आनन्द राय, गोरखपुर
समाजवादी पार्टी को गोरखपुर-बस्ती मंडल में मिली करारी हार ने पार्टी नेताओं के कान खड़े कर दिये हैं। यह स्थिति एक दिन में नहीं हुई बल्कि इसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले से ही बन रही थी। कमजोर संगठन और आपसी मतभेदों ने सपा का माहौल खराब कर दिया। चुनाव के पहले से ही सपा के पाये खिसकते रहे और जमीन दरकती गयी। समाजवादी पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर शायद ही कोई ऐसा जनपद हो जहां पर आपस में कलह न हो। इस कलह ने विद्रोह, भितरघात, पलायन और प्रतिशोध की भूमिका तैयार की। रही सही कसर टिकट बंटवारे में हुई उपेक्षा ने पूरी कर दी। इससे आगे की स्कि्रप्ट कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की दोस्ती के बाद नाराज मुस्लिमों ने लिख दी। सपा सिमट गयी। अब उसकी तकदीर पर समर्पित कार्यकर्ता जहां आंसू बहा रहे हैं वहीं अवसरवादी दूसरे दलों में अभी से अपना वजूद तलाशने में जुट गये हैं। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव की भूमिका तैयार करते हुये सबसे पहले सुरक्षित सीटों पर ध्यान केन्दि्रत किया। बांसगांव संसदीय क्षेत्र में पूर्व विधायक कमलेश पासवान ने टिकट की गारंटी न देखकर भाजपा से हाथ मिलाकर सपा को अलविदा कह दिया। कमलेश भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत गये और आखिरी समय में टिकट पाने वाली शारदा देवी किसी तरह तीसरे स्थान पर पहंुच सकीं। गोरखपुर सदर संसदीय क्षेत्र में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह ने भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार मनोज तिवारी मृदुल को चुनाव मैदान में उतारा तो कई पुराने कार्यकर्ता-नेता नाराज हो गये। विद्रोह का रुख पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद ने अपनाया और उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया। इस दौरान मनोज मृदुल चुनाव मैदान में आये और उनके आने के साथ ही विवाद की भूमिका शुरू हो गयी। मनोज को मुकामी संगठन ने बहुत तरजीह नहीं दी। यहां तक कि चुनावी बैठक के दौरान ही संगठन के नेताओं के बीच तनातनी हो गयी। इसकी गूंज दूर तक सुनायी पड़ी। चर्चित नेता भानु मिश्र पार्टी से बाहर किये गये और फिर दम ठोंकते हुये उनकी वापसी हुई। इस तरह के छिटपुट विवाद ने सपा की उल्टी गिनती शुरू कर दी और मनोज मृदुल इस कदर सिमट गये कि उनकी जमानत तक नहीं बची। बाद के दिनों में जब कल्याण और मुलायम की दोस्ती का फैक्टर चला तो आजम खां की उपेक्षा का मुद्दा उठाकर 22 वर्षो तक मुलायम का साथ निभाने वाले जफर अमीन ने विद्रोही तेवर अपनाकर पार्टी छोड़ दी। भितरघातियों ने तो जो किया सो किया ही। सपा में विद्रोह की गूंज सिर्फ इसी जिले में नहीं रही। यह तो कुशीनगर में बुरी तरह पराजित पूर्व मंत्री और सपा उम्मीदवार ब्रह्माशंकर त्रिपाठी के लफ्जों में साफ सुनायी पड़ रही है। पराजय के बाद उन्होंने खुलेआम कहा कि आपसी फूट और अपनों के दगा देने की वजह से ऐसा दिन देखना पड़ा है। सच भी है कि पिछली बार सपा से विद्रोह कर वहां चुनाव जीतने वाले बालेश्र्वर यादव पिछले साल सपा में लौटे थे। इस बार वे देवरिया से टिकट मांग रहे थे लेकिन नहीं मिला तो कांग्रेस के टिकट पर देवरिया से लड़ गये। उन्होंने एक तीर से दो निशाना साधा। देवरिया में सपा सांसद मोहन सिंह को चुनाव हराना अपनी पहली प्राथमिकता बनायी और दूसरे कुशीनगर में भी सपा को धूल चटाने की कवायद की। उनके अभियान में समाजवादी पार्टी के सहयोगी भी लगे रहे। उनके प्रतिनिधि रहे किशोर यादव ने तो बाकायदे कुशीनगर में चुनाव मैदान में उतरकर ताल ठोंक दी। दोनों जिलों में भितरघात भी खूब हुआ। सलेमपुर में भी टिकट की टीस साफ उभरी। वहां सांसद हरिकेवल प्रसाद को टिकट मिला तो पूर्व सांसद हरिवंश सहाय ने सपा को छोड़ दिया। हरिवंश सहाय सपा को अलविदा कहने के साथ ही बसपा की ताकत बन गये। नतीजा भी सामने आया और हरिकेवल जहां लुढ़क गये वहीं सलेमपुर में बसपा की नैया पार हो गयी। महराजगंज संसदीय क्षेत्र में पार्टी ने पहले पूर्व मंत्री श्याम नारायण तिवारी को टिकट दिया। बाद में उनके भतीजे अजीत मणि को टिकट दे दिया। यहां पार्टी असमंजस में हमेशा दिखी और पूर्व सांसद अखिलेश सिंह आखिरी समय तक संशय बनाये रखे। इस वजह से भी पार्टी को झटका लगा। सपा को लेकर बसपा की ओर से यह बात उठी कि इसके उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि बसपा की राह रोकने के लिए लाये जा रहे हैं। जनता में फैले इस संदेश ने भी पार्टी को डैमेज करने का कार्य किया।
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