19 सित॰ 2009

पूत को पालने में ही लग गये पर



आनन्द राय, गोरखपुर

पूत को पालने में ही पर लग रहे हैं। जी हां यह सच है। अब छोटी छोटी उम्र के बच्चे सड़क पर बाइक से फर्राटा भर रहे हैं। इससे उनक अभिभावकों को डर और संशय नहीं है। बल्कि वे तो खुशहाल हैं कि उनके पूत ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया है। महानगर की सड़कों पर छोटे छोटे बच्चों की कलाबाजी हर किसी ने देखी होगी। पर यह बहुत कम लोगों ने सोचा होगा कि जोश में होश खोकर बच्चे गलत राह चुन रहे हैं। कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। और तो और अपने मासूमियत को भी अपने उत्साह के आगे गिरवी रख रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले 13 साल के एक बच्चे के पिता संभागीय परिवहन कार्यालय में लाइसेंस बनवाने पहंुचे। संयोग से उनके रिश्तेदार आरटीओ के परिचित थे। आरटीओ लक्ष्मीकांत मिश्र ने समझा कि वे अपना लाइसेंस बनवाने आये हैं इसलिए उनके लिए प्राथमिकता दिखायी। पर जब उन्होंने अपने बच्चे के लाइसेंस का प्रस्ताव रखा तब आरटीओ को भी हैरानी हुई। आरटीओ ने उन्हें समझाया कि उत्साह में अपने बच्चे को गलत राह क्यों दिखा रहे हैं। बहरहाल अभिभावक बुझे मन से लौट गये पर जाते जाते यह कहना नहीं भूले कि मेरा बेटा बहुत अच्छी गाड़ी चलाता है। यह किसी एक अभिभावक की दास्तां नहीं है। ऐसे लोगों की लम्बी फेहरिश्त है। ये अभिभावक इस बात से खुश होते हैं कि छोटी उम्र में उनके बच्चे वाहन चला रहे हैं। फर्राटा भर रहे हैं। बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की दौड़ में वे उनके बचपन को असमय ही आगे दौड़ा रहे हैं। सेक्शन-3 मोटर व्हैकिल एक्ट 1988 के तहत बिना लाइसेंस वाहन चलाना अपराध है। इसके लिए 750 रुपये जुर्माने की रकम तय की गयी है। लाइसेंस बनवाने के लिए निर्धारित उम्र 18 साल है। इसके पहले 16 साल से अधिक उम्र के बच्चों का लाइसेंस बिना गीयर वाले वाहन के लिए बन सकता है। पर अब तो 11-12 साल की उम्र से ही बच्चों की रफ्तार शुरू है। कक्षा 6 में पढ़ने वाले शुभम, आठ में प्रतीक, सात में अंजेश, किशन और कक्षा आठ के उत्कर्ष को स्कूटी चलाने में बहुत मजा आता है। ये लोग हीरो होण्डा और फ्रीडम भी ट्राई कर चुके हैं। पूछने पर कहते हैं कि अगर सात साल की उम्र में कोई हाईस्कूल पास कर सकता है और उसे सर्टिफिकेट मिल सकती है तो गाड़ी चलाने के लिए हमारा लाइसेंस क्यों नहीं बन सकता है। समाजशास्त्री डा. मानवेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि यह सब टी.वी. और विज्ञापन का प्रभाव है। बचपन को बचाने के लिए न तो अभिभावकप्रयत्‍‌नशील है और न ही समाज। ऐसे में बच्चे की मनमानी स्वाभाविक है। संभागीय परिवहन अधिकारी लक्ष्मीकांत मिश्र इसे उभरते भारत का लक्षण बताते हैं। उनका कहना है कि इसके लिए जब पेरेण्ट्स ही क्रेजी हैं तो औरों का क्या कहना।

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