद में अब कोई आयोजन नहीं होता पर उनके बारे में किस्से तो खूब गूंजते हैं। यहां उनका खड़ाऊं, उनकी तस्वीर और उनके हाथ का लिखा अंतिम पत्र उनकी स्मृतियों का गवाह है।

           आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्र्वविजय सिंह का कहना है कि हम एस.एन. चोपड़ा की याद में एक समारोह आयोजित करेंगे और उनके कृत्यों से आमजन को अवगत कराकर आमी के प्रति संवेदनशील बनायेंगे। औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित हो चुकी आमी नदी की मुक्ति के लिए चल रहे इस संघर्ष को बल देने के लिए आमी से जुड़ी महत्वपूर्ण यादों को मूर्त रूप दिया जायेगा। इसकी पहली कड़ी में चोपड़ा के कृत्यों पर नाटक और विमर्श आयोजित किये जायेंगे।
      
        बताते हैं कि एस.एन. चोपड़ा आजाद हिन्द फौज की खुफिया शाखा के चीफ थे। उनको अंग्रेजी हुकूमत तलाश रही थी। एक दिन वे हवाई मार्ग से पैराशूट के जरिये आमी नदी में कूद गये। आमी तट पर उन्हें पनाह मिली। लगभग डेढ़ साल तक वे ताल अमियार के नगरी कालिका भदेसर बाबा की छावनी में रहने लगे। तभी अंग्रेजों को उनकी भनक लग गयी। 1946 में श्री चोपड़ा गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी। इस दौरान देश आजाद हो गया। चोपड़ा छूट गये। फिर आमी के तट पर ही लौटे। आमी की अमृत धारा ने उन्हें बांध लिया।


          तुलसिहवा पोखरा पर 1948-49 में उन्होंने रमण आश्रम की स्थापना की। किसानों को जागरूक किया। बांसगांव-कुसमौल मार्ग श्रमदान से बनवा दिया। आठ साल तक वे यहां रहे और इस दौरान किसानों के लिए कृषि रक्षा समिति जैसे कई संगठन भी बनाये। सत्तर साल से अधिक उम्र के पूर्व ब्लाक प्रमुख चतुर्भुज सिंह को एस.एन. चोपड़ा बहुत याद आते हैं। श्री सिंह बताते हैं कि चोपड़ा जी जब यहां से गये तो भी बहुत दिनों तक सम्पर्क बना रहा। कांगड़ा के रहने वाले थे और वहां जाकर जल समाधि ले लिये। भदेसर बाबा की छावनी से जब गिरफ्तार किये गये तब इलाके के लोग खूब रोये। छूटकर आये तो एक बड़ा जुलूस निकला और जिन लोगों पर अंग्रेजों से मुखबिरी करने का शक था उनके घरों तक जाकर नारे लगाये गये। श्री सिंह बताते हैं कि चोपड़ा जी देश स्तर का दंगल कराते थे और हाकी, बालीबाल जैसे खेलों का भी आयोजन करते थे।

6 टिप्‍पणियां:

kishore ghildiyal ने कहा…

aakhe khol di aapne

http//jyotishkishore.blogspot.com

अनुनाद सिंह ने कहा…

बहुत ही छिपी हुई जानकारी प्रदान करने के लिये धन्यवाद। मन प्रसन्न हो गया।

जो घर का फोटो दिया गया है क्या उसी घर में रहते थे? घर बहुत सुन्दर लगा। ऐसे घर को सहस्त्राब्दियों तक सुरक्षित रखा जाना चाहिये।

शरद कोकास ने कहा…

चोपड़ा जी जैसे लोग हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं ।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया जानकारी पूर्ण आलेख है। आभार।

Unknown ने कहा…

आप सभी के प्रति धन्यवाद. जिस घर का फोटो है उसी घर में चोपडा जी रहते थे. वैसे भी उनके बारे में लोग बताते हैं कि वे जमीन पर सो जाते थे. पेड पर रह लेते थे. उनमे बहुत शक्ति थी. वे आध्यात्मिक भी थे.

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

एक दुर्लभ जानकारी...वाकई..

आभार...

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