आनन्द राय, गोरखपुर
सर्व शिक्षा अभियान पर साल दर साल अरबों का वारा-न्यारा करने वाली सरकार उन शिक्षकों की ओर से आंख बंद किये है जो हजार रुपये पगार पर इस आस में पढ़ा रहे हैं कि शायद उनका विद्यालय अनुदान सूची में आ जाय। इसी आस में बहुतों की सेवा समाप्त हो गयी, बहुतों की सेवा की उम्र समाप्त हो रही है। जिनके दो चार साल बचे हैं उनकी आस सरकारी फाइलों में अटकी हुई है। वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने प्रदेश में माध्यमिक विद्यालयों से सम्बद्ध 393 प्राइमरी स्कूलों को अनुदान सूची में ला दिया। उस समय 160 सम्बद्ध प्राइमरी स्कूल अनुदान सूची में आने से वंचित रह गये। इनमें सिर्फ गोरखपुर मण्डल में ही 59 सम्बद्ध प्राइमरी स्कूल हैं जहां सात सौ से अधिक शिक्षक अपनी तकदीर को दांव पर लगाकर बच्चों को पूरी तन्मयता से पढ़ा रहे हैं। बातचीत में इन शिक्षकों की आंखों के आंसू छिप नहीं पाते। किसान इण्टर कालेज भूपगढ़ से सम्बद्ध प्राइमरी स्कूल में 1985 से तैनात तार मोहम्मद अपनी मुफलिसी से जूझ रहे हैं। हर दिन समय से स्कूल जाने वाले तार मोहम्मद के साथ ही यहां के और भी शिक्षक बदहाली का सामना कर रहे हैं। एम।एस.आई. इण्टर कालेज गोरखपुर से सम्बद्ध प्राइमरी स्कूल के प्रभारी 52 साल के हारून रशीद खां से पूछिये तो उनकी पूरी व्यथा उभर जाती है। नेहरू उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पीपीगंज के 57 वर्षीय सच्चिदानन्द श्रीवास्तव हों, आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हरदीचक के प्राथमिक सेक्शन के दीपचंद हों या मदन मोहन मालवीय इण्टर कालेज भगवानपुर के प्राइमरी स्कूल के राजेन्द्र लाल श्रीवास्तव हों, सबका दुख एक ही है। इनमें कोई बीस साल से तो कोई पच्चीस साल से बच्चों को पढ़ा रहा है। सबको लगता है कि एक दिन सरकार सुधि लेगी और उनके विद्यालय को अनुदान सूची पर ला देगी पर इस आस में बहुतों को अवकाश मिल गया। पांच साल के अंदर तीन सौ से अधिक शिक्षक अवकाश पा जायेंगे। इनकी लड़ाई लड़ रहे हारून रशीद कहते हैं कि सम्बद्ध प्राइमरी स्कूलों में पूरी तन्मयता से पढ़ाई की जाती है ताकि बच्चों के भविष्य को सुधारने का पुण्य तो मिले। पर हमारी तरफ सरकार का ध्यान नहीं है। एडी बेसिक मृदुला आनन्द का कहना है कि हम तो नियमों की परिधि में रहकर ही किसी का सहयोग कर सकते हैं। यकीनन नियमों ने इन शिक्षकों की तकदीर को घेर दिया है। शिक्षक गोपाल पति त्रिपाठी, दरोगा सिंह, काली प्रसाद, दिनेश सिंह समेत दर्जनों शिक्षक अपनी पीड़ा को न कह पाते और न ही छुपा पाते हैं। उनकी पूरी व्यथा और कथा को कहने के लिए राजेश सिंह बसर का यह शेर ही पर्याप्त है- उम्र भर आशा की वेदी पर व्यथित बैठे रहे, छांव में प्रश्नों की हम अनुत्तरित बैठे रहे। हाथ पत्थर के उठेंगे देंगे हमें वरदान कुछ, कामना मन में लिये बरसों नमित बैठे रहे। सच कहें तो सरकारी आंकडों में बहुत से दावे किए जाते हैं लेकिन हकीकत को जनकवि अदम गोंडवी की यह रचना भी उजागर करती है।
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
1 टिप्पणी:
सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है.... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
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