आनन्द राय, गोरखपुर
बेरोजगारों की अंधेरी दुनिया में नरेगा उम्मीद का चिराग बन कर आया। पर कुप्रबंधन की हवाओं से इसकी लौ बुझने लगी है। अनीति और शोषण की बरसती हुई शिलाओं ने गरीबों की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया है। सौ दिन रोजगार का वादा तो अब सपने जैसा है। अगर कुछ सच है तो यही कि नरेगा जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना भी आंकड़ों की बाजीगरी का शिकार हो गयी है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम(नरेगा)की शुरूआत ने बेरोजगारों को बा-रोजगार होने का सपना दिखाया। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, कलकत्ता और मुम्बई जैसे महानगरों में कौडि़यों के भाव अपना श्रम बेचने वाले मजदूरों के मन में यह आस बंधी कि अब घर के करीब काम करेंगे और बीवी बच्चों के पास रहेंगे। बहुतेरों ने परदेस को टाटा-बाय-बाय कहा और गांव लौट आये। गांव में प्रधान जी की बेगारी और चिरौरी मिनती करने के बाद कार्ड बना और लगा कि घर का चूल्हा आबाद रहेगा। पर दो चार दिन के बाद काम का अकाल। कमोवेश सभी गांवों में प्रधानों का यही कहना कि काम आयेगा तो मिलेगा.। कुछ की उम्मीदें टूटी और कुछ का परदेस में चलता पुर्जा रोजगार। कुछ फिर से दिल्ली, मुम्बई और पंजाब की राह पकड़ लिये पर कुछ नियति का लेखा मान अपनी तकदीर से जूझने के लिए यहीं रह गये। ऐसे लोग कहीं के नहीं हैं। गांव में काम नहीं है और बाहर का काम छूट गया है। नून तेल की किल्लत और महंगाई की मार ने उनकी कमर दोहरी कर दी है। भूख और बेबसी की परिधि में जकड़ी हुई बदहाल जिंदगी जीने को बेबस ऐसे लोगों की दास्तां सुनने वाला भी कोई नहीं है। खजनी ब्लाक पर नरेगा की जमीनी सच्चाई पता करने आये मिडल पास राजधारी ने मुम्बई के एक कम्पनी में डेढ़ सौ रुपये दिहाड़ी का काम छोड़ दिया और गांव में जाब कार्ड भी बनवा लिया लेकिन अब उसे काम ही नहीं मिलता है। उरुवा विकास खण्ड के ग्राम पंचायत रसेत के तीस वर्षीय रामबचन, 35 साल के महेन्द्र, छोटेलाल, बाबूलाल, रामसमुझ और योगेन्द्र प्रधान से काम मांगते हैं लेकिन किसी को काम नहीं मिला। इसी विकास खण्ड के भिटहा पाण्डेय के बीस युवाओं ने हमारे धुरियापार संवाददाता को बताया कि जाब कार्ड रहते हुये उन्हें काम नहीं मिल रहा है। यह हाल केवल इन गिने चुने लोगों का ही नहीं है बल्कि हर गांव में यह कड़वी सच्चाई बेरोजगारों के चेहरों पर चस्पा है। छताई के प्रधान रामपाल सिंह और जरलही के प्रधान देवेन्द्र यादव का दावा है कि हमारे यहां सभी कार्ड धारकों को काम मिल रहा है। अब जरा आंकड़ों पर गौर करें तो गोरखपुर-बस्ती मण्डल के सात जिलों में 536867 जाब कार्ड धारक परिवारों के 668973 लोग काम के लिए अधिकृत हैं। इनमें सिर्फ 22209 लोग ही काम पर लगे हैं। और इस पर हालत यह है कि दोनों मण्डलों के लिए इस वित्तीय वर्ष में नरेगा के लिए आये 285.84 करोड़ रुपये में से 175.48 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। जाहिर है कि घोटालों के कीड़े इस परियोजना में भी लग चुके हैं। गोरखपुर के मण्डलायुक्त पी.के. महान्ति ने तो इस पर अफसरों की नकेल भी कसी और उनके निर्देश पर गोरखपुर के सीडीओ ने कई गांवों में नरेगा का घोटाला भी उजागर किया। पर हर जगह मानीटरिंग नहीं हो पा रही है। ग्राम प्रधान और अफसर आंकड़ों का खेल खेल कर बेरोजगारों को छल रहे हैं। शायद इन्हीं हालातों पर जनकवि अदम गोण्डवी ने लिखा- तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है। तुम्हारे आंकड़ें झूठे, बातें किताबी हैं।
3 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी जानकारी है भ्रश्टाचार का इतना बोलबाला है कि तौबा है जब तक ये भ्रश्टाचा र्समाप्त नहीं होता तब तक सरकार कोई भी स्कीम चला ले कुछ नहीं होने वाला आब जनता को हर कदम पर आवाज़ उठानी चाहिये धन्यवाद्
Sach kaha aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Sach ko aaina dikha diya aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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