19 जून 2008

नियति बदल देती चेहरा


नियति बदल देती चेहरा किसी के लिए जीना किसी के लिए मरना। किसी के लिए हँसना किसी के लिए रोना। किसी के लिए ठहर जाना और किसी के लिए चलना। किसी के लिए लड़ना और किसी के लिए चुप रहना। एक ही आदमी को नियति कई चेहरा देती है। चाह कर भी लोग ख़ुद को बदल नही पाते। कभी कभी लगता कि जिन्दगी में आदमी को अवसर तो मिलते हैं लेकिन उसका लाभ नही उठा पाता। आदमी सफल हुआ तो उसका झंडा उठाने के लिए बड़े बड़े लोग लाइन में लग जाते हैं। संयोग से सफलता नही मिली तो लोग उपहास उडाने में देरी नही करते। बहुत पहले किसी शायर ने लिखा- लोग जालिम हैं, बहुत फिकरे उछालेंगे जरूर। कोई खतरा है तो घर बैठिये परदा कीजै ॥ यकीनन जो लोग बिना किसी परवाह के अपना काम करते आगे निकल जाते ज़माना उन्ही के साथ हो जाता है। मैं अपनी बात करुँ तो हमेशा इस सोच में मारा गया कि लोग क्या कहेंगे।निरंटर मेरी रफ्तार कम होती गयी। पर सहेजा गया अनुभव बड़ा काम आता है। वैसे ही-जीना भी आ गया, मुझे मरना भी आ गया। पहचानने लगा हूँ हर इक नजर को मैं।। इसलिए अब जीने कि अदा बदल गयी है। सोचता हूँ तो लगता है एक तरह का व्यवहार सबके साथ हो नही सकता। बचपन से लेकर अब तक जिन लोंगों ने अपने स्नेह प्यार कि ऊर्जा से अभिसिंचित किया है क्या उनकी जगह कोई और ले सकता है। दिल में उन लोगों के लिए जो मुकाम है वह हमेशा बना रहे इश्वर से यही ताकत मांगता हूँ। बाकी तो मैं जानता हूँ कि जिन्दगी की राह दुश्वारियों से भरी रहती है। मैंने कभी रोशन लोगों को देख कर पछतावा नही किया। कभी सोचा नही कि हमे जीवन क्या मिला और क्या नही। हमेशा गर्द कि तरह गलती को झाड़ता रहा हूँ। भविष्य को ख्वाब समझ कर भूलता रहा हूँ। मैंने तो वर्तमान में जीने की कोशिश की है। कोशिश की है घर बच जाए, जलता हुआ अलाव न आए। मुझे हमेशा यह अहसास रहता है-जो रोशनी में खड़े हैं वो जानते ही नही। हवा चले तो चिरागों की जिन्दगी क्या है।। पर मन में अपने जलते रहने का सुकून भी रहता है। कई बार लगता है कि आँधियों के अच्छे इरादे न होने पर भी ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया। कुछ तो है कि संताप के छड़ में अपने को संभाल लेता हूँ। और अगर तेज आँधियों में कभी बुझ भी गया तो बस यही सोच कर संतोष रहेगा कि- तुम्हारी अंजुमन के हम, वही बुझे चिराग हैं। जो तारीकी को और भी निखारते चले गये॥

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