आनन्द राय, गोरखपुर
जिंदगी को कब कहां कौन मुकाम मिल जाये कहा नहीं जा सकता। गोरखपुर के लिटिल फ्लावर स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ने वाली लाडो उर्फ गरिमा जैन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। घर से स्कूल तक सीमित रहने वाली लाडो अचानक जी.टी.वी. के लिटिल चैम्प सारेगामा प्रोग्राम तक पहंुच गयी और उसे पूरी दुनिया ने देखा। लाडो को यह मुकाम कार्यक्रम की एंकर अफशां का हमशक्ल होने की वजह से मिला। शनिवार की रात जब सारेगामा पा लिटिल चैम्प का प्रसारण हो रहा था तब समापन के समय का दृश्य देखकर लोग चौंक गये। अफशां की जगह उसकी हमशक्ल लाडो को खड़ी कर दिया गया। फिर मुख्य मेहमान बप्पी लाहिरी से लेकर अलका याज्ञनिक और अभिजीत तक संशय में पड़ गये। अभिजीत दा लाडो को देखकर विस्मय से स्टेज पर गिर पड़े। बाद में इस रहस्य का खुलासा दोनों की आवाज ट्राई करने के बाद हुआ। यह सबके लिए कौतूहल का विषय था। कार्यक्रम के दर्शकों को यह बात भले न पता रही हो लेकिन लिटिल फ्लावर स्कूल के बच्चे लाडो की इस उपलब्धि से वाकिफ थे। स्कूल के प्रधानाचार्य फादर सी.बी.जोसेफ ने प्रसारण से पहले लाडो के कार्यक्रम का न केवल अपने विद्यालय में प्रचार प्रसार कराया बल्कि छमाही परीक्षा के दौरान लाडो को मुम्बई जाने की छूट दी। पेशे से सी.ए. लाडो के पिता राजेश जैन बताते हैं कि यह फादर का असीम सहयोग था कि लाडो इस मुकाम तक पहंुची। श्री जैन के मुताबिक इस उपलब्धि का सिरा भी लिटिल फ्लावर स्कूल से ही जुड़ा है। पिछले कई माह से वहां के बच्चे और शिक्षक यह कहते थे कि लाडो की शक्ल अफशां से मिलती है। इस बात को बाद में मुहल्ले के लोगों ने भी कहना शुरू किया। राजेश जैन और उनकी पत्नी निधि जैन ने जी.टी.वी. से सम्पर्क किया। क्रियेटिव टीम को लोगों की इस भावना और तथ्य से अवगत कराया गया। इसके बाद जी.टी.वी. ने लाडो को आमंत्रित किया और उसकी प्रस्तुति की। जीटीवी क्रियेटिव टीम की अनुराधा अग्रवाल का आश्र्वासन है कि लाडो को आगे भी मौका दिया जायेगा। लाडो को नृत्य और चित्रकारी में विशेष रूचि है। यद्यपि अभी उसे अपनी इस कला को प्रदर्शित करने का अवसर नहीं मिला। लाडो से जब पूछा गया कि बप्पी दा और लिटिल चैम्प के लोगों से मिलकर उसे कैसा लगा तो उसने बताया कि मैं तो अफशां के घर भी गयी और उसके साथ काफी समय बिताया। हम लोगों ने साथ साथ गाना भी गाया। अफशां और धैर्य जोशी का आटोग्राफ लेकर आयी हूं और वहां के लोगों ने मुझे बेहद स्नेह और सहयोग दिया। टी.वी. पर जबसे मेरे कार्यक्रम का प्रसारण हुआ तबसे अब तक लगातार मुझे बधाई मिल रही है और इससे मुझे और मेरे भाई अंशुमान को बहुत खुशी महसूस हो रही है। वास्तव में कार्यक्रम प्रसारण के बाद से ही महानगर में जैन परिवार सुर्खियों में आ गया है और उन्हें बधाइयों का तांता लगा हुआ है।
1 टिप्पणी:
अच्छी बात है कि लाडो को मौक़ा मिला लेकिन, मैं उम्मीद करती हूँ कि वो किसी की हमशक्ल के रूप में नहीं बल्कि खु़द की एक अलग पहचान बनाएगी।
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