24 सित॰ 2009

किसी को चाहते रहना कोई खता तो नहीं।


बहुत पहले दिखी देह

तस्वीरों में।

फिर दिखा मन

अक्षरों में।

आँखों को

तृप्त करने वाली मुस्कान

और दिल को

सुकून देने वाले विचार।

देह से मन तक मैंने बनायी

सपनों की एक दुनिया।

जूझता रहा अपने ही सवालों से

खोजता रहा

अपने ही सवालों का जवाब।

पहले अपने से फिर तस्वीरों से

फ़िर अक्षरों से

पता नहीं उत्तर की चाह में

मैं कब तक भटकता रहूँ।

पर इतना जरूर कहूंगा

किसी को चाहते रहना कोई खता तो नहीं।







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