19 सित॰ 2009

बेटियाँ- वर्तिका की कवितायें


बहुत पहले दिनेश कुशवाह की एक कविता पढी थी। लडकी की जवानी सोना होती है और लडकी की कहानी सोना होती है। यह लम्बी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी थी।

अभी मीडिया स्कूल से वर्तिका नंदा की कवितायें मुझे मिली तो उन्हें और लोगों को पढाने का मेरा मन हो उठा। बेटियाँ किसी की हों उनके प्रति एक भाव जो यकीनन मन को छू ले-


वर्तिका की कविता


खुशामदीद पीएम की बेटी ने किताब लिखी है।

वो जो पिछली गली में रहती है

उसने खोल ली है अब सूट सिलने की दुकान

और वो जो रोज बस में मिलती है उसने

जेएनयू में एमफिल में पा लिया है एडमिशन।

पिता हलवाई हैं और उनकी आंखों में अब खिल आई है चमक।
बेटियां गढ़ती ही हैं।

पथरीली पगडंडियां उन्हे भटकने कहां देंगीं!

पांव में किसी ब्रांड का जूता होगा

तभी तो मचाएंगीं हंगामा बेवजह।

बिना जूतों के चलने वाली ये लड़कियां

अपने फटे दुपट्टे कब सी लेती हैं

और कब पी लेती हैं दर्द का जहर

खबर नहीं होती।

ये लड़कियां बड़ी आगे चली जाती हैं।

ये लड़कियां चाहे पीएम की हों या पूरनचंद हलवाई की

ये खिलती ही तब हैं जब जमाना इन्हे कूड़ेदान के पास फेंक आता है

ये शगुन है कि आने वाली है गुड न्यूज।



बहूरानी (2)

बड़े घर की बहू को कार से उतरते देखा

फिर देखीं अपनीपांव की बिवाइयां

फटी जुराब से ढकी हुई

एक बात तो मिलती थी

फिर भी उन दोनों

में -दोनों की आंखों के पोर गीले थे



पैदाइश (3)

फलसफा सिर्फ इतना ही है

किअसीम नफरतअसीम पीड़ा या असीम प्रेम से निकलती हैगोली, गाली या

फिरकविता



गजब है (4)

बात में दहशत

बे -बात में भी दहशत

कुछ हो शहर में, तो भीकुछ न हो तो भीचैन न दिन मेंन रैन में।

मौसम गुनगुनाए तो भीबरसाए तो भीशहनाई हो तो भीन हो तो भीहंसी आए मस्त तो भीबेहंसी में भीगजब ही है भाईन्यूजरूम ! (यह कविताएं तद्भव के जुलाई 2009 के अंक में प्रकाशित हुईं)

1 टिप्पणी:

वाणी गीत ने कहा…

बिना जूतों के चलने वाली ये लड़कियां
अपने फटे दुपट्टे कब सी लेती हैं
और कब पी लेती हैं दर्द का जहर
खबर नहीं होती।
ये लड़कियां बड़ी आगे चली जाती हैं।
ये खिलती ही तब हैं जब जमाना इन्हे कूड़ेदान के पास फेंक आता है
बहुत मार्मिक रचना ...नवरात्री में प्रण करें उन्हें खिलने देंगे ...कूडेदान के पास नहीं ..अपने घर के बगीचे में ..
नवरात्री की बहुत शुभकामनायें ..!!

..............................
Bookmark and Share