
टैगोर और गीतांजली। नाम सुनते ही एक अलग अनुभूति होती है। महेश चन्द त्रिपाठी ने इसका हिन्दी में अनुवाद किया है। पढ़ कर बहुत सुख मिलता है। भाव का बड़ा धरातल सामने दिखने लगता है। एक कविता है- तुम कौन अपिरिचित घर आए। रविन्द्र नाथ टैगोर की गीतांजलि का अनुवाद करते हुए महेश जी ने इसे सबसे पहला स्थान दिया है।
तुम कौन अपिरिचित घर आए
दर्शन न दिए, सुख पंहुचाये
मन का तम भाग गया सारा
फैला अंतस में उजियारा
उर में उग आए अगडित रवि
लख न सका तेरी मोहक छवि
पर तुम मन मन्दिर में छाये
तुम कौन अपिरिचित घर आए
तुम को पा जीवन बदल गया
जीवन में सब कुछ नया नया
तुम संग संग करते बिहार
अपना जीवन तुम पर निसार
कर धन्य हुए, हम हर्शाये
तुम कौन अपिरिचित घर आए।
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