आनंद राय , गोरखपुर :
पूर्वी उत्तर प्रदेश नदियों की तलहटी में बसा है। यहां की सभ्यता का विकास नदियों की गति के साथ हुआ और बाद के दिनों में सबकी रोजी रोटी भी इससे जुड़ गयी। अब नदियां प्रदूषित हो गयी हैं। यहां की बड़ी नदियों में नेपाल से आने वाली घाघरा, राप्ती और गण्डक नदी हैं जिनके साथ आम अवाम की तकदीर का रिश्ता जुड़ा हुआ है। औद्योगिक इकाइयों, अनियोजित विकास और सीवर के गंदे पानी से ये नदियां प्रदूषित हो गयी हैं। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। सच तो यह है कि इन सबकी मुक्ति के लिए एक और भगीरथ की जरूरत है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में घाघरा, राप्ती और नारायणी का व्यापक प्रभाव है। घाघरा नदी का उद्गम नेपाल है जो हिमालय की श्रेणियों से पिघलती हुई आगे बढ़ती है। नेपाल में इसे करनाली नाम से जाना जाता है। मैदान क्षेत्र में यह बहराइच, गोण्डा होते हुये बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़ और मऊ से होकर बलिया में गंगा नदी में मिल जाती है। 525 किलोमीटर लम्बी इस नदी को औद्योगिक इकाइयों और विभिन्न कस्बों के सीवर से निकले अपजल ने प्रदूषित कर दिया है। राप्ती नदी घाघरा की सहायक नदी है और जो सरयूपार मैदान से उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा में कर्णवत प्रवाहित होती दो भागों में विभक्त हो जाती है। प्राचीन समय में अचिरावती के नाम से जानी जाने वाली यह नदी नेपाल हिमालय की श्रेणियों से निकलकर बहराइच जनपद में मैदान में प्रवेश करती हैं। मध्यवर्ती भाग में यह नदी पश्चिम से पूर्व दिशा में पुन: दक्षिण पूर्व की ओर सर्पाकार प्रवाहित होती देवरिया-गोरखपुर की सीमा पर गौरा बरहज के समीप घाघरा में मिलती है। इस नदी की कुल लम्बाई 516 किलोमीटर है। बताते हैं कि अभी तीन दशक पहले तक इस नदी की गहराई सात मीटर थी जो अब घटकर साढ़े चार मीटर रह गयी है। नदी पट जाने से बाढ़ के दिनों में बेकाबू हो जाती है और सूखे के समय इसके अस्तित्व पर संकट छा जाता है। सरयूपार मैदान के पूर्वी सीमा पर गण्डक नदी प्रवाहित होती है। इस नदी को प्राचीन समय में हिरण्यवती कहा जाता था। यह नेपाल के बागवन से होकर कुशीनगर जिले में उत्तरी पश्चिमी सीमा पर प्रवेश करती हैं। 170 किलोमीटर लम्बे मार्ग से प्रवाहित होती है। यह नदी उतनी प्रदूषित नहीं है जितनी घाघरा और राप्ती नदी हैं। इन नदियों में पहले दुर्लभ प्रजातियां मिलती लेकिन अब वे दिन हवा हो गये हैं। नेपाल के पहाड़ों से निकलने वाली इन नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण रासायनिक कचरों का गिराया जाना है। कहते हैं कि घाघरा, राप्ती और गण्डक अपनी बेबसी पर सिसक रही हैं। जब भी इनका रुदन बढ़ जाता है तो पूर्वाचल के गांव बाढ़ में डूब जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है लेकिन इनके लिए किसी की संवेदना नहीं जाग रही है।
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