कभी ऊंचे आसमान से
जमीन पर उतरो मेरे हुजूर
कभी तो ख़ास होने का लिबास उतार दो
कभीतो तोड़ दो अपना गुरूर
जमीन और आसमान भले दूर दूर हों
पर उनके बीच बना है एक रिश्ता
भाप और बारिश का रिश्ता
ओस और दूब का रिश्ता
ख्यालों का रिश्ता, निगाहों का रिश्ता
सोचो तो .....................रिश्ता ही रिश्ता
ये कोई अनमोल वचन नहीं हैं
यह तो मन की कथा है
इसके साथ बधी हैं गहरी गाथाएँ
तुम्हारे मन पर इसकी छाप पड़ जाए
तो तुम भी हो सकते हो आसमान की तरह ऊँचे
और धरती की तरह सबको सह लेने वाले।
शायद तब सूरज का ताप भी तुम्ही बन जाओ
और चाँद का अहसास भी तुमसे ही हो ...
3 टिप्पणियां:
खास तो वही होगा जो ज़मीन पर होगा.
बहुत सुन्दर रचना व .
बहुत सुन्दर रचना व .
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